चलते-चलते सांता एक छोटे से, सुंदर पार्क के पास पहुँचा। जहाँ गुलाब के लाल-गुलाबी फूल थे। खूब हँसी बिखेरते हुए। उनकी भीनी-भीनी खुशबू जैसे आने-जाने वालों का रास्ता रोकती थी।
मगर सांता…? उसके तेजी से बढ़ते कदमों को तो किसी और ही चीज ने रोका था।
क्या…! क्या…! भला ऐसा क्या…?
असल में वहाँ कुछ बच्चे थे, जिनकी बातें उड़ते-उड़ते सांताक्लाज के कानों में पड़ीं। और तभी उसके बढ़ते कदम किसी तेज झटके के साथ रुक गए। उसने देखा, वहाँ सब बच्चे अच्छे कपड़े पहने हुए थे, बस एक नील को छोड़कर। और सब मिलकर उसी का मजाक उड़ा रहे थे।
सांता कानों के कान खोलकर उत्सुकता से उन बच्चों की बातें सुनने लगा।
जल्दी ही वह जान गया कि नील के पापा नहीं हैं। माँ बड़ी गरीबी और बेहाली में उसे पाल रही थी। पर नील को गरीबी इतनी नहीं चुभ रही थी, जितनी दोस्तों की बातें। सांता चुपके से एक पेड़ के पीछे छिपकर खड़ा हो गया और उनकी बातें सुनने लगा।
“अरे वाह पिंटू, तेरी पैंट और शर्ट तो बड़ी सुंदर है। लगता है, ब्रांडेड है।” विकी ने पिंटू की तारीफ करते हुए कहा।
इस पर पिंटू बड़े रोब से बोला, “और क्या, मेरे पापा तो हमेशा सबसे बढ़िया चीज लाते हैं। सबसे कीमती। सबसे लासानी। वो कहते हैं, पहनो तो दुनिया देखे, इसी में तो मजा है।…और वैसे भी क्रिसमस आने वाला है तो हर चीज शानदार होनी चाहिए। तुझे पता है जैकी, मेरे पापा बहुत बड़ा केक लाने वाले हैं, ड्राई फ्रूट्स वाला। साथ ही बढ़िया-बढ़िया चॉकलेट्स का सुंदर सा पैक। खूब बढ़िया खिलौने भी, म्यूजिक वाले। इनमें बड़ा वाला डिंगो जोकर भी है जी, जो कंप्यूटर गेम्स खेलता है…!”
कहते-कहते पिंटू हँसा।
उसकी हँसी में बड़ी ऐंठ थी, बड़ा घमंड, जिसकी छाप उसके लाल टमाटर जैसे सुर्ख गालों पर भी नजर आने लगी थी।
दूसरों को छोटा साबित करने वाला घमंड।
“मेरे पापा भी इतने खिलौने लाए हैं, इतने खिलौने सुंदर-सुंदर…!” अब विकी ने भी थोड़ी आवाज ऊँची करते हुए तान छेड़ी।
“अच्छा, बताना तो, कौन-कौन से खिलौने…?” यह पिंटू था।
“अरे, बहुत सारे हैं, बहुत सारे…!” विकी ने जरा गर्दन नचाकर कहा, “अच्छा, देखो, इनमें एक तो कान हिलाकर ही-ही हँसने वाला बड़ा मस्त-मस्त टेडीबियर है। और ना, उसके आगे-पीछे घूमने वाला एक प्यारा-प्यारा रोबो भी है। तुम देखोगे तो बस देखते रह जाओगे। और भी ना, बहुत सारे खिलौने हैं, बहुत सारे।…हाँज्जी, याद आ गया! एक ना बहुत सारे करतब दिखाने वाला लाल-लाल गुड्डा भी है। बहुत सुंदर, बहुत ही सुंदर…! बटन दबाओ, तो वो है ना, एक बड़ी सी पीली बॉल से भी खेलने लगता है। देख के खूब मजा आता है, खूब मजा।…तुम लोग कभी आना मेरे घर। आकर देखना जरा मेरे शानदार गुड्डे को। उसके लिए एक डाॅल भी मैंने पापा से कहकर मँगवाई है…! और फिर देखना, हम कैसा सुंदर क्रिसमस ट्री सजाते हैं इस बार? पापा कह रहे थे, इस बार हंड्रेड गुब्बारे और फिफ्टी चाकलेट्स टाँगेंगे क्रिसमस ट्री में। देख के तुम दंग रह जाओगे, हाँ…!” विकी ने घमंड से इतराकर कहा।
“और एक बेचारा नील है कि…वही पुराने कपड़े।…लगता है, इसके घर तो केक भी नहीं आया। बेचारा…!” पिटू ने मजाक उड़ाते हुए कहा।
सुनकर नील चुप रहा, कुछ बोला नहीं। विकी बोला, “क्यों नील, तुम मम्मी से कह नहीं सकते थे नए कपड़ों के लिए…?”
