Phone Addiction: इन दिनों हर अभिभावक इस बात से परेशान है कि उनका बच्चा मोबाईल बहुत देखता है। हर कोई चाहता है कि बच्चा मोबाइल पर गेम नहीं खेले। बल्कि वह अपने आस-पास से जुड़ा रहे। इस समस्या का हल एक अभिभावक के तौर पर आप ही के पास है।
एक बार खुद सोचें
हम हमेशा बच्चों से उम्मीद करते हैं कि वह सही से पेश आएं। वह कम मोबाइल देखें, समय पर सोएं। हर कोई इस बात से परेशान है कि ऐसा क्या करें कि बच्चे मोबाइल न देखें। परेशान होने से पहले एक बार खुद सोचें आप खुद कितना मोबाइल देखते हैं। कहीं आपको भी तो इसकी लत नहीं है।
खुद का भी आकलन करें
लोगों को लगता है कि हाथ में मोबाइल आने के बाद बच्चे खुद में व्यस्त हो जाते हैं। आस-पास क्या हो रहा है उन्हें पता ही नहीं चलता। मुझे लगता है कि यह समय खुद का आकलन करने का है। हम भी तो मोबाइल में व्यस्त रहते हैं। कितने ही लोग हैं जो मोबाइल देखे बिना सोते नहीं। कितनी ही बार ऐसा होता है कि हम लोग भी अपने वॉट्सऐप की अपडेट देखने में बिजी होते हैं। याद रखें बच्चे कुछ भी अलग नहीं करते। जो हम करते हैं वह वही करते हैं।
खुद से सवाल करें
सबसे पहला सवाल तो खुद से होना चाहिए कि आप खुद दिन के चौबीस घंटे में कितना मोबाइल देखती हैं। रात को सोते समय क्या मोबाइल आपके हाथ में होता है? क्या कभी ऐसा हुआ कि बच्चा आपसे कोई बात करने आया हो और आप मोबाइल पर व्यस्त थे? अगर इन सवालों का जवाब हां है तो पहले अपनी आदत को सुधारने की जरूरत है। जब आपका संयमित व्यवहार बच्चों को दिखेगा तो उन्हें भी इस बात का अहसास होगा। इंफोसिस की चेयरमैन और लेखिका सुधा मूर्ति का मानना है कि बच्चों को अलग से कुछ सिखाने की जरुरत नहीं होती। आप जो करते हैं वह भी वैसा ही करते हैं।
बच्चे कह पाएं
कोरानाकाल और उसकी तालाबंदी ने हमें बता दिया कि तकनीक ने हमारे जीवन में क्या भूमिका निभाई। ऐसे में इसके महत्व को नकारा नहीं जा सकता। ऐसे में आप मोबइल की या लैपटॉप की हर समय उनके सामने बुराई न करें। अपने रिश्तेदारों के सामने उन्हें उनकी मोबइल की आदत की वजह से बुरा न कहें। अक्सर पेरेंट्स का एक रटा-रटाया डायलॉग होता है- अरे भाई, आजकल के बच्चे तो अपने मोबाइल में ही घुसे रहतेे हैं। आपकी यह नकारात्मक प्रतिक्रियाएं उन्हें आपसे दूर करेंगी। नतीजतन वे आपसे एक किस्म की दूरी बना लेंगे। वे खुुद को मोबाइल में और ज्यादा व्यस्त कर लेंगे।
समय देना होगा
ध्यान दें कि बच्चों की आदत एकदम नहीं बनती। आजकल एकल परिवारों का जमाना है। जब बच्चे छोटे होते हैं हम महिलाएं अपने कामों में व्यस्त रहने की वजह से उन्हें मोबाइल पकड़ा देती हैं। धीरे-धीरे यह मोबाइल उनकी आदत बन जाता है। उन्हें लगता है कि वही उनका साथी है। यह आदत पहले हम बच्चों में डालते हैं और जब वह इसके आदी हो जाते हैं तो हम चाहते हैं कि वह इसे छोड़ दें। वह छोड़ देंगे लेकिन उन्हें समझें और उन्हें कुछ समय दें।
बातचीत करें
जीवन में आपस में एक-दूसरे की जिंदगी को जानने के लिए बात करना बहुत अहम है। आपको लगता है कि बड़ा होता बच्चा आपसे बात कम कर रहा है तो उससे मोबाइल से संबंधित ही बातें करें। आपके मोबाइल में कुछ चीजें जो आपको समझ नहीं आ रही हैं उसके बारे में उससे बात करें। उससे कहें कि उसका टेक्नोफ्रैंडली होना आपको अच्छा लगता है। उससे मोबाइल के फीचर्स के बारे में डिस्कस करें। उसकी दुनिया में जब आप शामिल होंगे तो उसकी परेशानियों और चुनौतियों को भी समझ पाएंगे।
मोबाइल टाइम भी बनाएं
बच्चे छोटे हैं तो अपना और बच्चों का मोबाइल देखने का एक टाइम बनाएं। उन्हें कहें कि हम लोग मिलकर अपने मोबाइल देखने की आदत को कम करेंगे। उनके साथ मोबाइल पर इंडोर गेम जैसे लूडो या कैरम का आनंद लें। खेल-खेल में उन्हें बताएं कि पहले किस तरह के लूडो और कैरम हुआ करते थे। उसकी गोटियों को कैसे संभाला जाता था। कैरम को कैसे पाउडर डालकर चिकना करते थे। यह भी बताएं कि जब कैरम ज्यादा खेल लेते थे तो अंगुलिया स्ट्राइगर की वजह से दुखती थी। बच्चों को कुछ नहीं आपका समय चाहिए। मोबाइल का ज्यादा देखना आपकी और उनकी कोई अच्छी आदत नहीं हैं। इसका एक समय फिक्स होना चाहिए आपके लिए भी और बच्चों के लिए भी।