"पिता हूं मै"-गृहलक्ष्मी की कविता
Pita Hun Mein

Poem for Father: पिता हूं मैं मां तो नहीं बन सकता,पर हर सांस में तुझको जिया है मैंने भी
गोद में लेकर मेरे लाल तुझे ,लगा क्या अनमोल मिला मुझे
अपनी सभी तमन्नाओं का पिता बनते ही पाया आसमान मैंने।
जब तूने मेरी पकड़ी  उंगली, लगा रब ने थाम लिया मुझको
खुशियों के दीप जले दिल में,जब अपना नाम दिया तुझको।
जब पापा तूने पुकारा मुझे,लगा हर एक मुराद हुई पूरी
अब कुछ नहीं इच्छा जीवन में, बस तेरे लिए ही है जीना मुझे।
पहले दिन जब स्कूल गया तू ,लगता जिम्मेदारी बड़ी मेरी
कोई सपना तेरा रहे ना अधूरा,यह कसम अब  है मेरी ।
जब भी तुझ पर मैं सख्त हुआ,पारस तुझे बनाने को
कोई उंगली न उठा सके परवरिश पे मेरी,हीरे की तरह तराशा तुझे
जब तू अफसर बना लाडले ,लगा पूरा चांद मिला मुझको
सोचा जी मैं सकूंगा अब जी भर कर,जिम्मेदारियों से सुकून मिला
दूल्हा बनकर जब तू आया सामने ,लगा मेरी नजर ही न लग जाए
हर एक मुराद हो पूरी तेरी ,मेरी उम्र भी तुझको लग जाए।
आज जीवन की अंतिम बेला में ,ये पिता आशीष देता हजार तुझे
स्वस्थ,खुशहाल,चिरंजीवी रहो,जीवन में सफलता के सोपान गढो।
जब तलक धरती पर सूरज चांद रहे,वंश की वेल यूं ही बढ़ती रहे
मैं रहूं ना रहूं इस जीवन मे,आशीर्वाद सदा ये तेरे साथ रहे।

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