Posted inहिंदी कहानियाँ

सरप्राइज गिफ्ट – गृहलक्ष्मी कहानियां

‘‘जन्मदिन की बहुत बहुत शुभकामनाएं” कहते हुए संजना ने गुलाब का फूल अपनी मॉम रंजना को दिया और गले लग गई, रंजना ने भी उसके सिर पर हाथ रखते हुए आशीर्वाद दिया।

तब तक सोमेश ने भी एक पैकेट रंजना हाथ में देते हुए, ‘‘हैप्पी बर्थ डे, रंजना जी ‘‘कहा तब रंजना ने ‘‘थैंक्स” कहते हुए हाथ जोड़ लिए।

Posted inहिंदी कहानियाँ

मुर्दाघर की तलाश में – गृहलक्ष्मी कहानियां

उसे लगा कि मैंने उसे पहचान लिया है तो वह दूसरी तरफ सहज भाव से घूम गया, जैसे उसने मुझे देखा ही न हो। फिर तेज कदमों से चलता हुआ सड़क की तरफ पहुंच गया। मैं एक क्षण सोच में पड़ गयी। क्या ये वही है? कहीं मेरी आंखें तो धोखा नहीं खा गई। नहीं ये वही है, लेकिन मुझे देखकर अनदेखा क्यों करके चला गया? मैं तो उसकी दोस्त थी और उसके शहर छोड़ने तक भी थी।

Posted inहिंदी कहानियाँ

मेरी पहचान – गृहलक्ष्मी कहानियां

काश, मैं भी इन लोगों की तरह ज्यादा पढ़ लिख लेती तो मैं भी कुछ होती। मेरी भी कोई अपनी पहचान होती। ऐसा मज़ाक न बनता मेरा। पर आगे पढ़ती भी तो कैसे। दसवीं के बाद से ही पिताजी को मेरी शादी की चिंता होने लगी थी। मैं आगे पढ़नी चाहती थी। पर गांव में कोई स्कूल भी तो नहीं था दसवीं के बाद पढ़ने के लिए।

Posted inहिंदी कहानियाँ

सुरक्षा कवच – गृहलक्ष्मी कहानियां

जिस याद को सदा के लिए कोई भूलना चाहे लेकिन विवशता जब उसी याद के परिचायक उसे बार- बार अपनी नजरों के सामने लाने पड़े तो किसी के मन का क्या होता होगा, इसका अंदाजा लगाना हर किसी के लिए संभव नहीं। कुछ ऐसी ही विवशता से सदा जूझती रहती थी भारती। जब वह दफ्तर जाने के लिए तैयार होकर आइने के सामने आती थी तो उसके दिल में कुछ ऐसी हूक उठती कि पलके स्वतः ही भीग जातीं।

Posted inहिंदी कहानियाँ

मुखौटे वाले नहीं नहीं – गृहलक्ष्मी कहानियां

आज उसका मन बल्लियों उछल रहा था। राजकुमार का पलंग झाड़ते हुए उसे एक बहुत अजीब सी अच्छी खुशी महसूस हुई। दोनों तकियों के गिलाफ उतारते और लगाते हुए हालांकि सांस भी चढ़ती जाती थी मगर ऐसी खुशी । ये वही खुशी थी जिसका वो सपना तब से देख रही थी जब से उसे महल की सफाई का जिम्मा मिला था।

Posted inहिंदी कहानियाँ

”नाभि”

इधर उसके सभी रेखाचित्रों का विषय नाभि था। मगर कोई भी चित्र दूसरे से मेल नहीं खाता था। एक ही चीज की तस्वीरों में इतनी विविधता लाना ही उसकी विशेषता थी। नाभि, यानी उसका चित्रण कोई आसान बात नहीं है। इसका महत्व तब बढ़ता है, जब हम इस बात पर ध्यान देते हैं कि अभी […]

Posted inहिंदी कहानियाँ

डस्टबिन – गृहलक्ष्मी कहानियां

गृहलक्ष्मी की लघुकथा प्रतियोगिता में हमें ढेरों लघुकथाएं प्राप्त हुई हैं जिनमें से हमने झांसी की मनिकना मुखर्जी की इस कहानी का चयन किया है।

Posted inहिंदी कहानियाँ

”भाग्योदय का रास्ता”

बचपन से ही मुझे भाग्योदय शब्द सुनकर ऐसा लगता था कि आपके सभी शत्रु पराजित और आप किसी चमत्कार की शरण में…। एक दिन खुले आसमान में सुबह की हल्की लालिमा में मैं चाय का लुफ्त उठा रही थी कि तभी तभी अखबार वाले ने अखबार मोड़कर यूं घुमा कर जोर से फेंका कि वो […]

Posted inहिंदी कहानियाँ

अनमोल पलों के लिए – गृहलक्ष्मी कहानियां

मैं तुम्हें पाना चाहता हूं सम्पूर्ण रूप से। इस तरह पाना कि मुझे लगे मैंने तुम्हें पा लिया है। अब चाहे तुम इसे जो भी समझो। पुरूषों का पे्रम ऐसा ही होता है जिसे वे प्यार करते हैं उसके मन के साथ-साथ तन को भी पाना चाहते हैं। तुम इसे वासना समझती हो तो ये तुम्हारा समझना है।

Posted inहिंदी कहानियाँ

पुकार – गृहलक्ष्मी कहानियां

उस पाॅश काॅलोनी में सबसे खूबसूरत बंगला सविता का ही था। अपनी किस्मत और मेहनत पर गर्व करती सविता सुबह-शाम फुर्सत के लम्हों में पलकों को ऊपर नीचे झपका कर अपना वो खूबसूरत बंगला अक्सर ही निहार लिया करती। कभी लाॅन में बेंत की आराम कुर्सी पर बैठी-बैठी आत्ममुग्ध होती रहती थी। ऐसे ही खुशी और संतोष भरे किसी पल में अचानक एक पत्थर बंगले के गेट पर आकर लगा। चट से उठकर सविता ने यहां-वहां झांका, आखिर कौन हो सकता है।

Gift this article