gunahon ka Saudagar by rahul | Hindi Novel | Grehlakshmi
gunahon ka Saudagar by rahul

“अरे, सुना तुमने ?”

“क्या हुआ भई ?”

“कल रात सेठ जगताप और चौहानजी के लड़कों ने एक हरिजन लड़की का अपहरण कर लिया और उसकी लाज लूटने वाले थे।”

गुनाहों का सौदागर नॉवेल भाग एक से बढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें- भाग-1

“हां सुना तो था किसी से। मगर विवरण नहीं मालूम हो सका।”

“विवरण आज के अखबार में आ गया है।”

“अच्छा ! क्या लिखा है ?”

“पूरे शहर और जिले के हरिजन चढ़ दौड़े थे। उन लोगों ने दीपा को बचा लिया और सेठ जगताप ने हजारों के जनसमूह में उस हरिजन लड़की को अपनी बहू बनाने की घोषणा कर दी।”

“क्या ? हरिजन लड़की और सेठ जगताप की बहू ?”

“हां, भई। आज उन दोनों की सगाई है और यह सगाई हरिजनों की ही बस्ती में होगी।”

“हैरत है…!”

ये बातें रेस्तरां का मालिक और एक ग्राहक आपस में कर रहे थे। अमर और अमृत बैठे जाने कब से चाय के घूंट ले रहे थे। दोनों के होंठों पर विजय मुस्कान फैल गई।

“अब क्या सोचा, शेरवानी साहब ?”

“समझ में नहीं आता, सेठ साहब। चौहानजी तो राजनीति की बहुत बड़ी चाल-चल गए।”

“अपने बेटे को बचाकर मेरे बेटे को फंसा दिया।”

“मैं भी कुछ न बोल सका।”

जगताप ने व्हिस्की का घूंट भरकर नथुने फुलाते हुए कहा‒“मगर यह असंभव है। मैं मर जाऊंगा। मगर एक नीच जाति की लड़की को अपने घर की बहू बनाकर नहीं लाऊंगा।”

“मामला तो अभी सगाई तक ही सीमित है।”

“सगाई के लिए भी तो हरिजनों की बस्ती में जाना पड़ेगा। मैं इतना बड़ा अपमान सहन नहीं कर सकता, शेरवानी साहब।”

“इसके सिवा कोई दूसरा रास्ता भी तो नहीं।”

“रास्ता है !”

“वह क्या…?”

“चाहे पचास लाख रुपये खर्च हो जाएं। बुलाओ दूसरे शहर से बदनाम-बदनाम बदमाशों को और लगवा दो आग हरिजनों की बस्ती में !”

“सोच लीजिये पूरी बिसात ही उलट जायेगी। हरिजनों की बस्तियां भी बहुत बड़े वोट बैंक हैं आपके लिए।”

“लेकिन इस बार चौहान को तो किसी तरह सीट नहीं मिलनी चाहिए।”

जगताप उछल पड़ा‒“लखनलाल…वह हरिजन…?”

सेठ साहब ! पूरे जिले के हरिजन वोट आपकी झोली में होंगे। मुस्लिम वोटों का बैंक तो मेरे कब्जे में है ही। ऊंची जातिवालों के वोट आप खरीद ही लेंगे। और इस तरह चौहान का पत्ता साफ हो जाएगा।”

“शेरवानी साहब ! यह तो दूर की बात है। आप आज की बात कीजिये। शाम को कैसे रोका जाए इस होने वाली सगाई को ?”

सेठ जगताप ने घूंट भरकर गुस्से से कहा‒“मेरा तो जी चाहता है कि गोली मार दूं इस उल्लू के पट्ठे प्रेमप्रताप को !”

शेरवानी ने चुटकी बजाई और बोला‒“नाइस आइडिया !”

“क्या…?”

“जरा प्रेमप्रताप को बुलाइए तो।”

जगताप ने एक नौकर से प्रेमप्रताप को बुलवाया, जो नशे में धुत्त था।

शेरवानी ने उसे ऊपर से नीचे तक देखकर कहा‒“क्यों बेटे ? मार के जख्मों में बहुत दर्द है, जो दिन में इतनी पी रहे हो ?”

पप्पी ने गुस्से से कहा‒“जखमों में दर्द कम है। दर्द तो इस बात है कि वह हरामजादा चेतन चौहान, जिसने उस हरिजन लड़की को देखकर गाड़ी रोकी थी, मुझे फंसाकर अलग हो गया।”

“असल किस्सा क्या था ?”

पप्पी ने किस्सा बताया तो शेरवानी ने मुस्कराकर कहा‒“इसका मतलब है, तुम अब भी नहीं समझे। सचमुच बच्चे हो।”

“किशनराज चौहान ने तुम्हारे डैडी से यह बदला ले लिया।”

“किस बात का ?”

