Shirdi:
‘शिरडी की पावन भूमि पर पाँव रखेगा जो भी कोई, तत्क्षण मिट जाएँगे कष्ट उसके,हो जो भी कोई’।
शिरडी के साई बाबा का मंदिर विश्वभर में प्रसिद्ध तीर्थस्थल है। सांई बाबा ने अपनी जिंदगी में समाज को दो अहम संदेश दिए हैं- ‘सबका मालिक एक’ और ‘श्रद्धा और सबूरी’। यदि बाबा के तमाम चमत्कारों से परे केवल उनके संदेशों पर ही गौर करें तो पाएंगे कि बाबा के कार्य और संदेश जनकल्याणकारी साबित हुए हैं। शिरडी, महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में एक अनोखा गांव है जो कि नासिक से 76 किमी. की दूरी पर स्थित है। आज, यह गांव एक सबसे ज्यादा दर्शन करने वाले तीर्थ केन्द्र में तब्दील हो गया है। शिरडी, 20वीं शताब्दी के महान संत साईं बाबा का घर था। बाबा ने अपने जीवन का आधे से ज्यादा समय शिरडी में बिताया। यानी अपने जीवन के 50 से अधिक साल इस गांव में बिताए और इस छोटे से गांव को एक बड़े तीर्थस्थल में परिवर्तित कर दिया, जहां जगह-जगह से भक्त आकर उनके दर्शन और प्रार्थना करते हैं। आज भी लाखों पर्यटक शिरडी में बाबा के समाधि स्थल के दर्शन करने आते हैं।
शिर्डी में जहां बाबा अपने बालयोगी रूप में पहली बार देखे गए थे उस जगह को गुरुस्थान कहा जाता है। वर्तमान में यहां एक छोटा सा मंदिर और श्राइन बोर्ड बनवाया गया है। शिरडी में साईं बाबा से जुड़े स्थलों में द्वारकामाई मस्जिद भी है जिसे बाबा ने अपना निवास स्थल बनाया तथा लगभग 60 वर्ष तक यहीं रहें। यही द्वारकामाई आज लोगों के लिए तीर्थ धाम जैसी हो गई। लेंडी बाग, शिरडी का छोटा सा गार्डन है जिसे बाबा ने अपने हाथों से बनाया था और यहां के प्रत्येक पौधे को खुद से सींचा था। बाबा यहां प्रतिदिन आते थे और बगीचे के नीम के पेड़ के नीचे आराम करते थे एक अष्टकोणीय दीपग्रह व प्रकाश घर जिसे नंदादीप के नाम से जाना जाता है उसे बाबा की याद में इसी जगह पर पत्थरों से बनाया गया है।
आज भी जलती है बाबा की धूनी
साईं बाबा ने अपनी यौगिक शक्ति से यहां अग्नि प्रज्जवलित की और उसमें सदैव लकड़िया डालकर धूनी को जलाए रखा। बाबा के समाधिस्थ होने के बाद आज तक यह धूनी निरंतर जलती आ रही है। इस धूनी से बनने वाली भस्म को बाबा ने ‘ऊदी’ नाम दिया। हर प्रकार के कष्टों का निवारण करने के लिए वह यही भस्म लोगों को बांटते थे। आज भी यहां आने वाले श्रद्धालु ऊदी को प्रसाद रूप में ग्रहण करते हैं। मस्जिद के पास ही बाबा की चावड़ी है, जहां एक दिन छोड़कर बाबा विश्राम किया करते थे।

आज का शिरडी
शिरडी आज विश्वभर में प्रसिद्ध है। यहां प्रात: चार बजे से ही लोग पंक्तियों में खड़े हो जाते हैं, ताकि मंदिर में स्थित बाबा की मूर्ति को नमन कर सकें। द्वारकामाई मस्जिद, चावड़ी के दर्शनों के साथ-साथ बाबा की धूनी को भी लोग प्रणाम करते हैं। बाबा द्वारा प्रयोग की गई वस्तुओं, उनके कपड़े, पालकी,जूते, व्हीलचेयर आदि को एक संग्रहालय में सुरक्षित रखा गया है। इसके अलावा, खंडोवा मंदिर, शकरोई आश्रम, शनि मंदिर, चंगदेव महाराज की समाधि और नरसिंह मंदिर भी शिरडी में पर्यटकों को आकर्षित करते हैं।
गुरुवार को होती है विशेष पूजा
आमतौर पर भक्त, साईं बाबा की समाधि और प्रतिमा की झलक पाने के लिए भोर से ही लाइन में खड़े हो जाते हैं। गुरुवार को काफी भीड़ रहती है, इस दिन बाबा की मूर्ति की विशेष पूजा होती है। मंदिर प्रतिदिन सुबह 5 बजे प्रार्थना के साथ खुल जाता है और रात में प्रार्थना के साथ 10 बजे बन्द हो जाता है। यहां 600 भक्तों की दर्शन क्षमता वाला एक बड़ा हॉल है। मंदिर की पहली मंजिल में बाबा के जीवन के अनमोल चित्र लगें हुए हैं जो कि देखने के लिए खुले हुए हैं।
महज 5 रुपए में कर सकते हैं भरपेट भोजन
शिरडी में साईं मंदिर ट्रस्ट द्वारा बनाई गई भोजनशाला सांप्रदायिक सद्भाव की बेहतर मिसाल है। यहां किसी भी प्रकार के भेदभाव के बगैर हजारों भक्त एक साथ बैठकर भोजन ग्रहण करते हैं। यह भोजनशाला साईं बाबा मंदिर से कुछ ही दूरी पर स्थित है। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि महज 5 रुपये के टोकन पर आप भरपेट भोजन कर सकते हैं।

कब जाएं ?
इस पवित्र मंदिर में साल के किसी भी मौसम में दर्शन कर सकते हैं। लेकिन आमतौर पर मानसून के मौसम को ज्यादा पंसद किया जाता है, क्योंकि इस दौरान वहां की जलवायु उचित होती है। दर्शनार्थी अपनी यात्रा को अक्सर तीन मुख्य त्यौहारों- गुरू पूर्णिमा, दशहरा और रामनवमी पर प्लान करते हैं।
कैसे जाएं?
यहां पहुंचने के लिए कोई सीधा रेलमार्ग नहीं है। महाराष्ट्र के मनमाड या नासिक तक रेलयात्रा के बाद बसों या अन्य वाहनों से शिरडी पहुंचा जा सकता है। शिरडी मुंबई से 250 किमी और नासिक से 90 किमी है। निकटतम हवाई सेवा मुबंई-पुणे से है।
कहां ठहरें?
शिरडी में ठहरने के लिए अनेक विश्रामघरों के अतिरिक्त अब चार सितारा और तीन सितारा होटल भी बन चुके हैं।
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