Hindi Poem: मैं हिन्दुस्तान की बेटी,
मेरी पहचान है हिन्दी।
मुझे प्यारी है हर भाषा,
मगर अभिमान है हिन्दी।
निहित करुणा है माँ जैसी,
पिता सा प्यार है जिसमें।
प्रकट भावों को जो करती है,
वो आधार है हिन्दी।
ये संस्कृत की दुलारी है,
जुबाँ सबसे ये न्यारी है।
सहज, मीठी,मनोरम सी,
मगर फिर भी बेचारी है।
कहीं गुम सी हुई है आजकल,
जाने क्यों होंठों से ।
महज भाषा नहीं है,
मूल्यों का विस्तार है हिन्दी।
ये जन गण मन का गौरव है,
ये संस्कृति की धरोहर है।
यही है राजभाषा भी,
ये शब्दों का सरोवर है।
यही माँ भारती के,
चमकते माथ की बिन्दी।
मिला माँ शारदे से जो,
वही वरदान है हिन्दी।
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