“वह एम॰ पी॰ की सीट पर बैठना चाहता था। लेकिन नीति-वश हमें एम॰ पी॰ की सीट एक सरदार को दिलवानी पड़ी क्योंकि वह नब्बे प्रतिशत खालिस्तान समर्थक था। अब वह सेंटर में है, इसलिए अब खालिस्तान विरोधी है।”

“ओहो…!”

“चौहान को एम॰ एल॰ ए॰ की ही सीट मिली और कोई मंत्रालय भी नहीं मिला, जिसका दोषी वह तुम्हारे डैडी को समझता है। एक बार उसने नशे में मुझसे कहा भी था कि एक दिन सेठ जगताप की इज्जत सड़कों पर न नीलाम कर दी तो चौहान नाम नहीं।”

“उसकी तो…”

“उसने वह कर दिखाया। हरिजन लड़की जरूर चेतन की फंसाई हुई होगी और अब वह तुम्हारी पत्नी बनेगी, चेतन मजे करेगा।”

“मैं उस सूअर के बच्चे को जान से मार दूंगा।”

“एक योग्य बेटे का फर्ज है कि बाप की इज्जत बचाए। अब लूट के केस में देख लो, मैंने और तुम्हारे डैडी ने किस तरह बाजी उलटकर तुम्हें बचा लिया, कांस्टेबल अमरसिंह को सस्पैंड करा दिया।”

पप्पी ने व्हिस्की का घूंट लेकर गुस्से से कहा‒“मैं कसम खा रहा हूं। चेतन को जिंदा नहीं छोडूंगा।”

शेरवानी ने रिवाल्वर देकर कहा‒“जाओ, मार डालो। लेकिन शहर से कहीं बाहर ले जाकर। वह तुम्हारा दोस्त है। उसे शक भी नहीं होगा कि तुम सच्चाई जान गए हो।”

पप्पी ने रिवाल्वर ले लिया और कमरे से निकल गया तो जगताप ने कहा‒“यह आप क्या कर रहे हैं शेरवानी साहब ?

“आपकी इज्जत बचा रहा हूं।”

“क्या मतलब ?”

“हरिजन लड़की को बहू बनाने की घोषणा आप कर चुके थे। चेतन दीपा का प्रेमी था। यह यही चाहता था कि दीपा प्रेमप्रताप को मिले। इसलिए चेतन धोखे से प्रेमप्रताप को शहर से बाहर ले गया। उससे कहा कि सगाई मत करो, वरना तुम्हें जान से मार दूंगा। आपके बेटे ने अपनी जान बचाने के लिए उसे जान से मार डाला।”

“लेकिन वह पकड़ा जाएगा और हम उसे जमानत पर भी नहीं छुड़ाएंगे। आज की सगाई कैंसिल। अगले इलेक्शन तक केस चलेगा। उस दौरान मैं लखनलाल को मक्खन लगाकर एम॰ एल॰ ए॰ के लिए तैयार कर लूंगा कि सेठ साहब चाहते हैं कि होने वाला सम्बन्धी एम॰ एल॰ ए॰ बन जाए।”

“और एम॰ एल॰ ए॰ बन जाने के बाद ?”

“तब तक तो लखनलाल एम॰ एल॰ ए॰ को अपनी सीट से इतना प्यार हो जाएगा कि उसकी लगाम जिधर चाहो, मोड़ दो।”

जगताप ने मुस्कराकर कहा‒“सचमुच आप दूर की कौड़ी लाते हैं।”

“अब मैं इन्स्पेक्टर दीक्षित को फोन कर दूं कि वह प्रेमप्रताप की गिरफ्तारी में देर न करे। कहीं चौहान सम्भलने से पहले जवाबी हमला न कर बैठे !”

“ठीक है।”

शेरवानी फोन उठाकर डायल घुमाने लगा।

जैसे ही गाड़ी जंगल में शहर के किनारे पहुंची, पप्पी ने कहा‒“जरा रोक तो चेतन।”

“क्यों…?”

“पेशाब करूंगा।”

चेतन ने गाड़ी रोक दी।

पप्पी उतर गया, उसने पीछे हटकर उसकी तरफ रिवाल्वर तानते हुए गुर्राकर कहा‒“नीचे उतर।”

चेतन हंसकर बोला‒“साले क्या ज्यादा चढ़ गई है ?”

“अबे, तू उतरता है या नहीं ?”

“तेरा दिमाग तो ठीक है ?”

“ठीक नहीं था। लेकिन जब से तेरी असलियत खुली, ठीक हो गया।”

“मेरी असलियत कैसी ?”

