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मॉ कहती थी-गृहलक्ष्मी की कविता

Mother’s Poem in Hindi: मॉ कहती थी सारा शरीर गवा कर बेटे को जन्म दिया हैवो मेरे शरीर का हिस्सा है मॉ कहती थीपिता ने घूप मे पासीना बहा कर हर इच्छा को पूरा किया है ,पर कहते नही थेपढ़ने में था होनहार, दूध का क़र्ज़ भी अदा करा , पिता का भी अरमान पूरा कियाचबूतरे में बैठी औरतें बात […]

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मां को बस हमने मां होते हुए देखा-गृहलक्ष्मी की कविता

Mother Poem: सोचती हूं कभी की, क्या कभी मां भी कमसिन रही होगी?क्योंकि हमने तो बस हमेशा मां को सिर्फ मां ही होते देखाना देखा उनका बचपन,ना उन्हें जवां होते देखा,मां को बस हमने मां होते देखा… कितनी खूबसूरत लगी होगी मां मेरी,जब उनके द्वारे पर शहनाई बजी होगी।हर कली मुस्कुराई होगी,जब मेरी मां दुल्हन […]

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माँ तुम बहुत याद आती हो-गृहलक्ष्मी की कविता

Mother Poem: वो जो कहती थी “जाओ माँ…..जब मैं हॉस्टल जाऊंगीतुम्हें बिलकुल याद नहीं करूंगी”वो अब मुझे दिन – रात याद करती हैंतुम्हारें बगैर कितनी अधूरी हूँ माँये शिकायत हर रात मुझसे करती हैं!सिर्फ तुम्हारें इर्द -गिर्द हीं होने सेमेरी हर परेशानी दूर हो जाती थीमैं खामोश रहती थी औरतुम सबकुछ समझ जाती थी!वो प्यार […]

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नारीत्व-गृहलक्ष्मी की कविता

Hindi Poem: पौधों में पानी देतींकभी फुलों को सहलातीघर आंगन सुसज्जित करतींदिपक की लौ जलातीकभी फ्रिजतो कभीकूलर के पास होतींआखिर ढूढंती क्या रहतींघर तेरा अधिकार तेराफिर उपेक्षित क्यों रहतीं बातें बड़ा अनोखा साकौन सा रहस्य आखिर थाघर आंगनखुद पे खड़े- खड़ेंबड़े दिनों बाद खिलखिलाएं थेघर के आंगन में खडी़निर्दोष सीढ़ी तब बोलींजमीन और छत को […]

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ट्रांसफॉर्मेशन-गृहलक्ष्मी की ​कविता

Hindi Poem: कौन कहता है कि हम हाउस वाइव्स है ?अजी साहिब अब हम हाउसवाइफ नहीं ,होम मिनिस्टर/ होम मेकर्स कहलाते है ।करते है वर्क फ्रॉम होम,लेकिन ख़ुद को छुट्टी पर ही बतलाते है ।घर में रह कर हम ,घर की सरकार चलाते है ।अब नहीं खटते हम घर- गृहस्थी में सारा-सारा दिन …..अब तो […]

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नदी-गृहलक्ष्मी की ​कविता

Hindi Poem: नहीं है ख्वाहिश की दरिया से जा मिलूँ अभी, लोगों की प्यास बुझे कुछ और बहुँ मैं अभी। फेंक दे तू उत्कंठा और वेदना इस बहाव में, रुको मत बस बढ़े चलो क्या रखा है ठहराव में। विसर्जित कर दो सारी गंदगी मुझे नहीं है मलाल, फ़ेंक दो द्वेष विकार और करो तुम […]

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वहीं खड़ी है द्रौपदी-गृहलक्ष्मी की ​कविता

Hindi Poem: चीरहरण को देख कर, दरबारी सब मौन।प्रश्न करे अँधराज पर, विदुर बने वह कौन॥ राम राज के नाम पर, कैसे हुए सुधार।घर-घर दुःशासन खड़े, रावण है हर द्वार॥ कदम-कदम पर हैं खड़े, लपलप करें सियार।जाये तो जाये कहाँ, हर बेटी लाचार॥ बची कहाँ है आजकल, लाज-धर्म की डोर।पल-पल लुटती बेटियाँ, कैसा कलयुग घोर॥ […]

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तनिक बैठो मेरे पास…..-गृहलक्ष्मी की कविता

Hindi Poem: मुझसे मुझको शिक़ायतें बहुत हैं,  आओ, तनिक बैठो मेरे पास, सब तुमको बतलाऊँ। सोचती हूँ, एक बार सुन ली जाए, और धीरे-धीरे सबमें सुधार किया जाए। बात-बात में क्यों हो जाती मैं उदास,  रखती क्यों सबसे इतनी आस।  क्यों अपने मन का मैं नहीं करती,  फ़िज़ूल बातों को मन में भरती। क्यों न मैं समय नियोजन की […]

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उसका कोना-गृहलक्ष्मी की कविता

Hindi Poem: घर के छुपे हुए कोने,जहाँ नजर ठहरती नहीं,जहाँ ठहरती है आहत सिसकियां,कभी सुकून के मौन क्षण,और कभी छूटी हुई सहेलियाँ,वो बिछड़ी हुई प्रेम कहानियाँ,ख्यालों में हुई वो मुलाकातें,अनछुए सलोने से सपने,बे रोनक दिन को सजाते हाथ,और खुद से खुद की सहलाती बात,इन्ही छुपे हुए कोनों में,रखें होते हैं उसने औरत होने के अहसास,अजनबी […]

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वो गुलाल प्रियतम का-गृहलक्ष्मी की कविता

Hindi Poem: गुलाल सा वो रंगाजब गालो को,आत्मा तक रंग गया,मेरे प्यासे अधरों का सावन ,वो छलिया फागुन  में बन गया ।निखर गई मैं,बिखर ग‌ई मैं,कैसे अब संभालूं खुद को,जबसे उसका चढ़ा गुलाल,एक नशा सा चढ़ गया।देख रही कभी उसको मै,कभी गालों पर गुलाल देखती हूं,छूटे से कभी छूटे ना,ऐसे रंग मे मुझको ,वो सांवरिया […]

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