Behavior Disorder
Behavior Disorder

बच्चों को शुरुआत से ही नोटिस करें कि कहीं उनका बिहेवियर अलग तो नहीं है।

अगर बच्चे में ये लक्षण दिखें तो इसके लिए डॉक्टर से कंसल्ट कर सकते हैं।

Behavior Disorder: बच्चों का बात-बात पर रूठना, जिद करना, गुस्सा हो जाना या फिर अपने भाई-बहनों या दोस्तों के साथ मारपीट करना… बाल विकास के ये आम पड़ाव हैं और बच्चों की इन बातों पर तो प्यार ही आता है। लेकिन यदि इनमें से किसी भी तरह की आदतें लंबे समय तक रहे और वह उनका और उनके परिजनों, साथियों आदि की जिंदगी को प्रभावित कर रही हैं, तो इन पर ध्यान देने की ज़रूरत है। बच्चे तो शैतानी करते ही हैं, लेकिन बच्चा अगर शैतानी करते हुए किसी को नुकसान पहुंचाने का इरादा रखता हो और यह सिलसिला लंबे समय तक चले तो यह बिहेवियर डिसऑर्डर के अंतर्गत आता है। वहीं बच्चे का हद से ज़्यादा गुस्सा या आक्रामक होना और वह भी लंबे समय तक ऐसा होते रहे, तो उसे प्रोफेशनल हेल्प की ज़रूरत है। यहाँ ऐसे ही बच्चों के व्यवहार से संबंधित जुड़े डिसऑर्डर के बारे में बता रहे हैं और इसे कैसे मैनेज करें ये जानना ज़रूरी है।

ओपोजिशनल डिफिएंट डिसऑर्डर (ODD)

ओपोजिशनल डिफाइएंट डिसऑर्डर बिहेवियर से जुड़ा डिसऑर्डर है जिसके लक्षण 6 से 8 वर्ष की उम्र के बीच दिखने लगते हैं। किशोरों और बड़ों में भी इसके लक्षण आसानी से देखे जा सकते हैं। लड़कियों की तुलना में लड़कों में यह डिसऑर्डर ज़्यादा देखने को मिलता है। यह समस्या पीड़ित के स्कूल, परिवार और सोशल लाइफ पर बुरा असर डाल सकती है। समय पर इसका सही इलाज नहीं हो और समस्या बढ़ती रहे तो यह गंभीर मानसिक रोगों का कारण बन सकती है।

Behavior Disorder
Oppositional Defiant Disorder

ये हैं लक्षण

  • जल्दी किसी भी बात पर चिढ़ जाना, छोटी सी बात पर गुस्सा हो जाना और ज़्यादातर समय नाराज रहना ओपोजिशनल डिफिएंट डिसऑर्डर के लक्षण हो सकते हैं।
  • बच्चे का बहुत ज़्यादा बहस करना, अक्सर बड़ों की बात को अनसुना करना, दूसरों को जानबूझकर परेशान करना या अपनी गलतियों का दोष दूसरों पर डालना इसके लक्षणों में आते हैं और इसे सामान्य बात समझकर नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। इस डिसऑर्डर से पीड़ित बच्चों में डर का अभाव रहता है।
  • इस बात को समझें कि इनमें से एक लक्षण का होना ओडीडी का शिकार नहीं माना जा सकता है, बल्कि बच्चे या किशोर में लगातार छह महीने तक यह लक्षण दिखने पर डॉक्टर की सलाह ले सकते हैं। 

क्या करें

ओडीडी के लक्षणों से निपटने के लिए मनोचिकित्सा की दृष्टि से प्रोफेशनल हेल्प बहुत मददगार है। थैरेपी और मेडिकेशन के अलावा आप ये काम ज़रूर करें:

  • बच्चे की दिनचर्या तैयार करें और उसका पालन करने की दिशा में काम करें।
  • ऐसे बच्चों को कभी भी ना डांटे और ना ही पिटाई करें, इससे बच्चा और भी ज्यादा एग्रेसिव हो सकता है। बच्चे के सकारात्मक व्यवहार की तारीफ करना न भूलें।
  • बच्चे के अच्छे व्यवहार के लिए उन्हें इनाम ज़रूर दें। आप जैसा व्यवहार बच्चे में देखना चाहते हैं, उसे खुद भी फॉलो करें। उन चीजों को करने में एक साथ समय बिताएं जो आप दोनों को पसंद हैं।
  • अपने बच्चे को घर के कामों या अन्य कार्यों में शामिल करें जिससे उसे किसी तरह का अचीवमेंट महसूस हो।
  • आस-पड़ोस के बच्चों को घर में बुलाकर एक सकारात्मक माहौल बनाएं, जिससे बच्चा अन्य बच्चों की तरह व्यवहार करने की कोशिश करे।

अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर (ADHD)

बच्चों का शरारती होना, ध्यान खींचने के लिए उठापटक करना, बहुत ज़्यादा सक्रिय होना, चीज़ों पर ध्यान न लगाना, एक जगह चुपचाप न बैठना, आम बात है। लेकिन इन लक्षणों को बारीकी से समझना ज़रूरी है क्योंकि ये अटेंशन-डेफिसिट हाइपरऐक्टिविटी डिसऑर्डर (ADHD) की ओर इशारा हो सकता है। ध्यान की कमी और अत्यधिक सक्रियता की बीमारी को एडीएचडी कहा जाता है। इसके लक्षण छोटी उम्र में और आमतौर पर 7 वर्ष की उम्र से पहले दिखाई देना शुरू हो जाते हैं। सही समय पर डायग्नोज नहीं होने पर उम्र के साथ यह समस्या बढ़ती जाती है।

इससे पीड़ित बच्चे एक काम पर अपना ध्यान केंद्रित करने या लंबे समय तक एक जगह बैठने में परेशानी का सामना कर सकते हैं। एडीएचडी के तीन मुख्य प्रकार हैं जिसमें अटेंशन डेफिसिट डिसऑर्डर (एडीडी), हाइपरएक्टिव-इंपल्सिव टाइप और कंबाइंड टाइप शामिल हैं।

ये है लक्षण

  • लगातर सक्रिय रहना या एक जगह न बैठना, एक जगह बैठने पर भी अपनी जगह पर हिलते रहना या कुछ करते रहना, किसी बात पर ध्यान न देना, शांत न रहना, बहुत ज्यादा बात करना, दूसरों के काम में दखल देना, आसानी से डिस्ट्रैक्ट हो जाना, काम के बीच में ही दूसरा काम करने लगना आदि इसके लक्षण है।
  • कई मामलों में बच्चे लगातार चुप बैठे रहते हैं और अपने काम में खोए रहते हैं उनका ध्यान आकर्षित करने में दिक्कत होती है।

क्या करें

  • एडीएचडी का इलाज दवाईयों, साइकोथेरेपी, एजुकेशन या ट्रेनिंग से किया जा सकता है। पीड़ित बच्चों के वर्क स्टाइल में सुधार के उपाय खोजे जा सकते हैं। एडीएचडी से पीड़ित बच्चों को संभालने के लिए ये तरीके अपनाएं:
  • हाइपरएक्टिव बच्चे की एनर्जी सकारात्मक काम में लगाने की कोशिश करें। अगर ऐसे बच्चों की एनर्जी को सही दिशा में लगाया जाए वे बहुत ही इनोवेटिव काम कर सकते हैं।
  • बच्चे की अच्छी नींद सुनिश्चित करें। नींद के समय उन्हें किसी भी गतिविधि में उलझने न दें।
  • बच्चे को अच्छे काम पर इनाम देने की आदत डालें। अच्छे व्यवहार को बढ़ाने के लिए आप अंक या स्टार सिस्टम का इस्तेमाल करने की कोशिश कर सकते हैं।
  • बच्चे के लिए एक सीमा निर्धारित करें और उसका पालन न करने पर बच्चे को सीखाने की कोशिश करें।
  • डेली रूटीन बनाएं ताकि आपके बच्चे को पता चल सके कि उससे क्या उम्मीद की जा रही है। दिनचर्या निर्धारित करने से एडीएचडी से पीड़ित बच्चे को रोजमर्रा की जिंदगी का सामना करने में मदद मिलती है।
  • बच्चों के दोस्तों को खेलने के लिए बुलाएं, लेकिन कम समय तक खेलने दें ताकि आपका बच्चा आत्म-नियंत्रण न खोए।
  • इस डिसऑर्डर से जूझ रहे बच्चों को स्कूल में उनके व्यवहार के कारण समस्या होती है। इससे बच्चे की शैक्षणिक प्रगति पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। अपने बच्चे के शिक्षकों या स्कूल कोऑर्डिनेटर से बात करें।

कंडक्ट डिसऑर्डर (CD)

Behavior Disorder
Conduct Disorder

कंडक्ट डिसऑर्डर एक तरह का बच्चों में बिहेवियरल और डेवलपमेंटल डिसऑर्डर है। जब किसी बच्चे के साथ असामाजिक व्यवहार होता है, तो उसके बाद वह सामाजिक मानकों और नियमों की अवहेलना कर सकता है।