“तुम्हें बताया तो है विकी, कि मेरे पापा नहीं हैं। मम्मी कितनी मुश्किल से घर चला रही हैं, मुझे पता है सब कुछ। तो फिर मैं कैसे कहता…?” कहते हुए नील का गला भर आया।
“अरे, मम्मी-पापा तो रोते ही रहते हैं यार। इनकी तो आदत होती है रोने की! तू जबरदस्ती मनवा लेता अपनी बात…!” पिंटू गर्दन अकड़ाकर बोला।
“नहीं पिंटू, मेरी मम्मी कहती हैं कि क्रिसमस तो प्यार का त्योहार है। जो अच्छे बच्चे होते हैं, यीशु उन्हें बहुत प्यार करता है। मेरी मम्मी कहती हैं कि प्रभु यीशु है ना, वो गरीब-अमीर नहीं देखता। उसको सीधे-सच्चे लोग पसंद हैं…!” नील ने धीरे से कहा, और फिर चुपचाप घर की ओर चल दिया।
“जो अच्छे बच्चे होते हैं, यीशु उन्हें बहुत प्यार करता है।…सचमुच, कितनी बड़ी बात कह दी नील ने!” बुदबुदाते हुए सांता भी आगे चल दिया। पर नील का उदास चेहरा अब भी उसके भीतर खलबली मचाए हुए था। उसकी आँखें नम थीं।
इस बार भी उसे अपने भीतर गूँजता एक गीत सुनाई दिया। और फिर धीरे-धीरे गीत के सुर उसके होंठों पर आकर थिरकने लगे—
अच्छे हो तुम नील, बहुत ही अच्छे-अच्छे,
सच्चे हो तुम नील लाड़ले, दिल के सच्चे,
आज तुम्हारी बातें सुनकर सीधी-सादी,
याद आ गया, बचपन में जब मेरी दादी,
बतलाया करती थीं ऐसी प्यारी बातें,
बीत गए हैं दिन कितने ही, कितनी रातें,
मगर बना था, उस दिन ही मैं सचमुच सांता,
आज जानता जिसको धरती का हर बच्चा!
मैं भी एक दिन भोला-भाला था, तुम सा ही,
और प्यार से दिल भर आता था, तुम सा ही,
तुम भी नील, बनोगे एक दिन सबके प्यारे,
चमक उठोगे सबकी आँखों के बन तारे,
नाज करेगी माँ कह-कहकर नील लाड़ले,
बन जाओगे सारे जग के नील लाड़ले!
आज भले ही दुख हैं, लेकिन घबराना ना,
दुख में आँखों में आँसू तुम भर लाना ना,
मैं सांता हूँ साथ तुम्हारे, साथ रहूँगा,
जितना भी मैं कर पाऊँगा, नील करूँगा,
लाऊँगा उपहार, लाड़ले, क्रिसमस के दिन,
जाता हूँ, अब आऊँगा मैं, क्रिसमस के दिन…!
“आऊँगा, अब आऊँगा मैं क्रिसमस के दिन,/आऊँगा, मैं आऊँगा…!” गुनगुनाता हुआ सांता अपनी धुन में आगे बढ़ता जा रहा था। तभी अचानक उसे एक छोटी सी बच्ची के सिसकने की आवाज सुनाई दी।
“अरे-अरे, यह क्या…?” सांता ने गरदन घुमाकर देखा तो सामने वाले घर की देहरी पर पिंकी नजर आ गई। साफ लग रहा था, आज उसकी पिटाई हुई थी। पर किसने पीटा उसे, किसने…?
सांता के भीतर खल-बल, खल-बल शुरू हो गई।
जल्दी ही उस छोटी सी बच्ची के रोने के साथ-साथ उसकी टूटी-टूटी बातों से सांता को समझ में आ गया कि पिंकी की मम्मी बात-बात पर उसे डाँटती थी और उसके भाई चिंटू की हर बात मानती थी।
देखकर नन्ही सी, भोली बच्ची का दिल टूट जाता।
रोज-रोज की पिटाई…! पर उसका कसूर क्या है? उसने भला किसी का क्या बिगाड़ा है…? पिंकी दुखी थी और लगातार कराहती हुई सी, बुदबुदा रही थी, “पता नहीं मैंने क्या कसूर किया है कि सुबह से शाम तक बस पिटाई, पिटाई…पिटाई…! इससे तो अच्छा है कि मैं पैदा ही न हुई होती।”
“नहीं बिटिया, ऐसा नहीं कहते। मैं कुछ करूँगा, जरूर करूँगा।” कहते-कहते सांता दुखी मन से आगे चल दिया। उसके चेहरे पर एक भाव आता था, एक जाता था। धीरे से बुद-बुद करके उसने कहा, “हे भगवान, यह कैसी दुनिया हम बना रहे हैं? आखिर हर छोटे-बड़े इनसान को इज्जत से जीने का हक है या नहीं? और बच्चे…! उन्हें भला कोई कैसे मार सकता है…?”
