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bhootnath by devkinandan khatri

जमानिया में आधी रात के समय तिमिस्मी दारोगा अपने मकान में बैठा किसी विषय पर विचार कर रहा है। उसके सामने कई तरह के कागज और चीट्ठियों के लिफाफे फैले हुए हैं, जिनमें से एक चिट्ठी को यह बार-बार उठाकर गौर से देखता और फिर जमीन पर रख कर कुछ सोचने लगता है। दारोगा के बगल में सटकर एक कमसिन खूबसूरत और हसीन औरत बैठी हुई है। उसके कपड़े और गहने के ढंग तथा भाव से मालूम होता है कि वह बाबाजी (दारोगा) की स्त्री या गृहस्थ औरत नहीं है बल्कि कोई वेश्या है जो कि तिलिस्मी दारोगा अर्थात् बाबाजी से कोई घना संबंध रखती है।

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एक चिट्ठी पर कुछ देर तक विचार करने के बाद दारोगा ने उस औरत की तरफ देखा और कहा- “बीबी मनोरमा, वास्तव में यह चिट्ठी गदाधरसिंह के हाथ की लिखी हुई है। यह चिट्ठी को देखकर तुमने मुझ पर बड़ा अहसान किया, अब वह जरूर मेरे कब्जे में आ जाएगा। मैं उसे अपना साथी बनाने के लिए बहुत दिनों से उद्योग कर रहा हूँ पर वह मेरे कब्जे में नहीं आता था, मगर अब उसे भागने की जगह न रहेगी।

मनोरमा : (मुस्कुराती हुई) ठीक है, मगर मैं अफसोस के साथ कहती हूँ कि इस चिट्ठी को जो गदाधरसिंह के हाथ की लिखी हुई है बल्कि उसकी लिखी हुई और चीट्ठियों को भी जो आपके सामने पड़ी हुई हैं और जिन्हें मैं जबर्दस्ती नागर से ले आई हूँ आज ही वापस ले जाऊँगी क्योंकि नागर से तुरन्त ही वापस कर देने का वादा करके ये चीटियाँ आपको दिखाने के लिए मैं ले आई थी।

दारोगा : (कुछ उदास चेहरा बना के) ऐसा करने से मेरा काम नहीं चलेगा।

मनोरमा : चाहे जो कुछ हो, आपने भी तो तुरंत वापस कर देने का वादा किया था।

दारोगा : ठीक है, मगर अब जो मैं देखता हूँ तो इन चिट्ठियों की बदौलत मेरा बहुत काम निकलता दिखाई देता है।

मनोरमा : तो क्या आप चाहते हैं कि मैं नागर से झूठी बनूँ और वह मुझे दगाबाज कह के दुश्मनी की निगाह से देखे जिसे मैं अपनी बहिन से भी ज्यादा बढ़ कर मानती हूँ।

दारोगा : नहीं-नहीं, ऐसा क्यों होने लगा, जब तुम उसे बहिन से बढ़कर मानती हो और वह भी तुम्हें ऐसा ही मानती है तो क्या वह दो-तीन चीट्ठियाँ तुम्हारी खुशी के लिए नहीं दे सकती और तुम मेरी खुशी के लिए उन्हें मेरे पास नहीं छोड़ सकतीं?

मनोरमा : नहीं, ऐसा नहीं हो सकता। गदाधरसिंह और नागर में बहुत गहरी मुहब्बत का बर्ताव है, क्या उसे आप मेरे ही हाथ से खराब कराना चाहते हैं?

दारोगा : नहीं नहीं, मैं ऐसा नहीं चाहता। अगर तुम और नागर चाहोगी तो गदाधरसिंह को इन चिट्ठियों के बारे में कुछ भी खबर न होने पावेगी और उन दोनों को मुहब्बत का सिलसिला ज्यों-का-त्यों कायम रहेगा।

मनोरमा : क्या खूब! आप भी कैसी भोली-भाली बातें करते हैं। इन्हीं चिट्ठियों को दिखाकर तो आप गदाधरसिंह को अपने कब्जे में किया चाहते हैं और फिर कहते हैं कि इन चिट्ठियों के बारे में गदाधरसिंह को कुछ भी खबर न होगी कि वे आपके कब्जे में आ गई है।

