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Hartalika Teej Vrat: हरतालिका तीज वस्तुतः तपस्या का आभार छंद है। हरतालिका तीज व्रत की कथा माता पार्वती और भगवान भोलेनाथ से जुड़ी हुई है। इस व्रत में मुख्य रूप से भगवान शंकर की पूजा होती है। ये व्रत अखंड सौभाग्य और पति की दीर्घायु के लिए रखा जाता है। हरतालिका तीज व्रत भाद्रमास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को रखा जाता है।

हरतालिका तीज व्रत की पौराणिक कथा

पौराणिक कथा के अनुसार महाराज दक्ष के द्वारा किए यज्ञ में जब माता सती से अपने पति का अपमान बर्दाश्त नहीं कर पाई। और यज्ञ की हवन कुंड में कूद कर आत्मदाह कर लिया। और अगले जन्म में राजा हिमाचल की पुत्री पार्वती के रूप में जन्मी।

राजा हिमाचल अपनी पुत्री का व्याह भगवान विष्णु से करना चाहते थे। माता पार्वती भगवान शिव को अपना पति मन ही मन मान चुकी थी। अपनी मनोदशा माता पार्वती ने अपनी सखियों के साथ व्यक्त की थी, सखियां मदद करने के लिए उन्हें हरण कर जंगल में ले जाती हैं। इसी कारण से इस व्रत का नाम हरतालिका तीज व्रत रखा जाता है।

जंगल में माता पार्वती भगवान शिव की मिट्टी की प्रतिमा बनाकर तपस्या करने लगीं। भगवान शिव उनकी तपस्या से खुश होकर उन्हें पत्नी के रूप में स्वीकार किया। इस व्रत में हमारी संस्कृति की कविता गूंथी हुई है। एक तरह की ध्यानमग्नता। इसका अमृत फल है-संबंधों का संचयन, राग भरे संबंधों की प्राप्ति का संवेदनशील शिल्प। ये व्रत निर्जला होता है। इसका अर्थ है-स्वयं में ही तरलता खोज ली जाए। इस व्रत में ऋतु फल का ही नैवेध चढ़ाया जाता है।

इस व्रत में सामा की सत्तू का बड़ा ही महत्वपूर्ण माना गया है। माता पार्वती जहां तपस्या कर रहीं थी, वो एक जंगल था, जंगल की झड़ियों में यही सामा के पौधे ही मिलते थे जिसे नैवेद्य के रूप में माता पार्वती भगवान भोलेनाथ को चढ़ाती थी। इस व्रत में रात्रि जागरण की जाती है। जागरण के दौरान महिलाएं भक्तिगीत कीर्तन कर के जागरण करती है। पर ये सब संयुक्त परिवार की खूबसूरती है। अब एकल परिवार होने के कारण आज की महिलाएं यू ट्यूब देख कर जागरण करती है, कारण किसी के अंदर संगीत का भाव नहीं होना है। कथानुसार जो भी महिलाएं इस व्रत को रखती हैं, उन्हें रात्रि जागरण करना पड़ता है।

तीज व्रत की मान्यता

हरतालिका तीज व्रत एक बार आरंभ करते हैं, तो यह आजीवन व्रत बन जाता है। माना जाता है इस दिन स्त्रियां सोलह श्रृंगार कर भगवान शिव और माता पार्वती की आराधना करती हैं और अपने पति के अखंड सौभाग्य की प्रार्थना करती हैं। कुछ लोगों का मानना है, वो इस व्रत को नहीं कर सकते क्योंकि हमारी जाति और हमारे परिवार में ये व्रत नहीं किया जाता है, यानी प्रचलन नहीं है। परंतु भगवान शिव की पूजा करने में भला क्या चलन और क्या नहीं। जब हम भारतीय परिधान को छोड़कर पश्चिमी परिधान को अपना सकते हैं, तो ये तो हमारी संस्कृति है।

ये व्रत कई राज्यों में मनाया जाता है लेकिन उत्तर भारत में इसको विशेष रूप से मनाया जाता हैं। भावनाओं से भरा वैवाहिक जीवन औपचारिकताओं से परे होता है।अपनापन और स्नेह ही इसका आधार बनता है। ठीक इस हरतालिका तीज के त्योहार का आधार बनता ही दांपत्य जीवन का समर्पण और प्रेम भाव ही है। शिव और पार्वती के जीवन जैसे सफल और प्रेममयी दांपत्य के लिए प्रार्थना करते है। यदि प्रेम न हो तो व्यक्ति कितना एकाकी है। पूर्ण निविड़ भाव के बिना कोई प्रेमयुती नहीं,चाहें लोक हो या लोकोक्तर जीवन।