सांता के कदम कुछ लड़खड़ाने से लगे थे। उसने धीरे से बुदबुदाते हुए कहा, “हमारी इस दुनिया में बच्चों को प्यार भी नसीब नहीं? अरे भाई, तुम उन्हें कुछ और न दो, मगर प्यार तो दो। बच्चे प्यार के भूखे हैं…!”
सांता के भीतर एक दुख भरा गीत जनमा, और जल्दी ही वह उसके होंठों पर आ गया। अब वह बड़ी उदासी के साथ गा रहा था, और उसकी ममता बार-बार उस प्यारी बच्ची पिंकी पर निसार होती थी—
तुम प्यार से प्यारी हो पिंकी,
तुम राजदुलारी हो पिंकी,
तुम रोना ना, बस, रोना ना,
रो-रोकर गाल भिगोना ना।
मुश्किल तो आती-जाती है,
मन को भी वह तड़पाती है,
पर तुमको ऊपर उठना है,
कल हिमगिरि पर भी चढ़ना है।
तुम काम करोगी बड़े-बड़े,
पत्थर जो भारी अड़े-अड़े,
तुम उनको परे हटाओगी,
उस सीढ़ी पर चढ़ जाओगी।
कल नील गगन तक जाना है,
तुमको परचम लहराना है।
मत रोना पिंकी, रोना ना,
आँसू से गाल भिगोना ना,
मैं सांता, मित्र तुम्हारा हूँ,
तन-मन का बड़ा सहारा हूँ,
कल आऊँगा, मैं आऊँगा,
कुछ लेकर पिंकी, आऊँगा…!
आगे चलने का मन न था, पर सांता एक चक्कर तो पूरा लगा ही लेना चाहता था। हर हाल में। कुछ आगे चलकर वह फिर एक पेड़ की ओट में खड़ा हो गया। उसके बिल्कुल पास से दो बच्चे गुजर रहे थे। शायद छुट्टी होने पर वे स्कूल से घर वापस आ रहे थे। उनमें से एक दुबला-पतला रमजानी अपने दोस्त राजू से कह रहा था, “मैं कितना दुखी हूँ, तुझे क्या बताऊँ, राजू। मेरे मम्मी-पापा तो हर वक्त बस लड़ते-झगड़ते रहते हैं। इसीलिए तो मम्मी ने आज लंच भी नहीं दिया। जी करता है, कभी घर से भाग जाऊँ…!”
बातें…बातें और बातें…!
किस्से…किस्से…और किस्से…!
“जिस दुनिया में इतने दुख हैं, उसमें साल में एक दिन बच्चों को उपहार बाँट देने से क्या होगा…?” दुखी सांता चलते-चलते एक गहरी उसाँस लेकर रुका, और फिर आगे चल पड़ा।
“दुनिया में इतने सारे दुख हैं, इसीलिए तो तुम्हारी जरूरत है सांता। इसीलिए… इसीलिए…!” अंदर किसी ने पुकारा तो सांताक्लाज के लड़खड़ाते कदम सँभल गए। लगा, खुद करुणामय यीशु ही हथेली पर दीया रखे उसे आगे का रास्ता दिखा रहे हैं।
और सांता चलता गया, चलता गया।…
चलते-चलते रात हो गई। घोर अँधेरे में वह चुपचाप घर की ओर जा रहा था। तभी चलते-चलते उसके कदम गली के नुक्कड़ वाले एक ढाबे के पास जाकर ठिठक गए। रात काफी हो गई थी। पर दो बच्चों की आवाज आ रही थी। इनमें बीनू बरतन माँज रहा था। पास ही उसका दोस्त सत्ते बैठा था।
“तुझे क्या लगता है सत्ते?…क्या सांताक्लाज मेरे पास भी आएगा। मेरे पास…?” बीनू ने बरतने माँजते हुए अविश्वास से पूछा।
“हाँ-हाँ, क्यों नहीं? मैंने तो सुना है, वह हर बच्चे के पास जाता है। बहुत अच्छा है सांताक्लाज। सीधे-सादे और भले बच्चे उसे पसंद हैं…!” सत्ते बोला।
“पर मुझे तो वह जानता ही नहीं। फिर देखो, मेरे कपड़े कितने मैले और पुराने हैं! फटे हुए भी हैं। सांताक्लाज आएगा भी तो अमीर बच्चों के पास। भला मुझ जैसे गरीब बच्चे से मिलने की उसे कहाँ फुरसत?…मेरे तो मम्मी-पापा दोनों ही नहीं हैं, दुनिया में कोई नहीं। एक पुरानी सी कोठरी है बस, रहने के लिए…वह भी ऐसी जगह कि सांता पहुँच ही नहीं सकता।” कहकर बीनू सिसकने लगा।
