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bhootnath by devkinandan khatri

संध्या का समय है। सूर्य भगवान अस्त हो चुके हैं। हवा में किसी कदर खुनक है तो सही परन्तु वह भली मालूम होती है। ऐसे समय में हम नहीं कह सकते कि तिलिस्मी दारोगा साहब किस नीयत से अपने मकान के पीछे वाले नजरबाग में टहल रहे हैं, मगर उनकी ऐसी आदत न थी और इन्हें लोगों ने संध्या के समय दिल बहलाने के लिए किसी बाग में टहलते हुए बहुत कम ही देखा होगा। पर आज गैर मामूली तौर पर उसका टहलना बेसबब नहीं है,

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उसका घड़ी-घड़ी ठंडी साँसें खींचना और घबराहट के साथ इधर-उधर देखना कहे देता है कि इस समय वह किसी गंभीर चिंता के निमग्न हो रहा है, साथ ही इसके बीच-बीच में उसके बदन में कंप तथा रोमांच के हो आने से यह भी विश्वास होता है कि वह किसी कारण से भयभीत हो रहा है। केवल इतना ही नहीं, एक दफे उसने बड़ी बेचैनी के साथ दाहिने हाथ से अपना माथा भी ठोंका जिससे जाना जाता है कि उसने जरूर कोई बुराई का काम किया है जिसके लिये अब पछताता और दिल में कहता है कि कहाँ की शामत आई थी जो मैंने यह काम किया!

इसी तरह के बहुत-से परेशानी और घबराहट के चिन्ह प्रकट करता हुआ दारोगा बड़ी देर तक बेचैनी से कदम उठाता अपने बाग में टहलता और थोड़ी-थोड़ी देर में सर उठाकर फाटक की तरफ देखता रहा। लगभग आधे घंटे के बाद जैपाल सिंह पर उसकी निगाह पड़ी जो कदम बढ़ाए हुए उसी की तरफ आ रहा था। उसके नजदीक पहुँचते ही दारोगा ने उससे कहा “ओफ, तुमने जाने में बहुत विलंब कर दिया!”

जैपाल सिंह : (गौर से दारोगा के चेहरे की तरफ देख के) नहीं तो, मगर क्यों? और इस समय आप बहुत ही उदास और दुखित भी जान पड़ते हैं।

दारोगा : मेरे दोस्त, इस समय मेरी अवस्था बहुत ही बुरी हो रही है और मैं अपने किये पर बहुत पछता रहा हूँ। सच तो यह है कि आज मैं अपनी जिंदगी से निराश हो बैठा हूँ जिसके अंधकारमय कैदखाने में तुम ही एक टिमटिमाते हुए चिराग हो, टिमटिमाते हुए मैं इसलिए कह रहा हूँ कि मेरी जिन्दगी के साथ तुम्हारी जान का भी बहुत बड़ा संबंध है।

जैपाल सिंह : बेशक् ऐसा तो है ही।

दारोगा : और मुझे इस समय केवल एक तुम्हारा ही भरोसा रह गया।

जैपाल: आखिर मामला क्या है सो तो कहिए? क्या भैया राजा की लाश में कुछ धोखा निकला?

दारोगा : कुछ क्या बिलकुल ही धोखा निकला, जिसे मैंने भैया राजा की लाश समझ जमीन के अन्दर गाड़ दिया था, वह वास्तव में मेरे ही एक ऐयार की लाश निकली और मैं कुछ नहीं कह सकता कि कब और किस ढंग से उनकी बदली हुई, क्योंकि मैं यह भी नहीं कह सकता कि वे भैया राजा वास्तव में भैया राजा थे या नहीं जिन्हें मैंने अपने मकान में पाकर फँसाया था!

जैपाल सिंह : और फिर यह भी कोई बात है कि आप ही का ऐयार भैया राजा बन कर आवे और आपको ही डाँट बताये!

दारोगा : हाँ, यह भी कदापि नहीं हो सकता!

