sarvottam suraksha hai gyaan
sarvottam suraksha hai gyaan

Spritual Thoughts: ईश्वरीय आनन्द शाश्वत होता है। स्वयं को तर्क और ईश्वर-संपर्क के द्वारा प्रलोभन एवं दुख से सुरक्षित करें। आप जान जाएंगे कि वास्तव में आप कौन हैं?

आप क्या चाहते हैं ईश्वर का शाश्वत आनन्द, जो अभी थोड़े से सांसारिक सुखों को त्यागने से
आपका हो सकता है, या वर्तमान सांसारिक सुख, जो हमेशा नहीं रहेगा? तुलना करके,
अपने हृदय को विश्वास दिलाएं। ईश्वर की ओर बढ़ने वाले आपके प्रत्येक प्रयास को
वे मान्यता देंगे।

अपने आप को पापी न समझें। आप परमपिता की संतान हैं। चाहे आप कितने भी बड़े पापी क्यों न हों, भूल जाएं। यदि आपने एक अच्छा व्यक्ति बनने की ठान ही ली है, तो अब आप पापी नहीं रह गए हैं। ‘यदि कोई अतिशय दुराचारी भी अन्य सब कुछ छोड़कर अनन्य भाव से मेरा भक्त होकर मुझ को भजता है, तो वह सज्जन पुरुष ही मानने योग्य है, क्योंकि वह यथार्थ निश्चय वाला है। वह शीघ्र ही
धर्मात्मा बन जाएगा और चिरस्थायी शांति को प्राप्त करेगा।

प्रलोभन चीनी लगा विष है, यह स्वाद में रुचिकर लगता है, परंतु इससे मृत्यु निश्चित है। इस संसार में जिस सुख को लोग ढूंढ रहे हैं वह स्थाई नहीं है। ईश्वरीय आनन्द शाश्वत होता है। उसकी लालसा करें जो चिरस्थायी है, और जीवन के अस्थायी सुखों को त्यागने के लिए कठोर हृदय वाले बनें। आपको ऐसा बनना ही पड़ेगा। संसार को अपने ऊपर शासन न करने दें। कदापि न भूलें कि केवल ईश्वर ही एक मात्र सत्य हैं। आपके परमपिता का सच्चा प्रेम आपके हृदय में आपके साथ लुका-छिपी का खेल
खेल रहा है। आपकी सच्ची प्रसन्नता, ईश्वर की अनुभूति में निहित है।

एक बार भारत के एक महान् संत राजा जनक, जब गहन प्रार्थना में थे, तो वे अचानक विस्मित हो उठे, ‘आप कौन है मेरे मंदिर में? मैंने सोचा स्वयं मैं ही हूं, परंतु मैंने देखा कि यहां तो ईश्वर हैं। और
यह हड्डिïयों का ढांचा, ‘लघु मैं, मैं नहीं हूं। ये ईश्वर हैं जो मेरे शरीर में हैं। मैं स्वयं को प्रणाम करता हंू, मैं अपने स्वयं को पुष्प अर्पित करता हूं। एक दिन यह अनुभूति आपको भी होगी, और फिर आप स्वयं को एक नश्वर प्राणी, एक स्त्री अथवा एक पुरुष नहीं मानेंगे, आप जान जाएंगे कि आप ईश्वर के प्रतिबिब में बनी एक आत्मा हैं, ‘ईश्वर की शक्ति आप में निवास करती है। आत्मा शरीर के साथ इच्छाओं, प्रलोभनों, कष्ट और चिन्ताओं की कड़ियों द्वारा बंधी है, और यह स्वयं को मुक्त कराने का
प्रयत्न कर रही है। यदि आप उस कड़ी को खेलने का प्रयास करते रहेंगे जो आपको नश्वर चेतना से बांधे हुए है, तो किसी दिन एक अदृश्य दैवी हाथ हस्तक्षेप करेगा और इसे काट कर अलग कर देगा, और आप मुक्त हो जायेंगे।

स्वयं को तर्क और ईश्वर-संपर्क के द्वारा प्रलोभन एवं दुख से सुरक्षित करें। भगवद्ïगीता में भगवान कहते हैं: ‘अज्ञानी जन मुझे इन्द्रियातीत सृष्टिï कर्त्ता के रूप में भूलकर, मानवीय शरीर (अवतार
रूप) के अन्दर मेरी विद्यमानता के प्रति बेखबर हैं। ध्यान आपको बार-बार स्मरण कराता है कि आप सीमित पार्थिव शरीर नहीं हैं, बल्कि अनन्त ब्रह्मï हैं। ध्यान आपके वास्तविक स्वरूप की स्मृति को जाग्रत कराता है और ‘स्वयं की जो कल्पना आप करते हैं उसे भूल जाना है। यदि कोई राजकुमार मदिरा के नशे में गन्दी बस्ती में जाकर अपनी वास्तविक पहचान को पूरी तरह भूल जाता है, और विलाप करने लगता है, ‘मैं कितना गरीब हूं, तो उसके मित्र उस पर हंसेंगे और कहेंगे, ‘जागो, और याद करो कि तुम एक राजकुमार हो।

उसी प्रकार, आप भी मतिभ्रम की अवस्था में हैं, सोचते हैं कि आप एक असहाय नश्वर प्राणी हैं, जो संघर्ष कर रहे हैं और अभागे हैं। प्रतिदिन आपको शान्ति में बैठकर गहन धारणा से प्रतिज्ञापन करना चाहिए: ‘न जन्म, न मृत्यु, न जाति कोई मेरी, पिता न कोई माता मेरी। शिवोऽहम् ï, शिवोऽहम् ï
केवल आत्मा शिवोऽहम्ï। यदि आप दिन-रात इन विचारों को बार-बार दोहराएंगे, तो अन्तत: आप जान जाएंगे कि वास्तव में आप कौन हैं, ‘एक अमर आत्मा।