“तुमने क्यों कहा बीनू, कि दुनिया में तुम्हारा कोई नहीं है? क्या मैं भी तुम्हें अच्छा नहीं लगता…?” सत्ते ने दुखी होकर पूछा। वह आसपास ही रहता था। बीनू से बातें करना उसे अच्छा लगता था।
“नहीं-नहीं, तुम तो अच्छे हो। बहुत अच्छे! हमेशा मुझे हिम्मत बँधाते हो। नहीं तो पता नहीं मेरा क्या होता…?” रोकते-रोकते भी बीनू की रुलाई छूट गई।
“रोओ मत बीनू, मुझे भरोसा है कि सांताक्लाज आएगा तुम्हारे पास…!” सत्ते बोला, “मेरी अम्माँ कहती हैं, जो अच्छे और भले बच्चे हैं, सांताक्लाज उन्हें बहुत प्यार करता है।”
सांताक्लाज रुका। उसने हौले से अपनी दाढ़ी पर हाथ फेरा, और कुछ सोचता हुआ आगे चल दिया।
अनजाने में ही, उसके भीतर एक गीत फूट पड़ा था। अजीब सी कँपकँपाहट लिए, बड़ा उदास गीत। दिन भर कूड़ा बीनने, साफ-सफाई करने और ढाबे में छोटू बनकर बरतन माँजने वाले मैले-कुचैले, दुखी बच्चों का गीत। यह दुनिया के ऐसे बहुत सारे बच्चों का गीत था, जिन्हें दिनभर डाँट खानी पड़ती है, और कितना कुछ सहना पड़ता है। उनके जीवन में कोई सुख नहीं। उम्मीद की कोई किरण नहीं।
दुनिया के ऐसे तमाम-तमाम बच्चों के दुख और उदासियों की स्याही घुलती जा रही थी, सांता के उस गीत में। और उनके दिलों की नेकी और उजाला भी। जैसे प्रचंड आँधियों के बीच एक दीया टिमटिमा रहा हो। चलते-चलते वह अपनी धुन में गाने लगा—
तुम जो ढाबों में मलते हो बरतन सारे,
तुम जो कूड़ा बीन रहे हो, मेरे प्यारे,
आज नहीं तो कल तुमको दुनिया समझेगी,
बदलेगी यह दुनिया, सचमुच ही बदलेगी।
इस बदली दुनिया के तुम ही राजदुलारे,
तुम राजा, तुम रानी, तुम आँखों के तारे,
मेहनत से कल ऊँचा अपना नाम करोगे,
कोई जिसको कर ना पाया, काम करोगे।
ऊपर, ऊपर, उठना है अब तुमको, प्यारे,
ऊँचे, ऊँचे चढ़ना है अब तुमको, प्यारे,
कल मुट्ठी में चंदा को ले आओगे तुम,
धरती पर खुशियों की फसल उगाओगे तुम।
एक नई ही कथा लिखोगे, गाओगे तुम,
आँधी बनकर अग-जग में छा जाओगे तुम।
मन करता है, गोदी में ले प्यार करूँ मैं,
अपना सब कुछ एक तुम्हीं पर वार करूँ मैं,
कल आऊँगा लेकर कुछ उपहार अनोखे,
बहुत मिले हैं दुख, तुमको धोखे पर धोखे,
पर कल आकर आँसू पोंछूँगा मैं बीनू,
हँसी और मुसकान तुम्हें दूँगा मैं बीनू,
सत्ते सा ही दोस्त तुम्हारा सदा रहूँगा,
हर मुश्किल में साथ तुम्हारे खड़ा रहूँगा।
आऊँगा, कल आऊँगा मैं सचमुच बीनू,
लाऊँगा, कुछ लाऊँगा मैं सचमुच बीनू,
होगा वह उपहार सलोना मेरे मन का,
होगा सच ही यादगार दिन वो जीवन का,
आऊँगा, मैं आऊँगा, कल ही आऊँगा,
हाँ बीनू, सच्ची कहता, कल मैं आऊँगा…!
गाते-गाते सांता रुका, तो उसकी आँखें गीली थीं, पर होंठों पर थिरकती एक मुसकान भी, जो दुनिया के लाखों बच्चों को भाती थी। इसीलिए तो दुनिया के सारे बच्चे उसे ‘दोस्त सांता’ कहकर प्यार करते थे।
ये उपन्यास ‘बच्चों के 7 रोचक उपन्यास’ किताब से ली गई है, इसकी और उपन्यास पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं – Bachchon Ke Saat Rochak Upanyaas (बच्चों के 7 रोचक उपन्यास)