“तूने बाकायदा षड्यंत्र रचकर मुझे और मेरे डैडी को हरिजनों में फंसवाया, वरना तेरे बाप ने दीपा के साथ तेरी शादी की घोषणा क्यों नहीं की ?”

चेतन जबदस्ती हंस पड़ा और बोला‒“साले…पागल…जिस जगह मैं था, उसी जगह तू भी था। हम दोनों के पिताओं ने आपस में बातचीत करके फैसला किया था और तेरी तथा दीपा की शादी की घोषणा की थी।”

“चेतन ! मैं तेरी किसी धूर्तता में नहीं आऊंगा। तेरे बाप की मेरे डैडी से दुश्मनी है। मेरे डैडी के खिलाफ तेरे बाप ने जो षड्यंत्र तैयार किया था, उसमें तू भी उनका साथी था। वह हरिजन लड़की दीपा पहले ही से नियत जगह खड़ी कर दी गई थी। उसने आंख मुझे मारी थी और गाड़ी तूने रोकी थी।”

“खूब ! उसकी जाति-बिरादरी वालों ने तेरे साथ मुझे भी मारा था। उसे किस खाने में फिट करेगा तू ? क्या उन्होंने मुझे छोड़ दिया था ?”

“तुझे मारते नहीं तो क्या मुझे संदेह नहीं हो जाता ? तूने थोड़ी-सी मार खायी। लेकिन मैं तो जीवन भर के लिए फंस गया। मेरे बाप की इज्जत गई। हमारे कुल में दाग लग गया।”

चेतन ने उसे ध्यान से देखकर कहा‒“ये सब बातें तुझसे किसने कहीं ?”

“मेरे पिता और शेरवानी साहब ने। वे लोग तेरे बाप के राजनीतिक हथकंडों को अच्छी तरह समझते हैं, वरना मैं तो आज फंस गया था।”

“देख प्रेमप्रताप, होश से काम ले। मुझे अपनी सफाई का एक मौका दे दे।”

“मेरा दिमाग नहीं फिर गया। तुझे मौका दे दिया तो फिर क्या तू हाथ आएगा ? यहां से तो तेरी लाश का भी पता नहीं चलेगा।”

चेतन का चेहरा सफेद हो गया था।

उसने कहा‒“देख, पप्पी ! तू मुझे मारकर पछताएगा।” हम दोनों ही किसी षड्यंत्र का शिकार हो रहे हैं।”

“मेरे पिताजी क्या मुझसे झूठ बोलेंगे ? नहीं चौहान…हर्गिज नहीं…!” उसने रिवाल्वर चेतन की तरफ दोनों हाथों से ताना और होंठ भींचकर कहा‒“तू मोटरसाइकिल से उतर या मत उतर। मैं गोली चला रहा हूं।”

“अच्छा-अच्छा, मैं उतर रहा हूं। लेकिन मुझे एक मिनट का मौका तो दे।” कहते-कहते चेतन नीचे उतर आया।

और फिर अचानक प्रेमप्रताप ने ट्रेगर दबा दिया। ‘धांय’ की आवाज के साथ ही चेतन की हृदयविदारक चीख से जंगल का सन्नाटा गूंज उठा।

चेतन ने अपनी छाती पकड़ते हुए होंठ भींचकर कहा‒“पागल…आदमी…तू मेरी सफाई तो सुन लेता…अरे, हम दोनों इतने अच्छे दोस्त हैं…संदेह करने से पहले उस दोस्ती का ख्याल तो किया होता…!”

प्रेमप्रताप के हाथ थर-थर कांप रहे थे। शरीर में ठंडी-ठंडी लहरें दौड़ रही थीं। ऐसा लगा, जैसे उसका सारा नशा हिरन हो गया हो।

चेतन घुटनों के बल बैठ गया और तेज-तेज सांसों के साथ बड़ी मुश्किल से बोला‒“तेरे…बाप ने…तुझसे इतना बड़ा…झूठ क्यों बोला…मुझे नहीं मालूम…लेकिन…मैं अब…दुनिया से जा रहा हूं…ऐसे मौके पर आदमी झूठ नहीं बोलता। मैं गीता की सौगन्ध खाता हूं…मैंने…तेरे साथ कोई षड्यंत्र नहीं रचा था…!”

पप्पी के हाथ से रिवाल्वर निकलकर गिर पड़ा। उसने कंपकंपाती आवाज से कहा‒“चेतन…!”

चेतन ने कराहते हुए कहा‒“हमने…आज तक…मिलकर…छोटे-मोटे अपराध किए थे…आज तेरे बाप के एक झूठ ने…तुझे कातिल बना…दिया…तेरे बाप ने…तेरे हाथों…मुझे मरवाकर…तेरे साथ भी दुश्मनी की है…”

“चेतन…?”

