grehlaksmi ki kavita

मकर संक्रांति के पावन पर्व पर
रेवड़ी, गजक,तिल के लड्डू की मिठास
सबका मिलकर पतंगबाजी करना
देता एक सुखद मस्ती का अहसास

रंग बिरंगी पतंगें उड़ती जब गगन में
आकर्षित करती सबके मन को
मांझा अगर  ज्यादा मजबूत हो तो
काट देती पेंच लड़ा के कमजोर को

जब तक हाथ में डोर रहती उड़ती रहती
डोर छूटी पतंग गिर जाती कोई कोने में
जितनी ऊँची उड़ती खुले आसमान में
वाह वाही मिलती उतनी पतंगबाजी में

जितनी ढील देते पतंग उतनी ऊँची जाती
पर कभी कभी पेंच लड़ने से कट जाती
जितना खुला छोड़ेंगे आप खिलते जायेंगे
जहाँ कोई पेंच फँसा कट कर गिर जायेंगे

दूसरों की पतंग काटने में खुश होते
अपनी कामयाबी की खुशी मनाते
ऊँचे मकानों वाले अक्सर लूट ले जाते
नीचे वाले बेचारे हाथ मलते रह जाते

जिंदगी भी एक उड़ते पतंग समान है
अगर कट जाये तो ढूंढ पाना कठिन है
ऊँचे उठ रहे हैं तब तक इज्जत है
कमजोर हो गए तो न कोई इज्जत है

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