Overview: दुर्गा पूजा में क्यों किया जाता है धुनुची नाच?
दुर्गा पूजा का सनातन धर्म में विशेष महत्व है। खासकर भारत के पूर्वी हिस्से जैसे बंगाल और बिहार में दुर्गा पूजा को बहुत महत्व दिया जाता है। इन राज्यों में इस 10 दिन के त्यौहार को बहुत ही खुशी और उल्लास के साथ मनाने की एक सदियो पुरानी परंपरा है। यह त्यौहार कई रीति-रिवाजों के साथ पूरा होता है। महानवमी पर दुर्गा पूजा के दौरान एक खास नृत्य किया जाता है, जिसे धुनुची नाच कहा जाता है। इसकी शुरुआत सप्तमी के दिन ही हो जाती है।
Dhunuchi Naach Katha: दुर्गा पूजा का सनातन धर्म में विशेष महत्व है। खासकर भारत के पूर्वी हिस्से जैसे बंगाल और बिहार में दुर्गा पूजा को बहुत महत्व दिया जाता है। इन राज्यों में इस 10 दिन के त्यौहार को बहुत ही खुशी और उल्लास के साथ मनाने की एक सदियो पुरानी परंपरा है। यह त्यौहार कई रीति-रिवाजों के साथ पूरा होता है। महानवमी पर दुर्गा पूजा के दौरान एक खास नृत्य किया जाता है, जिसे धुनुची नाच कहा जाता है। इसकी शुरुआत सप्तमी के दिन ही हो जाती है।
आजकल तो धुनुची डांस के कॉम्पिटिशन भी किए जाते हैं। धुनुची नाच दुर्गा पूजा का एक अत्यंत महत्वपूर्ण और लोकप्रिय हिस्सा है। यह नृत्य न केवल मनोरंजक होता है बल्कि इसके पीछे गहरी धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताएं भी जुड़ी हुई हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी दुर्गा ने खुद भी धुनुची नृत्य किया था। आज भी देवी के इस नृत्य को भक्त करते आ रहे हैं। आज हम आपको बताएंगे धुनुची नाच का दुर्गा पूजा में क्या महत्व है।
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बंगाल से हुई है धुनुची नाच की उत्पत्ति
मुख्य तौर पर बंगाल में दुर्गा पूजा का आयोजन किया जाता है। हालांकि अब देश के कई हिस्सों में इसकी धूम-धाम नजर आने लगी है, लेकिन इसकी असल शुरुआत बंगाल से ही हुई है। दुर्गा पूजा के दौरान होने वाली परंपराओं को आप केवल बंगाल में ही करीब से देख सकते हैं। दुर्गा पूजा से जुड़े असली रीति-रिवाज देखने के लिए बंगाल से बेहतर कोई जगह हो ही नहीं सकती। दुर्गा पूजा में किया जाने वाला धुनुची नाच भी बंगाल से ही निकला है।
क्या है धुनुची नाच?
धुनुची नाच में, नर्तक एक विशेष प्रकार के बर्तन को धुनुची कहते हैं, उसमें धूप और नारियल रखकर वे धुआं करते हुए नाचते हैं। धुनुची से निकलने वाला धुआं देवी दुर्गा को प्रसन्न करने के का एक जरिया माना जाता है। इस दौरान नर्तक ढोल की थाप पर नाचते हैं और मंत्रों का जाप करते हैं। ये एक आर्ट फॉर्म है, जिसे नवरात्रि में दुर्गा पूजा पंडालों में महानवमी के दौरान किया जाता है। इस नृत्य की शुरुआत नवरात्रि की सप्तमी तिथि से की जाती है। यह नृत्य केवल महिलाएं ही नहीं बल्कि पुरुषों द्वारा भी किया जाता है। आमतौर पर लोग धुनुची को हाथ में रखकर धुआं करते हुए नृत्य करते हैं, लेकिन कुछ लोग मुंह में धुनुची रखकर भी इस नृत्य को करते हुए नजर आते हैं। बहुत से लोग मुंह में जलता कोयला रखकर भी धुनुची नाच की परंपरा को निभाते हैं। इस डांस को करने के लिए आपको किसी खास ट्रेनिंग की जरूरत नहीं होती। इसे आप अपने आसपास वालों को देखकर भी कर सकते हैं।
दुर्गा पूजा में धुनुची नाच क्यों किया जाता है?
