अपने ही देश के कई राज्यों में हिन्दी को उचित स्थान प्राप्त नहीं है और हिन्दी बोलने वाले को हीन भावना से देखा जाता है। लेकिन, अब दुनिया भी कर रही है हमारी भाषा की जय। अंग्रेजी भाषा के कई अखबार अब हिन्दी में आने लगे हैं। अंग्रेजी के मुकाबले हिन्दी भाषा में ज्यादा चैनल आ रहे हैं और अपनी लोकप्रियता का झंडा गाड़ रहे हैं। उसी तरह कम्प्यूटर और मोबाइल पर भी हिन्दी का साम्राज्य लगभग कायम हो चुका है। हिन्दी की दबी-कुचली और सहमी छवि अब बदल रही है।
अब डिज्नीवर्ल्ड के ‘मिकी माउस’ और ‘डोनाल्ड डक’ की चुहलबंदी से मस्ती करते बच्चे अब उनके नटखट संवादों का मजा हिन्दी में भी ले रहे हैं। अमेरिका का स्पाइडर मैन भी अब हिन्दी में बातें करता है। वहां के कार्टून नेटवर्क, पोगो और डिस्कवरी भी अपने कई कार्यक्रम हिन्दी भाषा में प्रस्तुत कर रहे हैं।
इसका असर केवल मनोरंजन की दुनिया तक ही सीमित नहीं है, बल्कि विज्ञान, साहित्य और रचनात्मक लेखन के तमाम पैमानों पर भी देखा जा सकता है। हार्पर कॉलिन्स और पेंग्विन जैसे मूलत: अंग्रेजी के प्रकाशनों ने हिन्दी की अनूदित और मौलिक रचनाओं की छपाई के लिए बाकायदा अलग समूहों का गठन किया है। हिन्दी का पाठक अब केवल स्टेशन पर बिकने वाले जासूसी और रोमानी उपन्यासों तक सीमित नहीं है, बल्कि उसे हैरी पॉटर और नार्निया सीरीज की विश्व प्रसिद्ध किताबें भी चाहिए। कल तक हिन्दी का पाठक ओरहान पामुक और थॉमस ऌफ्रीडमैन की किताबें न पढ़ सकने का केवल मलाल ही कर सकता था। लेकिन, आज वह वक्त अब बीत चुका है। ‘रिच डैड पुअर डैड’, और ‘मेन आर फ्रॉम मार्स वुमेन आर फ्रॉम वीनस’ जैसी अत्यधिक बिकने वाली किताबों के हिन्दी संस्करण कहीं भी आसानी से मिल सकते हैं जिसे हम ऐतिहासिक शुरुआत कह सकते हैं। अंग्रेजी साहित्य और उसकी बिक्री की तुलना में हिन्दी को अभी बहुत दूरी तय करनी है, लेकिन इसमें कोई संशय नहीं की आने वाला समय हिन्दी का है। इसका अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि चेतन भगत की हाल में अंग्रेजी से अनुदित हिन्दी किताबों की बिक्री पूरे हिन्दी जगत के लिए एक रिकार्ड है। खुद चेतन भगत का मानना है कि जो लोग कल तक सिर्फ अंग्रेजी फिल्में देखते थे, अब वो हिन्दी फिल्म देखने से गुरेज नहीं करते, उसी तरह अंग्रेजी की पुस्तकों के शौकीन के हाथों में अब हिन्दी की किताबें भी देखी जा सकती हैं।
अब तो अदालतों में भी हिन्दी में कार्य होना शुरू हो गया है। हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय में हिन्दी में कार्यों का प्रयोग किया गया, जो काफी सफल रहा। इस तरह हिन्दी के बढ़ते प्रभाव और बाजार पर बनते पकड़ से बाजार की दुनिया में दशकों से बना यह भ्रम कि हिन्दी या क्षेत्रीय भाषाओं का इस्तेमाल करने वालों के पास खरीदने की क्षमता कम होती है, अब टूटने लगा है।
बल्कि सच्चाई तो यह है कि भारत में मध्य वर्ग के विस्तार के साथ एक ऐसा समूह पैदा हो रहा है, जो बाहरी दुनिया के बारे में अधिक से अधिक जानकारी प्राप्त करना चाहता है, वह भी हिन्दी माध्यम से, क्योंकि यह वर्ग अपने आपको हिन्दी भाषा में ज्यादा सहज पाता है। इसी नब्ज को पकड़ते हुए अंग्रेजी के नामी प्रकाशक अब हिन्दी के मैदान में अपने पैर जमा रहे हैं और अंतर्राष्ट्रीय स्तर की अंग्रेजी की किताबों को हिन्दी में अनूदित कर प्रकाशित कर रहे हैं। अब तो हालात यह है कि विज्ञापन की दुनिया भी हिन्दी की ओर अपना रूख करते हुए 90 प्रतिशत विज्ञापन हिन्दी में बना रहे हैं या बन रहे हैं। इसके पिछे मीडिया का भी बड़ा योगदान है। हिन्दी मीडिया के व्यापक विस्तार के कारण ही हिन्दी विज्ञापनों का जोर बढ़ा है।
गूगल और माइक्रोसॉफ्ट जैसी वैश्विक कंपनियों ने हिन्दी को अपने बाजार का अहम हिस्सा बनाते हुए कई उत्पाद बाजार में उतारे हैं, चाहे वह अनुवाद का विषय हो या फिर टाइपिंग का। उसी तरह ‘स्लमडॉग मिलियनेयर’ में हिन्दी का जय हो गाने का जादू ऑस्कर पुरस्कार समारोह में इस कदर सिर चढ़कर बोला कि दो ऑस्कर अवार्ड ऌप्राप्त हुए। अब हिन्दी के नए युग की शुरुआत हो चुकी है और आने वाला पल हिन्दी के लिए सुनहरा साबित होगा।
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