बहुरानी के फँस जाने के घंटे-भर बाद असली भैया राजा उसी राह से बहुरानी के कमरे में दाखिल हुए जिस राह से दारोगा उन्हें धोखा देकर ले गया था। बहुरानी की मसहरी खाली देखकर आश्चर्य हुआ और यह सोचकर कि कोई दुर्घटना जरूर हुई है उनका कलेजा धड़कने लगा।
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वे इधर-उधर की चीजों पर निगाह दौड़ाते हुए सदर दरवाजे पर गये तो दरवाजे को अन्दर से बंद पाया जिससे उनका शक और भी मजबूत हो गया और वे सोचने लगे कि जरूर बहुरानी इसी कमरे में थी। अगर यहाँ न होती तो यह दरवाजा अन्दर से क्यों कर बंद होता तो क्या वह अपनी खुशी से कहीं बाहर चली गई? नहीं, बाहर जाने का यह तिलिस्म रास्ता तो उसे मालूम ही न था, वह क्यों कर बाहर गई होगी! तब वह जरूर किसी धोखे में डाली गई।
इसी प्रकार से कुछ देर सोचने के बाद पुन: भैया राजा सदर दरवाजे के पास गये और उसकी कुंडी जो अन्दर से बंद थी खोल कर उसी तिलिस्मी राह से दरवाजे खोलते और बंद करते हुए मकान और बाग के बाहर निकल गये और उस जगह पर पहुँचे जहाँ दारोगा ने बहुरानी को रथ पर चढ़ाया था। वहाँ भूतनाथ खड़ा उनका इंतजार कर रहा था जिसे वे बाहर ही छोड़ गये थे।
भूतनाथ : (आश्चर्य से) आप बहुत जल्द बाहर चले आए।
भैया राजा : हाँ, जिस काम के लिए मैं गया था वह काम नहीं हुआ अर्थात् मेरी स्त्री मुझे नहीं मिली जो उसके रहने का स्थान था। मैं वहाँ कुछ देर तक ठहरकर उसका इंतजार करता अगर उस कमरे का दरवाजा खुला हुआ देखता मगर आश्चर्य तो यह है कि कमरे का दरवाजा अन्दर से बंद था।
भूतनाथ : अगर दरवाजा अन्दर से बंद था तो वे जरूर कमरे के अन्दर ही रही होंगी. अस्त या तो वे अपनी इच्छानुसार किसी तिलिस्मी राह से बाहर निकल गई हैं या ताज्जुब नहीं किसी मुसीबत में फंस गई हों।
भैया राजा : मैं भी तुम्हारे दूसरे खयाल का पक्षपाती हूँ, वह जरूर किसी मुसीबत में फँस गई हैं क्योंकि एक तो उसे वहाँ से बाहर निकल जाने का तिलिस्मी रास्ता मालूम न था, दूसरे…
भूतनाथ : तो जरूर कोई दुश्मन वहाँ पहुँचा जिसने उन्हें धोखा दिया।
भैया राजा : यह काम दारोगा के सिवाय और कौन कर सकता है? अगर वास्तव में वह कहीं गायब हो गई या उसे किसी दुश्मन ने फँसा लिया है तो कल मेरे जासूस इस बात की खबर देंगे।
भूतनाथ : मैं तो इस समय भी पता लगाने की कुछ कोशिश करूँगा।
इतना कहकर भूतनाथ ने अपने ऐयारी के बटुए में से सामान निकाल कर बत्ती जलाई और वहाँ की जमीन को गौर से देखने लगा। रथ के दोहरे पहिए का निशान जमीन पर देख कर वह चौंका और बोला, “देखिए यह चार पहिए का रथ का निशान यहाँ मौजूद है।
जरूर वह यहाँ तक लाई गई हैं और यहाँ से रथ पर बैठाकर उन्हें कोई ले गया है। अब आप अपने डेरे पर जाइए और मुझे पता लगाने के लिए इसी जगह छोड़ दीजिए। मैं इसी निशान से दुश्मन का पता लगा लूँगा!”
