आज सुबह से ही विभा का दिल बहुत बेचैन था। रह रह कर उसे कुछ अनजाना सा भय सता रहा था। जैसे तैसे करके उसने अपना सारा काम निपटाया और छुट्टी का समय होते ही घर के लिए निकलने की तैयारी करने लगी।
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अचार के मर्तबान – गृहलक्ष्मी कहानियां
सड़क के दोनों ओर लगे आम के पेड़ देख मेरा मन गाड़ी की रफ्तार से भी तेज दौड़ने लगा। एकाएक बचपन की यादों में पहुंच गई… कहीं से मां की आवाज भी सुनाई देने लगी। जून का महीना आते-आते जरा भी आंधी-तूफान आ जाए तो उसे देख खिड़की दरवाजे बन्द करती जातीं और तेज-तेज आवाज में बोलना शुरू हो जाता, हाय..! कैसा तेज आंधी-तूफान आने वाला है। हवा के चलते मुए सारे आम तो गिरने लगेंगे। सारी डाल बिना आम के खाली होने लगेगी।
एक कप चाय – गृहलक्ष्मी कहानियां
अनिमेष ऑफिस से आते ही कहने लगे परसों दिल्ली जाना होगा, मीटिंग है चाहो तो तुम भी साथ चलो सबसे मिलना हो जायेगा। सबसे मिलने का मोह मैं भी ना छोड़ सकी, हां कहकर जाने की तैयारी में जुट गई। सुबह कब बीत जाती है पता नहीं लगता सबसे मिल-मिलाकर बातें करने में मालूम ही नहीं चला, कब दो बज गए। मन हुआ घर का एक चक्कर लगाकर पुरानी यादें ताजी कर लूं।
गृहलक्ष्मी की कहानियां : एक चालाकी ऐसी भी
पापा के दोस्त पाण्डेय जी के दो बेटे और एक बेटी हैं। पांडेय अंकल सरकारी नौकरी में थे। अपनी जिंदगी में उन्होंने अपने तीनों बच्चों को पढ़ाया लिखाया, पहले बेटी की शादी की और फिर बड़े बेटे की। बड़ा बेटा उसी शहर में प्राइवेट कंपनी में नौकरी करता था।
इज्ज़त या आत्मसम्मान – गृहलक्ष्मी कहानियां
डाइनिंग हॉल में बैठकर परिवार के सभी लोग नाश्ता कर रहे थे । मेहता जी एवं उनके बेटों के बीच बड़ी-बड़ी बातें हो रहीं थीं, कभी कॉरपोरेट ऑफिस तो कभी सुप्रीम कोर्ट तो कभी विधान सभा के मसलों पर और सुझाव दिए जा रहे थे।
गृहलक्ष्मी की कहानियां : टेलीफोन
कॉलेज टाइम से वो एक दूसरे को प्यार करते थे। घरवालों ने खुशी-खुशी रिश्ता मंजूर कर लिया, धूमधाम से शादी हुई और कब दो साल गुजर गये, पता ही नहीं चला। पर कल उस फोन की घंटी से जैसे सब कुछ थम सा गया…
गृहलक्ष्मी की कहानियां -अपनी अपनी सोच
गृहलक्ष्मी की कहानियां – बाज़ार से निकलते ही रिक्शा मिल गया। मैंने व नीलू ने अपना अपना सब्जी का थैला उस पर रखा व आराम से बैठ गए। तेरी सास कैसी है नीलू… ठीक है भाभी, उनका भी कुछ न कुछ लगा रहता है। हर दूसरे दिन उनकी सेवा में ही जाना पड़ता है। […]
नाबालिग अपराधी – गृहलक्ष्मी कहानियां
मनोज अमीर माँ बाप का इकलोता बेटा था। घर में किसी चीज़ की कमी न थी उसकी हर जिद्द पूरी की जाती थी। उसके पिताजी की कई फैक्टरियां थी। उनकी इच्छा थी कि मनोज बडा होकर उनका कारोबार सम्भाले, लेकिन शायद किस्मत को कुछ और ही मंज़ूर था। बचपन से ही मनोज का मन पढाई में नहीं लगता था । सारा दिन पार्क में खेलना,मौज मस्ती करना ही उसे अच्छा लगता था ।
सुमित्रा काकी
सुमित्रा काकी ! जैसा नाम वैसा धैर्य। भरी जवानी में ही पति दूसरी औरत की खातिर छोड़कर चला गया, पर इसका लेशमात्र भी शिकन उनके चेहरे से न झलक पाता। उन्होंने जीवन के हर पहलू को सकारात्मकता के साथ लिया था | मचाने को तो वह हाय तौबा मचा सकती थी, घर-परिवारवालों से सहानुभूति के […]
विक्षिप्त कौन
आज सुबह ही मेरी उससे रास्ते में भेंट हो गई । दोनों ने राम राम कहा और बात करने लगे। मेरे पूछने पर कि कैसी हो, उसने कहा ‘ मैं ठीक हूँ मैंने आज घर में काम भी किया और अब नहा कर मंदिर जा रही हूं’ । इतना कह कर वह मुस्कुरा दी और उसके टूटे पीले दांत दिखने लगे। वह आगे बोली ‘अब मेरी बांह भी नहीं हिलती’ जो कि बात करते हुए उसके उत्तेजित होने के कारण अब ज़ोरों से हिलने लगी थी। मैंने उसे ठीक से दवाई लेने को कहा और अपने रास्ते निकल पड़ी।वह भी मंदिर की ओर चली गई। शांति एक अचछे परिवार की बेटी थी पर शादी के बाद कुछ ऐसा घटा कि अपना मानसिक संतुलन खोबैठी। माँ ने बेटी की हालत देख कर खाट पकड़ ली। उसे रात दिन उसके भविष्य का गम खाये जा रहा था। कौन उसे संभालेगा उसके जाने के बाद। शांति के दो भाई थे जो अपने परिवारों के साथ अपने अपने घर में रहते थे। मां ने सोचा मेरे बाद इसका क्या होगा, इसलिये उसने अपना मकान अपनी बेटी शांति के नामकर दिया। मां की यह बात उसके बेटों को नहीं सुहाई। कुछ समय बाद बूढ़ी मां चल बसी और शांति इस दुनिया में अकेली रह गई। उसके बडे भाई ने एक कमरा उसके पास छोड कर बाकी मकान किराये पर दे दियाजिसका किराया वह वसूल कर लेता था।दोनो भाइयों में मकान को लेकर मनमुटाव बढता चला गया और आपस में आरोप प्रत्यारोप होने लगे। शांति के भूखे मरने की नौबत आ गई तो वह बडे भाई के घर आकर दरवाजे पर बैठी रहती और भूखी होने के कारण गाली गलौज करने लगती। उसकी दवाई भी इस बीच बंद हो चुकी थी, इसलिये उसकी विक्षिप्तता भी बढ गयी थी। वह गली के बच्चों को भी मारने दौड़ती, कभी सड़क पर ही धूप में लेट जाती। इस बीच दोनों भाइयों में कुछ सहमति बनी और उन्होंने उसका फिर से […]
