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एक कप चाय – गृहलक्ष्मी कहानियां

अनिमेष ऑफिस से आते ही कहने लगे परसों दिल्ली जाना होगा, मीटिंग है चाहो तो तुम भी साथ चलो सबसे मिलना हो जायेगा। सबसे मिलने का मोह मैं भी ना छोड़ सकी, हां कहकर जाने की तैयारी में जुट गई। सुबह कब बीत जाती है पता नहीं लगता सबसे मिल-मिलाकर बातें करने में मालूम ही नहीं चला, कब दो बज गए। मन हुआ घर का एक चक्कर लगाकर पुरानी यादें ताजी कर लूं।

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किताबों का प्रहरी – गृहलक्ष्मी कहानियां

जब ललिता नहीं रही तो खुद को उन्होंने उसी कमरे में फिक्स कर लिया, किताबों के बीच में उनकी पतली चौकी लगी थी और उस पर विराजमान वो माने खुद को उन अनबोलती किताबों का प्रहरी मानते थे…

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इज्ज़त या आत्मसम्मान – गृहलक्ष्मी कहानियां

डाइनिंग हॉल में बैठकर परिवार के सभी लोग नाश्ता कर रहे थे । मेहता जी एवं उनके बेटों के बीच बड़ी-बड़ी बातें हो रहीं थीं, कभी कॉरपोरेट ऑफिस तो कभी सुप्रीम कोर्ट तो कभी विधान सभा के मसलों पर और सुझाव दिए जा रहे थे।

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वक्त का पहिया – गृहलक्ष्मी कहानियां

सुनील अपने डेढ़ साल के बेटे अमित को कंधे से लगाए कॉरिडोर में चहल कदमी कर रहा था। पास ही उसकी पत्नी शशि कागजों का पुलिंदा लिए कुछ लिख रही थी। सुनील और शिक्षा एक मल्टीनेशनल कंपनी में अधिकारी पद पर कार्यरत थे। आज अपने बेटे के नर्सरी में एडमिशन के लिए ऑफिस से आधे दिन की छुट्टी ले कर आये थे। उन्हींं के जैसे अनेक जोड़े वहां उपस्थित थे जो अलग अलग वेशभूषा में अपने बच्चों के साथ आये थे ।

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कभी न भूलने वाली कहानी – गृहलक्ष्मी कहानियां

बात है सावन महीने में बिहार के सिंहेश्वर नाम के बाबा भोले नाथ की छोटी सी नगरी की जहां बहुत से श्रद्धालु देश विदेश से पूजा करने और बाबा को जल अर्पित करने आते हैं।

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अपना- अपना आसमान – गृहलक्ष्मी कहानियां

अनु को महसूस हो रहा था कि काशीबाई और उसमें क्या फर्क है, दोनों की दशा एक जैसी है। फिर अचानक एक दिन अनु और काशीबाई ने मिलकर ऐसा क्या किया जिससे दोनों को अपना- अपना आसमान मिल गया…

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