भैया राजा : अगर मैं भी तुम्हारे साथ रहूँ तो क्या हर्ज है?
भूतनाथ : नहीं, मुझे इस का में रोशनी का सहारा लेना पड़ेगा चाहे वह रोशनी किसी चिराग या मोमबत्ती की हो या चमकते हुए सूर्य भगवान की किरणों की। अगर मुझे कोई देख भी लेगा तो कुछ चिंता नहीं मगर आपको कोई देख ले तो आपकी इच्छा के विरुद्ध होगा।
भैया राजा : हाँ यह तो ठीक है, खैर तुम अपना काम करो, मैं कुछ देर तक तुम्हारे साथ रहूँ फिर मौका पा हट जाऊँगा और सवेरा होते-होते तक भाई साहब के पास पहुँचूँगा तथा मुकाबले में देखूंगा कि ईश्वर की तरफ से हमारा क्या फैसला होता है।
भूतनाथ : बहुत खूब, इसमें कोई मुजायका नहीं।
उस रथ के पहियों का निशान बिना कहीं से बिगड़े या खराब हुए दारोगा के मकान तक चला गया था क्योंकि अभी तक उस रास्ते पर आमदरफ्त नहीं हुई थी जिससे कि वह निशान बिगड़ता और नष्ट होता, अस्तु भूतनाथ और भैया राजा को विश्वास हो गया कि बहुरानी को मुसीबत में डालने वाला दारोगा ही है।
भैया राजा : लो गदाधरसिंह, हम लोगों का गुमान बहुत ठीक निकला, अब तुमको चाहिए कि उस दुष्ट के कब्जे से मेरी स्त्री की जान बचाओ।
भूतनाथ : आप इस काम का बोझ मुझ पर डाल कर जाइए और राजा साहब से मिलने की फिक्र कीजिए, वहाँ जाने पर आपको महल के अन्दर का हाल-चाल भी मालूम हो जाएगा जो आपकी स्त्री के गायब होने के बाद वहाँ पैदा हुआ होगा तथा घटना की सच्चाई जानी जाएगी।
“अच्छा” कह कर भैया राजा वहाँ से चले गए और सूर्य उदय होने के पहिले ही बिना रोक-टोक खासबाग में दाखिल होकर राजा साहब के पास पहुंचे जो कि नजरबाग के सामने एक चन्दन की चौकी पर बैठे हाथ-मुँह धो रहे थे। अभी तक बहुरानी के गायब होने का हाल उन्हें मालूम नहीं हुआ था मगर महल के अन्दर लौंडियों में कानाफूसी मची हुई थी।
भैया राजा पर निगाह पड़ते ही राजा साहब अपना काम छोड़ उठ खड़े हुए और चौकी से नीचे कूद कर नंगे ही पाँव उनकी तरफ झपटे जो राजा साहब को उठते देख तेजी के साथ उनकी तरफ बढ़ते जा रहे थे।
राजा साहब ने बड़े प्रेम से भैया राजा को गले लगा लिया और दोनों की आँखों से प्रेम के आँसू बहने लगे। कई आदमी दौड़े हुए कुँवर गोपालसिंह के पास चले गए और उन्हें भैया राजा के आने की खबर दी। कुछ देर बाद भैया राजा का हाथ पकड़े हुए राजा साहब दालान में आए जहाँ बहुत-सी कुर्सियों के अतिरिक्त चाँदी-सोने की भी दो कुर्सियाँ रखी हुई थीं जिन पर हाँ, नहीं करते हुए दोनों भाई बैठ गए और इस तरह बातचीत करने लगे-
राजासाहब : क्यों भाई, हमने क्या कसूर किया जो तुम इस तरह हमें छोड़कर चले गए थे?