अचानक प्रेमप्रताप चेतन के पास बैठ गया। मगर चेतन लुढ़ककर चारों खाने चित हुआ और फिर जड़ हो गया।

पप्पी बैठा थर-थर कांप रहा था। उसके होश उड़ गए थे, अचानक उसने पदचापें सुनीं। वह हड़बड़ाकर मुड़ा। दूसरे ही पल उसका पूरा शरीर हिलकर रह गया।

सामने खड़ा हुआ इंस्पेक्टर दीक्षित रूमाल से पकड़कर रिवाल्वर उठा रहा था। पप्पी का जी चाहा कि वह भाग खड़ा हो।

मगर इंस्पेक्टर दीक्षित ने बड़े इत्मीनान से कहा‒“आइए, प्रेमबाबू ! मेरे साथ चलिए।”

प्रेमप्रताप ने अनायास कहा‒“कहां…?”

दीक्षित ने जवाब दिया‒“थाने…लेकिन घबराइए मत। आपको अभी चालान काटकर जेल भेज दिया जाएगा।”

“म…म…मगर…”

“मैंने कहा न, परेशान न हों। आपको चेतन के पिता चौहान साहब ने फंसाकर एक हरिजन लड़की से आपका विवाह करा देने की चाल चली थी। वह अपनी चाल का खुद ही शिकार हो गया।”

“म…म… मैं समझा नहीं।”

“उसकी चालाकी का उसे दंड मिल गया और अब आप जेल में होंगे तो आपकी सगाई भी नहीं हो सकेगी दीपा से। आपको बयान यह देना है कि चेतन दीपा का प्रेमी था। यहां लाकर वह आपको मारना चाहता था। लेकिन अपने बचाव में आपने उसे मार दिया।”

फिर वह मुस्कराया और बोला‒“और अपने बचाव के लिए किसी के हाथों किसी का खून हो जाए तो फिर उसे कानून की तरफ से कोई दंड नहीं मिलता।”

“जब तक यह केस चलेगा तब तक दीपा वाला मामला भी ठंडा पड़ जाएगा। इसलिये आप उससे शादी से भी जाएंगे।”

प्रेमप्रताप सन्नाटे में रह गया।

उसने बड़ी मुश्किल से कहा‒“सिर्फ इतनी-सी बात के लिए डैडी ने मेरे हाथों मेरे दोस्त का खून करा दिया…और मुझे एक खूनी बना दिया ?”

“पप्पी साहब ! राजनीति में सबकुछ उचित है। बाप, बेटे को और बेटा बाप को मार डालते हैं ? क्या आपने इतिहास नहीं पढ़ा ? बादशाहत पाने के लिए औरंगजेब ने अपने बाप शाहजहां को कैद कर दिया था और भाई दारा शिकोह का खून करा दिया था।”

अचानक पता नहीं किधर से एक जन्नाटेदार बड़ा-सा पत्थर बंदूक की गोली की तरह आया और इंस्पेक्टर दीक्षित की कनपटी पर पड़ा।

खटाक की आवाज हुई। इन्स्पेक्टर दीक्षित की आंखों में अंधेरा छा गया। रिवाल्वर उसके हाथ से गिर गया। फिर वह खुद भी बेहोश होकर लुढ़क गया।

प्रेमप्रताप की समझ में कुछ नहीं आ रहा था।

अचानक पेड़ की आड़ में से तेजी से अमर सामने आया और अमर को देखते ही प्रेम के होश और भी ज्यादा उड़ गए।

अमर ने उसके करीब पहुंचकर कहा‒“घबराओ मत। मैं इस समय तुम्हारा दुश्मन नहीं हूं। मैं जैसा कहूं, वैसा करो‒वरना चेतन की लाश और यह रिवाल्वर तुम्हारे गले में फांसी का फंदा डलवा देंगे।”

प्रेमप्रताप थूक निगलकर बोला‒“म…म…मैं क्या करूं ?”

“तुम कुछ मत करो। तुम्हारे होश ठिकाने नहीं हैं।”

अमर ने दीक्षित के हाथ से गिरा हुआ रिवाल्वर, उसी के रूमाल से पकड़कर उठाया उसके ऊपर प्रेमप्रताप की उंगलियों के निशान साफ किए और रिवाल्वर खुद इंस्पेक्टर दीक्षित के हाथ में इस प्रकार पकड़वा दिया कि उसके ऊपर उसी के हाथ के निशान बन जाएं।

फिर उसने प्रेमप्रताप से कहा‒“यह मोटरसाइकिल किस की है ?”

“च…च…चेतन की…!”

“इसे यहीं रहने दो…आओ…!”

प्रेमप्रताप का हाथ पकड़कर उसने एक दिशा में भागना शुरू कर दिया। प्रेमप्रताप भी उसके साथ भागता चला गया।

Leave a comment