ये है लक्षण

कंडक्ट डिसऑर्डर के आम लक्षणों में आक्रामक व्यवहार, डराने वाला व्यवहार, दूसरों को तंग करने की प्रवृत्ति, हिंसात्मक स्वभाव, जानबूझकर चीज़ें खराब करना, घर की चीज़ों को फेंकना, झूठ बोलना, चोरी आदि होता है। कंडक्ट डिसऑर्डर को कई कारक बढ़ा सकते हैं जिसमें जीन, बाल उत्पीड़न, सामाजिक समस्याएं आदि शामिल हैं।

क्या करें

  • इस समस्या का उपचार बच्चे में लक्षण, उम्र और स्वास्थ्य के अनुसार हो सकता है। इसके साथ ही इस का उपचार इस बात पर भी निर्भर करता है कि बच्चे कि स्थिति कितनी खराब है। इसके उपचार के तरीकों में कॉग्निटिव-बिहेवियरल थेरेपी, फैमिली थेरेपी, पीयर ग्रुप थेरेपी और दवाइयां शामिल हैं।
  • कंडक्ट डिसऑर्डर का उपचार बहुत कठिन है क्योंकि इस डिसऑर्डर वाले बच्चे और किशोर शायद ही कभी अपने व्यवहार में कुछ भी गलत अनुभव करते हैं। इसलिए उन्हें डांटना और उन्हें बेहतर व्यवहार करने के लिए कहना किसी तरह की मदद नहीं करता है और इससे बचा जाना चाहिए।
  • गंभीर रूप से परेशान बच्चों या किशोरों के लिए सबसे सफल उपचार उन्हें अशांत वातावरण से अलग करना है। ऐसी स्थिति में डॉक्टर या काउंसलर की टीम को पूरी तरह सपोर्ट करना चाहिए।
  • कंडक्ट डिसऑर्डर के उपचार का एक अन्य महत्वपूर्ण हिस्सा स्कूल का सपोर्ट करना है। स्कूल में ऐसे बच्चों और किशोरों के लिए एक टीम होनी चाहिए। इस टीम में आमतौर पर स्कूल काउंसलर, स्कूल मनोवैज्ञानिक, सामाजिक कार्यकर्ता और अन्य शामिल हों।

एंग्जाइटी डिसऑर्डर

एंग्जायटी डिसऑर्डर्स के कारण बच्चे के व्यवहार, सोने, खाने और मूड में बदलाव, अधिक ड़र और चिंता पैदा होती है। बच्चों में कई तरह के एंग्जायटी डिसऑर्डर्स होते हैं जैसे जनरलाइज्ड एंग्जायटी डिसऑर्डर, सेपरेशन एंग्जायटी डिसऑर्डर, सोशल फोबिया, सेलेक्टिव मुटिस्म, स्पेसिफिक फोबिया।

बचपन में शुरू होने वाला एंग्जायटी डिसऑर्डर अक्सर किशोर वर्षों और शुरुआती वयस्कता में बना रहता है। एंग्जायटी डिसऑर्डर वाले किशोरों में क्लीनिकल डिप्रेशन, ड्रग्स का दुरुपयोग करने और आत्महत्या करने की भावना विकसित करने की संभावना अधिक होती है। इसलिए जितनी जल्दी आप इस परेशानी को समझ जाए आपको मदद लेनी चाहिए।

ये हैं लक्षण

  • एंग्जाइटी डिसऑर्डर के लक्षणों में सांस का तेजी से बढ़ना, परेशान या बेचैन महसूस करना या अक्सर टॉयलट इस्तेमाल करना, थकान होना, पेट में दर्द और बीमार महसूस करने की शिकायत होना, ध्यान देने में मुश्किल होना, जल्दी ही गुस्सा या चिड़चिड़ा हो जाना और गुस्सा नियंत्रण से बाहर हो जाना आदि शामिल हैं।
  • यह डिसऑर्डर होने पर बच्चों के मांसपेशियों में तनाव, रात को नींद ना आना या बुरे सपने आना, ठीक से खाना ना खाना, माता-पिता से हमेशा चिपके हुए रहना जैसी आदते देखने को मिलती हैं।

ये करें

  • बच्चे अपने लक्षणों और विचारों को स्पष्ट रूप से नहीं बता पाते हैं, इसलिए बचपन के दौरान यह पहचानना मुश्किल हो सकता है कि बच्चा चिंतित है और उसे एंग्जाइटी डिसऑर्डर है।
  • बचपन में अनुभव की जाने वाले सबसे आम एंग्जाइटी डिसऑर्डर में से एक है सेपरेशन एंग्जाइटी डिसऑर्डर। यह कई कारणों से हो सकता है जैसे कि स्कूल बदलना, माता-पिता का अलग होना, परिवार से दूर जाना आदि। इस स्थिति में माता-पिता को मनोचिकित्सा और प्रोफेनल हेल्प लेना ज़रूरी होती है।