भैया राजा : मैं तो सदा ही आपके चरणों का दास हूँ और जितना प्रेम आप मेरे साथ रखते हैं उसे भी मैं खूब जानता हूँ, फिर यह कब हो सकता है कि मैं आपको कसूरवार समझूँ और रंज होकर चला जाऊँ। मगर इतना जरूर है कि आपने दारोगा के फेर में पड़ कर मेरी जान का कुछ खयाल न किया।
मैंने आपके कमरे में पहुँचकर यह प्रकट कर दिया कि दारोगा ने मुझे मार डाला है। मगर आपने इस पर कुछ भी ध्यान न दिया यद्यपि यह बात बहुत ही ठीक थी और वास्तव में दारोगा ने मुझे मार डाला था परन्तु ईश्वर ने एक मददगार पहुँचा दिया जिससे मेरी जान बचा ली और अपने घर ले जाकर मुझे आराम से रखा। मैं कई दिनों तक इस बात का इंतजार करता रहा कि देखें आप मेरे लिए क्या करते हैं मगर जब मैंने देखा कि मेरी बनिस्बत दारोगा पर आप ज्यादा मुहब्बत रखते हैं तब मैं लाचार और हताश होकर रह गया।
राजासाहब : मेरे सोने वाले कमरे में पहुँचकर जो तुमने किया और जमीन पर लिखकर बताया उस पर मुझे कैसे विश्वास हो सकता था? मैं तो भूत प्रेत का तमाशा समझकर चुप रहा। फिर आश्चर्य है कि तुम दारोगा की शिकायत करते हो कि ‘उसने मुझे मार डालने का प्रयत्न किया’ मगर मेरी समझ में नहीं आया कि उसने तुम्हारे साथ ऐसा सलूक करने में अपना क्या फायदा समझ रखा था ?
आखिर यह भी कहो कि उसने ऐसा क्यों किया? मैं समझता हूँ कि इस मामले में तुम्हें धोखा हुआ है और इसी धोखे में पड़कर तुमने दारोगा के साथ बड़ी बेइंसाफी की। उनका कान काट डाला और मुँह काला करके जूतों का हार गले में डालकर सरे बाजार छोड़ दिया।
भैया राजा : जी नहीं, मुझे धोखा नहीं हुआ और दारोगा के साथ जो मैंने यह कार्रवाई की वह भी बेजा नहीं की। असल में तो वह मार डालने के लायक था मगर इस खयाल से मैंने उसकी जान न ली थी कि आप उसे अपना दोस्त समझते हैं और मैं आपका दिल दुखाना नहीं चाहता। केवल थोड़ी-सी सजा देकर छोड़ दिया, सो भी ऐसी हालत में जब कि आपने मेरे बारे में उसकी करतूतों पर कुछ ध्यान नहीं दिया।
इसी बीच में कुँवर गोपालसिंह भी आ गये और अपने पिता और चाचा को प्रणाम करके आश्चर्य करते हुए एक कुर्सी पर बैठ गये।
राजा : फिर भी मैं यही कहता हूँ कि तुमको दारोगा के बारे में धोखा हुआ। जबकि इतने दिनों तक उसने तुम्हारे साथ कोई बुरा बर्ताव नहीं किया तो अब उसे ऐसी कौन-सी जरूरत आ पड़ी थी कि तुम्हें…
भैया राजा : (बात काट कर) जी उस दिन की घटना ही ऐसी बेढब थी कि दारोगा के लिए मुझे मार डालने की जरूरत आ पड़ी। मैं वह घटना बयान करता हूँ, आप सुनिए।
इतना कहकर भैया राजा ने उस दिन का सब हाल बयान किया और जमना, सरस्वती और प्रभाकर सिंह का हाल भी कह सुनाया मगर यह नहीं कहा कि भूतनाथ को इस मामले से क्या संबंध था अर्थात् भूतनाथ को इस मामले से बिलकुल ही अछूता रखा। यहाँ तक कि इस किस्से में उसका नाम भी नहीं लिया।
भैया राजा की जुबानी सब हाल सुनकर राजा साहब को बड़ा ही आश्चर्य हुआ। वे सिर झुकाकर कुछ सोचते रहे और तब बोले-
राजा : इस समय जमना, सरस्वती और प्रभाकर सिंह कहाँ हैं?