धुनुची नाच को देवी दुर्गा की आराधना का एक तरीका माना जाता है। माना जाता है कि धुनुची में धूएं के साथ देवी दुर्गा का आशीर्वाद घर-घर पहुंचता है। धुनुची नाच दुर्गा पूजा का एक अत्यंत महत्वपूर्ण और लोकप्रिय हिस्सा है। इसके बिना दुर्गा माता की पूजा अधूरी मानी जाती है। किसी भी पंडाल में यह नृत्य किए बिना माता को विदाई नहीं दी जाती।
धुनुची नाच का महत्व क्या है?
धुनुची नाच को देवी दुर्गा के साथ एक विशेष संबंध माना जाता है। माना जाता है कि धुनुची में धूएं के साथ देवी दुर्गा का आशीर्वाद फैलता है। यह नृत्य बंगाल की सांस्कृतिक पहचान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। धुनुची नृत्य बोनेडी बारी, राजबारी और बारीर पूजा में लोकप्रिय है। देवी के सामने लोग ढाक और पीतल की घंटियों की थाप पर सिर झुकाकर इकट्ठा होते हैं। धुनुची नाच लोगों को एक साथ लाता है और सामाजिक बंधन को मजबूत करता है। इसके अलावा भी धुनुची नाच के कई महत्व और लाभ बताए जाते हैं। जैसे-
- ऐसा माना जाता है कि धुनुची का धुआं बुरी शक्तियों को दूर करने और शुभता को लाने का प्रतीक है। बंगाल में ऐसी मान्यताएं हैं कि धुनुची के धुएं के साथ आसपास के वातावरण में मौजूद बुरी और काली शक्तियों का नाश होता है। इससे सुख-समृद्धि आती है।
- ऐसा माना जाता है, जो भी धुनुची के धुएं के संपर्क में आता है और इस नृत्य कला को करता है, उसके जीवन की सभी परेशानियां धीरे-धीरे खत्म होने लगती हैं। धुनुची नाच दुर्गा पूजा के उत्सव को और अधिक जीवंत बनाता है। यह नृत्य भक्तों में आनंद और उत्साह भरता है।
- धुनुची नाच बंगाल की सांस्कृतिक विरासत का एक अहम हिस्सा है। यह पीढ़ी दर पीढ़ी चला आ रहा है। इसे हर पीढ़ी के साथ आगे बढ़ाया जा रहा है। मान्यता है कि इसके बिना माता दुर्गा को प्रसन्न नहीं किया जा सकता।
कैसे किया जाता है धुनुची डांस?
धुनुची नाच करने का अपना एक खास तरीका होता है। इसे करने के लिए साड़ी, धोती-कुर्ते जैसे पारंपरिक परिधान पहनने पड़ते हैं। इस नृत्य की अपनी गरिमा है। इसे हमेशा पारंपरिक कपड़ों में ही किया जाता है। इसके लिए मिट्टी की बनी धुनुची में धूप और नारियल को रखकर जलाना होता है। इसके बाद इससे धुआं निकलने पर उसे हाथों से करतब करते हुए लहराकर उसके साथ नृत्य किया जाता है। इस दौरान लोग जलती हुई धुनी लेकर बंगाली धुनों पर नाच करते हैं। माता की विदाई और मूर्ति को विसर्जन के दिन भी पूरे रास्ते में धुनुची डांस किया जाता है।
धुनुची नृत्य और मां दुर्गा से जुड़ी लोकप्रिय कथा
महा नवमी देवी दुर्गा और महिषासुर के बीच युद्ध का आखिरी दिन है। फिर, दसवें दिन, महिषासुर को देवी दुर्गा ने पराजित किया। नवमी शुभ और अशुभ के बीच लंबे युद्ध का आखिरी दिन है। यही कारण है कि दुर्गा पूजा में महा नवमी को इतना महत्व दिया जाता है। धुनुची नृत्य वास्तव में देवी दुर्गा को समर्पित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी दुर्गा ने स्वयं अपने भीतर ऊर्जा प्रवाहित करने के लिए धुनुची नृत्य किया था। इसी कारण से आज भी महानवमी की शाम को धुनुची नृत्य का आयोजन किया जाता है। मान्यताएं हैं कि दुर्गा पूजा के दौरान धुनुची नृत्य करने से देवी माता प्रसन्न होती हैं और भक्तों को अपना आशीर्वाद देती हैं। धुनुची नृत्य का अर्थ है स्वयं को पूरी तरह देवी के सामने समर्पित कर देना। ऐसा करने से सभी बुरी शक्तियां दूर हो जाती हैं। मन में प्रकाश का मार्ग प्रकट होता है। धुनुची नृत्य बंगाली की प्राचीन परंपरा को आगे बढ़ाता है।