दारोगा : (शर्मिन्दा होकर) तुम जानती हो कि मैं तुम्हें कितना प्यार करता हूँ और किस तरह तुम्हारे लिए जान तक देने को तैयार हूँ

मनोरमा : मैं खूब जानती हूँ और इसीलिए आपकी खातिर इन चिट्ठियों को थोड़ी देर के लिए नागर से माँग लाई हूँ नहीं तो क्या गदाधरसिंह की शैतानी और उदंडता को नहीं जानती! वह बात-की-बात में बिगड़ खड़ा होगा और मुझको तथा नागर को जहन्नुम में मिला देगा, बल्कि मैं जहाँ तक समझती हूँ इन चिट्ठियों का भेद खुलने से वह आपका दुश्मन हो जाएगा।

दारोगा : नहीं, ऐसा नहीं है। इन चिट्ठियों का भेद खुलने से यद्यपि वह हम लोगों का दुश्मन हो जाएगा मगर वह हम लोगों को तब तक तकलीफ न दे सकेगा जब तक ये चिट्ठियाँ पुन : लौटकर उसके कब्जे में चली जाएँ। मगर ऐसा होना बिलकुल ही असंभव है। इन चिट्ठियों की नकल दिखाकर मैं उसे धमकाऊँगा सही मगर इन असल चिट्ठियों को ऐसी जगह रखूँगा कि उसके देवता को भी पता न लगने पावेगा।

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मनोरमा : यह सब आपका खयाल है। आपने सुना नहीं कि जब बिल्ली मजबूर होती है तब कुत्ते के ऊपर हमला करती है! न-मालूम नागर के ऊपर गदाधरसिंह को कितना भरोसा है कि ये सब खबरें गदाधरसिंह ने नागर को लिखीं, नहीं तो भूतनाथ ऐसे होशियार आदमी को ऐसी भूल न करनी चाहिए थी। इन चिट्ठियों को पढ़ करके एक अदना आदमी भी समझ सकता है कि दयाराम का घातक गदाधरसिंह ही है और वही अब उनकी जमना, सरस्वती नाम की दोनों स्त्रियों को मारना चाहता है। क्या ऐसी चिट्ठी का प्रकट हो जाना गदाधरसिंह के लिए कोई साधारण बात है? और ऐसा होने पर क्या वह नागर को जीता छोड़ देगा? कदापि नहीं। इसके अतिरिक्त अभी तो चिट्ठियों का सिलसिला जारी ही है और वह जमना तथा सरस्वती को मारने के लिए तिलिस्म के अन्दर घुसा ही है, आगे चलकर देखिए कि कैसी-कैसी चिट्ठियाँ आती हैं और उनमें क्या-क्या खबरें वह लिखता है। सिर्फ इन्हीं दो-चार चिट्ठियों पर अभी आप क्यों इतना फूल रहे हैं?

दारोगा इसका जवाब कुछ दिया चाहता था कि दरवाजे की तरफ से घंटी बजने की आवाज आई। उसके जवाब में दारोगा ने भी एक घंटी बजाई जो उसके पास पहिले ही से रखी हुई थी। एक लड़का लपकता हुआ दारोगा के सामने आया और बोला, “गदाधरसिंह आए हैं, दरवाजे पर खड़े हैं।”

लड़के की बात सुनकर दारोगा ने मनोरमा की तरफ देखा और कहा, “आया तो है बड़े मौके पर!”

“मौके पर नहीं बल्कि बेमौके! इतना कहकर मनोरमा ने वे चिट्ठियाँ दारोगा के सामने से उठा लीं जो गदाधरसिंह के हाथ की लिखी हुई थीं या जिनके बारे में बड़ी देर से बहस हो रही थी, और यह कहकर उठ खड़ी हुई कि ‘मैं दूसरे कमरे में जाती हूँ, उसे बुलाइए मगर मेरे यहाँ रहने की उसे खबर न होने पावे।”

भूतनाथ-खण्ड-3/ भाग-10 दिनांक 20 Mar. 2022 समय 06:00 बजे साम प्रकाशित होगा

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