भैया राजासाहब : वे अपने उसी दोस्त के यहाँ हैं जिसने उनकी और उनके साथ ही साथ हमारी भी रक्षा की थी। उन्हें आपके सामने बुलाकर उनकी गवाह दिला सकता हूँ।
राजासाहब : नहीं-नहीं, गवाही की क्या जरूरत? अगर मैं तुम्हें झूठा समझूँगा तो उन्हें सच्चा क्यों समझूँगा? मगर तुमने बड़े ही आश्चर्य की बात कहीं। दारोगा ने तो तुम्हारी दुश्मनी के कारण मुझे कुछ और ही बयान किया था।
भैया राजा : उसने क्या कहा था?
इसके जवाब में सीधे-सादे राजा साहब ने वह सब हाल कह सुनाया जो दारोगा ने गढ़कर राजा साहब से कहा था अर्थात् भैया राजा आपको और कुँवर गोपालसिंह को मार कर स्वयं जमानिया के राजा बनना चाहते हैं और इसी काम में मदद माँगते थे, देने से इनकार किया तब मेरी यह दुर्दशा की गई इत्यादि।
भैया राजा : (क्रोध में आकर) क्या उस दुष्ट ने आपसे ऐसा कहा! और आपके दिल में यह बात बैठ गई?
इसका जवाब राजा साहब ने कुछ भी न दिया जिससे भैया राजा समझ गये कि दारोगा की बातों पर भाई साहब को विश्वास हो गया है।
भैया राजा : खैर आप दारोगा को यहाँ बुलाइए, मैं जरा उससे पूछूँ तो सही।
राजासाहब : हमारी-तुम्हारी बातों में उसे बुलाने की जरूरत ही क्या है?
ऐसा जवाब राजा साहब ने इस खयाल से दिया कि उन्हें इस बात का शक हो गया कि दारोगा यहाँ आवेगा तो भैयाराज उसे जरूर मारेंगे मगर भैया राजा को यह जवाब बहुत बुरा लगा वह राजा साहब का मतलब समझ गए।
भैया राजा ने कुछ और कहा ही चाहते थे कि लौंडियों को कोलाहल सुनकर सब कोई चौंक पड़े और उस तरफ देखने लगे जिधर तीन-चार लौंडियाँ घबराई हुई आकर खड़ी हो गई थी। बहुरानी के गायब हो जाने से महल में कोलाहल मच चुका था और वही खबर सुनाने के लिए लौंडिया आई थीं।
राजा साहब ने बड़े ही आश्चर्य के साथ यह खबर सुनी और भैया राजा की तरफ देखकर कहा, “मैं समझता हूँ कि वह तुम्हारी ही इच्छानुसार यहाँ से चली गई होगी क्योंकि मैंने यह सुना है कि तुम कई दफे महल में उससे मिलने के लिए आए थे।
पहिले तो मुझे यह बात मालूम न थी और महल में आने वाले को चोर या बदमाश समझता था मगर जब वह तुम्हारी भावज ने तुम्हारी स्त्री से सुन कर मुझसे कहा तब मुझे मालूम हुआ कि महल में आने वाले तुम्हीं हो और तब मैं एक तरह पर निश्चिन्त-सा हो गया।”
भैया राजा : (कुछ क्रोध में आकर) बेशक् यह काम भी आपके दारोगा साहब ही का है। जब तक अपने लिए कोई ठिकाना नहीं बना लेता तब तक मैं उसे यहाँ से क्यों कर ले जा सकता था? आप दारोगा को जरूर बुलाइए, बिना उसके आए मेरी बातों का कोई नतीजा नहीं निकलेगा।
मुझे आपका और बेचारे गोपालसिंह का दुश्मन बनाया और आपने भी उस पर विश्वास कर लिया! जरूर मेरी स्त्री का चोर वही दुष्ट है। आप इस बात से निश्चिन्त रहिए, मैं कदापि जमानिया का राजा नहीं बनना चाहता।