लर्निंग डिसऑर्डर

लर्निंग डिसऑर्डर बच्चे के लिए पढ़ना, लिखना या सरल गणित करना भी कठिन बना सकते हैं। लर्निंग डिसऑर्डर वाले कई बच्चे डायग्नोस होने से बहुत पहले स्कूल में काफी संघर्ष करते हैं। यह बच्चे के सेल्फ-एस्टीम को प्रभावित कर सकता है। इस डिसऑर्डर में न्यूरोलॉजिकल भिन्नता मुख्य कारण होती है। दिमाग किसी भी सूचना के संकेत को सही ढंग से पासऑन और रिसीव नहीं कर पाता, जिसके कारण बच्चे को सीखने में समस्या होती है। सिर में चोट या किसी दिमागी बिमारी के कारण भी बच्चें को लर्निंग डिसऑर्डर की समस्या हो सकती है। अनबॉर्न बेबी का दिमागी रूप पूर्ण रूप से विकसित न होने के कारण भी ये समस्या हो सकती है। लर्निंग डिसऑर्डर मुख्‍यत: तीन तरह का होता है। डिस्‍लेक्सिया, डिस्‍ग्राफिया और डिस्‍कैलकुलिया। डिस्‍लेक्सिया में बच्‍चे को शब्‍दों को पढ़ने में दिक्‍कत होती है। डिस्‍ग्राफिया में बच्‍चा ठीक से लिख नहीं पाता और डिस्‍कैलकुलिया में उसे गणित में दिक्‍कत आती है।

Behavior Disorder
Learning Disorder

ये है लक्षण

  • बच्चे को पढ़ते समय दिक्कत होने लगती है। अगर बच्चा पढ़ने की कोशिश भी करता है तो वो बहुत ही धीमी गति से पढ़ पाता है। बच्चे को लिखते समय बहुत दिक्कत होने लगती है। इस समस्या से पीड़ित बच्चे एकेडमिक्स में पीछे होते हैं। स्कूल जाते हैं, लेकिन उन्हें स्कूल में सिखाई जाने वाली चीजें जल्दी समझ नहीं आती है।
  • बच्चे बहुत ही धीरे-धीरे बोलते हैं। उनमें कॉन्फिडेंस की भी काफी कमी होती है।
  • लर्निंग डिसेबिलिटी से पीड़ित बच्चे वर्णमाला को पहचानने में बहुत ज्यादा मुश्किल का सामना करते हैं। उन्हें अक्षर और एल्फाबेट्स ठीक से पहचान में नहीं आते हैं।
  • इस समस्या से पीड़ित बच्चों को मैथ और पजल जैसी चीजों को समझने में काफी कठिनाई का सामना करना पड़ता है।
  • किसी बात को कैसे या किस ढंग से कहना इसका आइडिया न लगा पाना। इस कारण कई बार वो अपनी बात को ठीक से नहीं कह पाते हैं।

क्या करें

  • शुरुआत से ही बच्चे को माता-पिता का सही मार्गदर्शन मिले तो यह बच्चे के बौद्धिक विकास के लिए अच्छा है। साथ ही वह इस समस्या से आसानी से बाहर आ सकता है।
  • प्रोफेशनल सहायता से बच्चे को जल्दी लिख-पढ़ने में काफी मदद मिलती है इसलिए ज़रूरी है कि जल्द ही एक प्रोफेशनल की मदद ली जाए।
  • ऐसे बच्चों की परवरिश बेहद धैर्य के साथ की जाती है और आपको इस बात का भी पता होना चाहिए कि बच्चा बार-बार एक गलती को दोहराएगा।
  • ऐसे बच्चों की तुलना दूसरे बच्चों के साथ ना करें। ऐसे में उनके अंदर हीन भावना पैदा होती है।
  • बच्चों के टीचर से लगातार मिलती रहें। साथ ही उन्हें बताएं कि वे बच्चों में डांट फटकार या अपमान ना करें।
  • ऐसे बच्चों की पढ़ाई नई तकनीक को के माध्यम से शुरू करें। जैसे किताबों या इंटरनेट के माध्यम से जानकारी दें।
  • ऐसे बच्चे पढ़ाई में कमजोर होते हैं लेकिन उनके अंदर रचनात्मक प्रतिभा होती है। उस प्रतिभा को पहचानें और बच्चों को प्रोत्साहित करें।

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