जैपाल सिंह : मगर यह बात वास्तव में बुरी हुई! उधर जमना, सरस्वती, इन्दुमति के मामले में किसी ने धोखा दिया और इधर भैया राजा के बारे में…

दारोगा : मेरी कुछ समझ ही में नहीं आ रहा है कि यह बात क्यों कर हुई! क्या मेरा कोई दुश्मन मेरे घर में घुस आया और मेरे ही घर में से उन सभों को बदल कर ले गया? मगर यह भी एक असंभव-सी बात है, मेरे भुलभुलैया मकान की किसी दुश्मन को खबर ही क्या हो सकती है!

जैपाल सिंह : अब यह तो न कहिए, आपके मकान को एक ही रात में कुछ विश्वकर्मा ने तो बना ही नहीं दिया है, आखिर राज-मजदूरों ही ने तो बनाया है!

दारोगा : हाँ, यह तो ठीक कहते हो। खैर, परन्तु यह बताओ कि अब किस तरह जान बचे, किस तरह दुश्मन का पता लगे, और किस तरह इस मामले का सच्चा हाल मालूम हो?

जैपाल सिंह : यह कोई मामूली बात नहीं है, इसके लिए बहुत कुछ मेहनत करनी पड़ेगी तब कहीं दुश्मन का पता लगेगा। खैर इस काम को तो पीछे रखिए पहिले अपने को इल्जाम से बचाने की फिक्र करिए, मेरा तो अब खयाल हो रहा है कि महाराज ने जो सूरत देखी थी वह भूत न था बल्कि वास्तव में भैया राजा ही थे और आपको जहन्नुम में मिलाने के लिए वे कोई नाटक तैयार कर रहे हैं!

दारोगा : बेशक ऐसा ही है और मुझे भी जो भूत दिखाई दिया था वे जरूर असली भैया राजा ही रहे होंगे।

जैपाल सिंह : बेशक् वह भी भैया राजा ही होंगे, अपना नाटक दिखाकर किसी अनूठे ढंग से प्रकट हुआ चाहते हैं।

दारोगा : फिर अब क्या किया जाय?

जैपाल सिंह : मैं क्या बताऊँ, आपसे ज्यादा इस विषय में और कौन सोच सकता है? हाँ यह कह सकता हूँ कि मुझे जो कुछ आज्ञा दीजिए उसे करने के लिए मैं तैयार हूँ।

दारोगा : (कुछ सोचकर) चाहे जो कुछ भी हो मगर भैया राजा मुझे महाराज के सामने दोषी नहीं ठहरा सकते। यों उन्हें अख्तियार है चाहें स्वयं अपने हाथ से मेरा सर काट डालें मगर यह जबर्दस्ती के सिवाय इंसाफ का काम कदापि न कहला सकेगा, और हमारे महाराज जो इंसाफ के लिए जान देते हैं बेइन्साफी का काम कदापि न होने देंगे!

जैपाल सिंह : (आश्चर्य से) क्यों साहब, यह क्या बात आपने कही? भैया राजा अगर जीते हैं तो आपको दोषी क्यों न ठहरा सकेंगे?

दारोगा : भैया राजा को यह मालूम ही नहीं होगा कि मैंने उन्हें मुर्दा समझ कर बदनीयती के साथ जमीन के अन्दर गाड़ दिया है।

जैपाल सिंह : हाँ ठीक है, वह बात उन्हें भला कैसे मालूम हो सकती है! मगर हाँ, इस बात का सवाल जरूर हो सकता है कि आखिर उस लाश को जो उन्हीं की सूरत की-सी थी आपने क्या किया? अगर आपकी नीयत ठीक थी तो आपने हल्ला क्यों न मचाया, प्रकट क्यों नहीं किया, और महाराज से यह हाल क्यों नहीं कहा, उस बात को छिपाया क्यों?

दारोगा : ओफ! यह दूसरी बात है, इसके लिए समय पर काफी जवाब हो सकता है। और इसके लिए मैं इनकार कर सकता हूँ कि वहाँ अर्थात् मेरे घर में कोई भी लाश नहीं पाई गई। भैया राजा स्वयं भाग के चले गये। दूसरे की तो बात ही दूर है खुद भैया राजा ही मुझे किसी तरह कायल नहीं कर सकते और न वे यही बता सकते हैं कि मैंने उन्हें उस भूलभुलैया जैसे मकान में फँसाकर हम चले गये और फिर लौटकर नहीं आये! सो खैर इसके लिए भी मैं कोई जवाब सोच लूँगा।

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जैपाल सिंह : अगर यही बात है तो फिर आप इतना डरते क्यों हैं?

