pyare dost santa
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उसे याद आया, दूर—बड़ी दूर बंगड़-झंगड़ देश में लड़कियाँ पढ़ नहीं पा रही थीं, क्योंकि बड़े लोग नहीं चाहते थे कि लड़कियाँ पढ़ें। वे लड़कियों के हाथ में बस झाड़ू-बुहारी ही देखना चाहते थे, कलम और किताबें नहीं।

बचपन से ही उन्हें घर के कामों में जोत दिया जाता था। और जिंदगी भर बस डाँट-फटकार ही उनके हिस्से आती थी। तो लड़कियाँ रोती थीं, दिन-रात रोती थीं।

बंगड़-झंगड़ देश की एक छोटी सी लड़की नीलू ने सांता को चिट्ठी लिखी। आँसुओं में कलम डुबोकर उसने सारी बातें लिख दीं। टूटे-फूटे अक्षरों में उसका दर्द बह आया था—

‘प्यारे दोस्त सांता, दूर—बहुत दूर हमारा देश है। बंगड़-झंगड़ देश।…मैं बंगड़-झंगड़ देश की एक छोटी सी लड़की हूँ। नीलू मेरा नाम है। मैं आठ बरस की हूँ, और बहुत दुखी हूँ।…हमारा देश अजीब है, सांता। यहाँ सिर्फ लड़कों को ही पढ़ने की इजाजत है। लड़कियों के हाथ में कोई किताब देख ले, तो वह आगबबूला हो जाता है।…

‘सच कहूँ तो इस देश के लोगों को पढ़ने-लिखने वाली लड़की नालायक लगती है। उसे वे फूटी आँखों नहीं देख सकतेे। इसलिए बंगड़-झंगड़ देश की लड़कियाँ रात-दिन रोती हैं और किताबों के लिए तरसती हैं।…

‘मैंने रामेसर भैया की किताबें चोरी-चोरी पढ़कर कुछ लिखना सीखा है।…पर अभी ठीक-ठीक लिख नहीं पाती। तो जैसा भी उखड़ा-पुखड़ा बना, लिख रही हूँ।…सब कहते हैं, तुम बच्चों के बड़े प्यारे दोस्त हो, सांता। सबको खुशियाँ बाँटते हो। तो क्या कभी हमारी मदद करने नहीं आओगे…? मैं क्रिसमस वाले दिन तुम्हारा इंतजार करूँगी। —तुम्हारी आठ साल की नन्ही सी दोस्त, नीलू’

सांता ने बग्घी उधर ही दौड़ा दी और हर लड़की के सिरहाने कहानी-कविता की रंग-बिरंगी किताबों से भरा एक सुंदर बस्ता रख दिया।

यही नहीं, उसने एक घर के आगे बड़ी सुंदर रँगोली भी बनाई। उस रँगोली के भीतर ढेर सारी किताबें थीं, जैसे वे कह रही हों, “हमसे दोस्ती करो, हम तुम्हें आगे बढ़ने का रास्ता दिखाएँगी!…”

फिर वह एक गरीब बच्चे भीमा के घर पहुँचा।

भीमा अनाथ था। कुछ साल पहले उसकी अम्माँ और बाबू दोनों ही गुजर गए थे। अब कहने को दुनिया में उसका कोई भी नहीं था।…वह गाँव के बाहर अकेला एक झोंपड़ी में रहता था। थोड़ा-बहुत आसपास के घरों का काम कर देता तो लोग दो वक्त की रोटी का इंतजाम कर देते।

भीमा को चित्र बनाना अच्छा लगता था, और बड़ा होकर वह चित्रकार बनना चाहता था। पर उसके पास न रंग थे, न कागज। भला कौन उसे लाकर देता? तो वह जमीन पर ही लकीरें खींचकर चित्र बनाता था।

सांता ने सोते हुए भीमा के पास कलर बॉक्स, पैन, पेंसिल और कुछ ड्राइंग शीट्स रखीं और झोंपड़ी के सामने एक सुंदर सा क्रिसमस ट्री उगा दिया…!

पर अभी तो बहुत बच्चे थे, जो उसका इंतजार कर रहे थे और नींद में भी शायद उन्हें सांता का ही सपना आ रहा था।…

सुबह होने में बस थोड़ी ही देर थी। सांता ने बग्घी को और तेजी से दौड़ाया। उसने मन में बार-बार उन नेक और भले बच्चों के चेहरे उभर रहे थे, जिन्होंने बहुत मन से उसे याद किया था और जिन्हें वाकई उसकी जरूरत थी। उसने धीरे से बुदबुदाकर कहा, “मैं आऊँगा, मैं आऊँगा…मैं जरूर आऊँगा बच्चो! यह मेरा प्रॉमिस है…!”