यदि आपको इस बात का विश्वास न होगा तो मैं अपने को आपके सामने ही मार कर आपके दिल से यह खुटका दूर कर दूंगा मगर अपने मरने से दारोगा को सुखी न होने दूंगा। पहिले दारोगा और अपनी स्त्री को मार कर निश्चिन्त हो जाऊँगा तब आपके चरणों में अपना सर अर्पण करूँगा। अपनी स्त्री को इसलिए मारूँगा कि मेरे बावद उस किसी तरह का दु:ख न भोगना पड़े।
राजा : नहीं-नहीं-नहीं, ऐसा न करो, मैं इस खून खराबे को पसन्द नहीं करता, मैं खुशी से तुम्हें यहाँ का राजा बनाने के लिए तैयार हूँ और मुझे विश्वास है कि गोपाल को भी इसमें कोई उज्र न होगा क्योंकि वह बड़ा ही पितृ-भक्त है और मेरी आज्ञा को ईश्वर की आज्ञा के समान मानता है, साथ ही इसके दारोगा को भी इस राज्य से अलग करके तुम्हें बेफिक्र कर दूंगा और उसे अपने साथ जंगल में ले जाकर किसी ठिकाने निवास करूँगा क्योंकि वह मेरा साथ छोड़ना पसन्द न करेगा!

भैया राजा : अफसोस, आपकी सभी बातों से दारोगा की तरफदारी टपकती है। उसके सामने आपके दिल में मेरी कुछ भी कद्र नहीं है और उसकी बातों के आगे मेरी बातें सच्ची नहीं समझी जाती हैं, अस्तु मैं वही करूँगा जो कह चुका हूँ क्योंकि इतना कह जाने पर भी मैं आपको ईश्वर के समान मानता हूँ।
मैं इस बात को साबित करके दिखा दूंगा कि मेरी स्त्री का चोर भी वही है। बेशक् मुझसे भूल हुई कि इतने दिनों तक गायब रहकर आपकी मुहब्बत की जाँच करता रहा! आज मुझे मालूम हो गया कि दारोगा के सामने मेरी कितनी इज्जत है। मैं अब एक क्षण भी यहाँ रहना पसन्द नहीं करता और आपका चरण छूकर बिदा होता हूँ।
इतना कहकर भैया राजा उठ खड़े हुए और राजा साहब का चरण छूकर वहाँ से रवाना हुए। राजा साहब कितनी ही, “हाँ-हाँ, सुनो-सुनो!” कहते रहे मगर भैया राजा ने एक भी न सुनी, लाचार राजा साहब बैठे-के-बैठे रह गये मगर कुँवर गोपालसिंह उठ खड़े हुए और भैया राजा के पीछे-पीछे बाग के बाहर निकल गये।
वहाँ पर गोपालसिंह ने भैया राजा का पैर पकड़ लिया और कहा, “आप जहाँ जी चाहे जाइए मगर मेरी दो-चार बातें सुनते जाइए! मैंने आपका कोई कसूर नहीं किया है और मैं आपको अपना दुश्मन समझता हूँ, अस्तु मुझ पर जो आपका प्रेम है उसका खून मत कीजिए!”
भैया राजा अटक गये, उन्होंने गोपालसिंह को उठाकर छाती के साथ लगा लिया और बोले, “नहीं बेटा, मुझे तुमसे रंज नहीं बल्कि तुम्हारे मिजाज और तुम्हारी लायकी से मैं बहुत ही प्रसन्न हूँ, तुम्हें होनहार समझता हूँ और तुम पर भरोसा रखता हूँ। कहो क्या कहते हो?”
गोपाल सिंह : मुझे जो कुछ कहना है एकांत में कहूँगा, यहाँ बहुत से आदमी हैं।
भैया राजा : अच्छा मैं तुम्हारे साथ एकांत में चलता हूँ।