दारोगा : हाँ इतना जरूर हूँ, मेरी हिम्मत टूटी जाती है और भैया राजा के नाममात्र से ही मेरा कलेजा उछलने लगता है।

जैपाल सिंह : जिसका सबब जरूर यही होगा कि आप किसी-न-किसी बात में जरूर लाजवाब हो जाएँगे, और नहीं तो सिर्फ इन्हीं बातों का जवाब देना आपके लिए कठिन हो जाएगा कि भैया राजा के असली मामले की महाराज को खबर क्यों नहीं की? यह क्यों नहीं जाहिर किया कि वे आपके बाग में आए थे और जमना, सरस्वती तथा इन्दुमति को आपकी कैद से छुड़ाने की उन्होंने फिक्र की थी-इत्यादि।

दारोगा : हाँ यह बात जरूर खुटके की है! (कुछ सोच कर) अगर तुम्हारी राय हो तो राजा साहब को मैं इस मामले की खबर कर दूँ और कुछ अपनी तरफ से भी समझा-बुझा दूँ। तुम जानते ही हो कि वे निरे भोलेनाथ हैं। (रुककर और चौंक कर) हाँ एक बात तो मैंने तुमसे कही ही नहीं।

जैपाल सिंह : वह क्या?

दारोगा : मुझे खबर मिली है कि आज जनाने महल के पीछे वाले नजरबाग में गुप्त रीति पर सख्त पहरे का इंतजाम हो रहा है, पहरा देने वाले इस तरह छिप कर पेड़ों की आड़ में बैठेंगे कि बाग के अन्दर आने वाला कोई आदमी उन्हें देख न सकेगा पर वे बाग के अन्दर आने वाले को बखूबी देख और गिरफ्तार कर सकेंगे।

जैपाल सिंह : यह खबर आपको किसने दी?

दारोगा : उन्हीं पहरे पर मुकर्रर किए गए हुए आदमियों में से एक ने यह खबर सुनाई है।

जैपाल सिंह : हाँ वे सब तो आपके हितैषी ही हैं, मगर यह भी कुछ मालूम हुआ कि ऐसा इंतजाम करने का सबब क्या है?

दारोगा : सो तो ठीक मालूम नहीं हुआ मगर अंदाज से हम समझते हैं कि जिस तर भैया राजा भूत बनकर मुझे और महाराज को दिखाई दिए हैं उसी तरह भूत बन कर शायद महल में भी गये होंगे और यकायक भूत की तरह गायब न हो सके होंगे,। किसी ने भागते हुए देख लिया होगा और समझा होगा कि यह कोई आदमी है, या किसी तरह की कोई बात हुई होगी जिस पर महाराज ने यह समझ कर कि आज पुन: आवेगा गिरफ्तार करने के लिए ऐसा इंतजाम किया होगा।

जैपाल सिंह : हाँ, जरूर कोई ऐसी ही बात हुई होगी और ऐसी अवस्था में आपको ऐसा इंतजाम करना चाहिए कि जब वह आदमी गिरफ्तार हो (ईश्वर करे वह भैया राजा ही हों) तो उसे महाराज के पास पहुँचने के बदले गिरफ्तार करने वाले सीधे आप ही के पास पहुँचा दे। अगर वह वास्तव में भैया राजा निकले तो फिर कहना ही क्या है? आपके पौ बारह हैं!!

दारोगा : हाँ, यह तुमने अच्छी सलाह बताई और इस काम को मैं बखूबी कर भी सकूँगा। इस तरह अगर भैया राजा हाथ में आ गए तब तो मेरे सामने इस दुनिया में कोई नहीं, लेकिन अगर ऐसा न हुआ तो फिर अपने लिए बहुत कुछ चिंता करनी पड़ेगी, अच्छा हब मैं तुमसे थोड़ी-सी बातें और करूँगा मगर यहाँ नहीं।

इतना कहकर दारोगा ने जैपालका हाथ पकड़ लिया और उसे अपने साथ लिए हुए मकान की तरफ चला।

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