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bhootnath by devkinandan khatri

जनाने महल के पीछे वाले नजरबाग में आज दिन ही से गुप्त पहरे का इंतजाम हो रहा है। महारानी ने भैया राजा की स्त्री के विषय में जो कुछ महाराज को इत्तिला दी थी उसके लिए महाराज को बड़ी चिंता हो गई थी और उन्हें इस बात का बड़ा ही दु:ख था कि उनके महल में कोई गैर आदमी आ घुसे और फिर अछूता चला जाय। उन्होंने अपने दिल में इस बात का पक्का इरादा कर लिया था कि चाहे जिस तरह भी हो उस आदमी को जरूर गिरफ्तार करना चाहिए जो महल के अन्दर भैया राजा की स्त्री के पास गया था, संभव है

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कि उसके गिरफ्तार हो जाने से भैया राजा का भी कुछ पता चल जाय। अस्तु इस काम के लिए उन्होंने कोई दिलावर और होशियार आदमी पहरे पर मुकर्रर कर दिये तथा उन्हें ताकीद कर दिया कि वे बहुत ही गुप्त ढंग पर तथा पेड़ों और झाड़ियों की आड़ में छिपा कर पहरा दें तथा बाग या महल के अन्दर आते समय तो किसी को न रोकें परन्तु लौट कर जाते समय अवश्य गिरफ्तार कर लें।

इसके अतिरिक्त महाराज ने खुद भी उसी बाग में एक खास जगह पर रह कर रात बिताने का इरादा कर लिया था जिसकी खबर किसी को भी नहीं दी गईं थी, यहाँ तक कि उस बाग में पहरा देने वालों से भी यह भेद छिपाया गया था।

यह तो महाराज का इंतजाम था, अब दारोगा साहब ने क्या किया सो भी सुनिए, दारोगा को पूरी-पूरी खबर लग गई कि बाग में पहरे पर कौन-कौन आदमी मुकर्रर किए गये हैं एवं उन्हें क्या समझाया गया है क्योंकि राजकर्मचारियों में से बहुत-से आदमी दारोगा से मिले हुए थे जिसका सबब यह था कि एक तो दारोगा रिश्वत के ढंग पर बहुत-सा रुपया उन लोगों को बाँटा करता था दूसरे जमानिया राज्य का बड़ा अफसर होने के कारण लोग उससे डरते भी थे। आज भी दारोगा ने अपने काम निकालने के लिए उन लोगों में बहुत-सा रुपया बाँटा और काम हो जाने के बाद और भी इनाम देने का वादा किया था। काम इन लोगों के जिम्मे यह सुपुर्द किया कि जब कोई आदमी उस बाग में गिरफ्तार हो तो उसे महाराज के पास न ले जाकर सीधे दारोगा के पास पहुँचा दें और महाराज से कह दें कि चोर भाग गया या गिरफ्तार ही नहीं हुआ यानी जैसा मौका हो वैसा बहाना कर दें। केवल इतना ही नहीं बल्कि दारोगा ने अपने कई आदमी भी रात के समय उस बाग में काम करने के लिए तैनात कर दिए जिस बात की खबर महाराज को कुछ भी न थी।

दिन बीत गया और रात हुई। नजरबाग में पहरा देने वाले बड़ी मुस्तैदी के साथ नजर दौड़ाने, टोह लेने और इधर-उधर घूमने लगे। आधी रात जाने तक तो किसी को किसी तरह का खटका न हुआ मगर इसके बाद पहरे वालों ने एक नकाबपोश को दीवार फाँदकर बाग के अन्दर आते हुए देखा।

सभी पहरे वाले उसे देखते ही चैतन्य हो गए और सभी ने इस तौर पर उसका मुहाना रोकने की तैयारी कर ली जिसमें वह लौट कर किसी तरह भी भागने न पाए। सभी के देखते-देखते वह नकाबपोश जनाने महल की पिछली दीवार के पास जाकर खड़ा हो गया और उस खिड़की की तरफ देखने लगा जो भैया राजा के खास महल में पड़ती थी। थोड़ी देर तक वह उसी जगह खड़ा देखता रहा और इसके बाद उसने ऊपर की तरफ कमन्द फेंकी। जब कमन्द अड़ गई तो उसके सहारे वह ऊपर की तरफ चढ़ गया और आधे घंटे तक लौट कर नहीं आया। पहरे वालों ने चाहा कि वह कमन्द जिसके सहारे वह ऊपर की तरफ चढ़ गया था खींच ली जाय जिसमें वह इस रास्ते से उतर न सके और महल में ही गिरफ्तार कर लिया जाय परन्तु दारोगा साहब ने आदमियों ने उन लोगों को ऐसा करने से रोका और कहा कि अगर यह कैदी इस राह से नहीं लौटेगा और महल में गिरफ्तार हो जाएगा तो जरूर महाराज के पास भेज दिया जाएगा या खुद महाराज महल में पहुंचकर उसे अपने कब्जे में कर लेंगे, ऐसी अवस्था में हम लोगों के हाथ वह न आएगा और दारोगा साहब का काम भी न निकलेगा, अस्तु यही अच्छा होगा कि मुजरिम को इसी राह से उतरने दिया जाय।

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महाराज के सिपाहियों ने इस बात को कबूल कर लिया और वह कमन्द ज्यों-का-त्यों छोड़ दिया गया। आधे घंटे के बाद वह आदमी उसी कमन्द के सहारे नीचे उतरा और तुरंत ही सब सिपाहियों ने उसे घेर लिया मगर गिरफ्तार न कर सके क्योंकि वह बड़ा ही मजबूत, दिलावर और फुर्तीला साबित हुआ। इसके अतिरिक्त महाराज का यह भी हुक्म था कि उसके ऊपर कोई हर्बा न चलाया जाय। अगर हर्बा चलाया जाता तब तो बेशक इतने आदमियों की भीड़ में से निकल भागना उनके लिए कठिन हो जाता लेकिन बिना हर्बा चलाए उसको गिरफ्तार कर लेना भी कठिन हो गया। महाराज के सिपाहियों को किसी हर्बे से लड़ते हुए न देखकर उस बहादुर ने भी किसी सिपाही पर हर्बे का वार न किया और लड़ता-भिड़ता महल के नीचे से चलकर बाग के किनारे अर्थात् दीवार के पास पहुँच गया। वहाँ से उसके लिए दीवार फाँद कर निकल जाना कोई बड़ी बात न थी मगर उसने न-जाने क्यों बाहर निकल जाने का उद्योग न किया और लोमड़ी की तरह चक्कर काटता हुआ उन सिपाहियों के कब्जे से निकल पेड़ों की झुरमुट में जा घुसा जहाँ पहुँचते ही वह सभों की नजरों से गायब हो गया।

महाराज के सिपाहियों ने उसे मशाल की रोशनी के सहारे खोजना शुरू किया और आधे घंटे के बाद एक चमेली की झाड़ी में उसे बेहोश पड़े हुए पाया। उसी समय दारोगा साहब के आदमियों ने उस पर कब्जा कर लिया और उठाकर बाग के बाहर ले गए जहाँ से उसे दारोगा साहब के पास पहुंचा दिया गया।

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