सुबह सांता वापस लौट रहा था, तो बग्घी में रखा ढेर सारे उपहारों वाला बड़ा सा पिटारा खाली हो चुका था। एक ही रात में उसने हजारों बच्चों को मुसकानें बाँटी थीं। पर फिर भी सांता का मन कुछ भारी था।

“अभी तो मुझे बहुत कुछ करना था, बहुत…! मैं कितनी कोशिश करता हूँ, फिर भी…फिर भी जरूर कुछ न कुछ छूट जाता है, जिसका मलाल मुझे बेचैन करता है।” सांता ने अपने आप से कहा।

“मैं आखिर कितना करूँ? बच्चे मुझे सबसे ज्यादा समझते हैं, पर वे भी यह नहीं समझते कि…!” कहते-कहते सांता के चेहरे पर गहरी उदासी छा गई।

‘ओह, एक सांताक्लाज नहीं, बहुत…बहुत सांताक्लाज चाहिए, इस दुनिया को सुंदर बनाने के लिए…!’ उसने सोचा।

पर तभी उसे याद आया, “इतने बच्चे, इतने नेक और अच्छे बच्चों से मैं मिलता हूँ हर रोज। अगर उनमें से कुछ बच्चे दूसरे बच्चों के लिए भी कुछ करने के लिए आगे आएँ, तो क्या नहीं हो सकता…?”

उसके मन में बार-बार एक ही बात गूँज रही थी, “अगर हर बच्चा सांता बन जाए तो यह दुनिया सुंदर बनेगी, सचमुच सुंदर। पर…पर क्या बच्चे तैयार होंगे इसके लिए?”

पर सांता कुछ और सोचता, तभी उसे अनंत दिशाओं में गूँजती हुई आवाज सुनाई दी, “हम बनेंगे, हम बनेंगे…हम बनेंगे सांता! हम सांता के कामों में मदद करेंगे।”

सांता मुसकरा दिया, उसकी उदासी छँटने लगी थी।…

और फिर एक नया, उम्मीदों भरा गीत जनमा उसके भीतर। फिर गुन-गुन करके वह गा उठा—

तुम धरती की तसवीर बदल दो, बच्चो,

तुम धरती की तकदीर बदल दो, बच्चो।

तुम धरती पर खुशियाँ लहराओगे कल,

मुट्ठी में नया सवेरा लाओगे कल,

हर दुखिया को हँसना सिखलाओगे कल,

हर सुखिया का सपना बन जाओगे कल।

कल की हो उम्मीद तुम्हीं, कल का सपना,

आगे, आगे, आगे ही तुमको बढ़ना।

सदा तुम्हारे साथ खड़ा हूँ, मैं सांता,

बड़ा पुराना दोस्त तुम्हारा, मैं सांता।

हर पल साथ निभाऊँगा मैं, वादा है,

दुख में दौड़ा आऊँगा मैं, वादा है,

थोड़ी खुशियाँ, दर्द तुम्हारा ज्यादा है,

लेकिन मैं हूँ साथ तुम्हारे, वादा है।

साथ तुम्हारे खड़ा रहूँगा दुख में भी,

साथ तुम्हारे खड़ा रहूँगा सुख में भी,

नहीं अकेला पड़ने दूँगा, वादा है,

नहीं राह में थकने दूँगा, वादा है,

नहीं उदासी घिरने दूँगा, वादा है,

चलो, चलो, ना गिरने दूँगा, वादा है।

मुझे पुकारोगे जब, दौड़ा आऊँगा,

आऊँगा, मैं आकर साथ निभाऊँगा।

आओ चलकर बदलें हम इस दुनिया को,

थपकी देकर चलो, सुलाएँ मुनिया को,

नन्ही उम्मीदों की फसल उगाएँगे,

इन हाथों से काम बड़े कर जाएँगे।

आओ, दीप जलाएँ, बड़ा अँधेरा है,

पर मुट्ठी में अपनी, नया सवेरा है,

आओ, ऊपर अंबर तक उड़ जाएँ हम,

आसमान को संदेशा दे आएँ हम,

कल नभ तक हम सेतु बनाकर जाएँगे,

धरती-अंबर मिलकर गाने गाएँगे।

बस्ती मानव की वहीं बसाएँगे हम,

चंदा को अपना दोस्त बनाएँगे हम,

मंगल पर भी जाकर दिखलाएँगे हम,

अब धरती का परचम लहराएँगे हम।

तुम आशा हो, विश्वास तुम्हीं हो बच्चो,

बीते कल का इतिहास तुम्हीं हो बच्चो,

उम्मीदों भरा सुनहरा कल हो तुम ही,

इस धरती पर सबसे निश्छल हो तुम ही।

कल धरती पर तुम नया सवेरा लाओगे

कल जर्रा-जर्रा धरती का चमकाओगे।

आओ, मिलकर गाना गाएँ क्रिसमस पर,

खुशियों की चादर लहराएँ क्रिसमस पर,

खूब हँसें, हँसना सिखलाएँ क्रिसमस पर,

उम्मीदों की फसल उगाएँ, क्रिसमस पर।

फूलों जैसा धरती को महकाएँ हम,

किलक-किलक सबको हँसना सिखलाएँ हम।

आसमान के तारे लेकर आएँगे,

उनसे हर घर, हर आँगन चमकाएँगे,

धरती की तसवीर बदलनी है हमको,

धरती की तकदीर बदलनी है हमको।…

गाते-गाते सांता जैसे किसी और ही दुनिया में पहुँच गया। अंबर के चाँद-सितारे सचमुच उसकी उजली दाढ़ी में उलझकर झलमल-झलमल कर रहे थे, और उसे कुछ होश ही न था।

वह आज वहाँ था, जहाँ से वापस आने में सचमुच उसे बहुत देर लगती थी।

ये उपन्यास ‘बच्चों के 7 रोचक उपन्यास’ किताब से ली गई है, इसकी और उपन्यास पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएंBachchon Ke Saat Rochak Upanyaas (बच्चों के 7 रोचक उपन्यास)