इस साल श्री कृष्ण का जन्मदिन 24 अगस्त को है। भक्तों के बीच कृष्णा के जन्मदिन को मनाने का खूब उत्साह नजर आ रहा है। बहुत से भक्त ऐसे भी हैं, जो भगवान कृष्ण के ऊपर अपनी जान छिड़कते है लेकिन आज हम बात करेंगे श्री कृष्ण के उन प्रिय मित्रों के बारे में जिन पर वह अपनी जान छिड़कते थे। 
 
हालांकि सुधामा के बारे में तो हर किसी को पता है कि वह कृष्ण के सबसे प्रिय और खास मित्र थे। लेकिन इनके अलावा कृष्ण कन्हैया के चार और ऐसे मित्र थे, जिन्हें वह बेहद प्यार करते थे। तो चलिए जानते हैं उन खास मित्रों के बारे में-
 
कृष्ण और अर्जुन की मित्रता
कृष्ण और अर्जुन, यह दोनों एक दूसरे के सच्चे मित्र थे। उस समय लोग इनकी दोस्ती को एक मिशाल की तरह दिया करते थे। यहां तक की यह भी कहा जाता था कि इन दोनों की जोड़ी एक गुरु-शिष्य की तरह थी। 
 
ऐसा इसलिए कहा जाता था क्योंकि महाभारत ग्रंथ में इन दोनों की मित्रता को दर्शाते कई प्रसंग दर्ज हैं। बताया गया है कि श्रीकृष्ण की मित्रता अर्जुन को धर्म का सही मार्ग ना दिखाती, तो शायद महाभारत का इतिहास कुछ और ही होता। 
 
कृष्ण और सुदामा की मित्रता
इन दोनों की मित्रता के बारे में हर वो इंसान जानता है, जो श्री कृष्ण का सच्चा भक्त है। कृष्ण और सुदामा की दोस्ती के चर्चे आज भी है, कि कैसे कृष्ण यह सुनकर अपने महल के द्वार की ओर दौड़े चले गए थे कि सुदामा नाम का कोई व्यक्ति उनके महल के बाहर आया है और वह खुद को कृष्ण का मित्र बता रहा है। जिसके बाद सुदामा को देखते ही वे उन्हें गले लगाते हैं और पूरे मान-सम्मान के साथ महल के भीतर ले जाते हैं। महल के अंदर ले जाकर श्री कृष्ण ने सुदामा को आसन पर बिठाया और स्वयं अपने हाथों से उनके धूल-मिट्टी से भरे पांव धोए।
 
गरीबी से ग्रस्त सुदामा यह फैसला कर के कृष्ण के महल पहुंचते हैं कि वे उनसे मदद मांगेंगे। लेकिन वहां पहुंच कर सुदामा कृष्णा से अपने बुरे हालातों के बारे में कुछ नहीं कह पाते और वहां से चुपचाप चले जाते हैं।
 
लेकिन जब सुदामा वापस गांव पहुंचे तो उन्हें वहां अपनी झोपड़ी नज़र नहीं आई। कुछ ही क्षणों में उन्होंने देखा कि एक सुंदर घर से उनकी पत्नी बाहर आ रही है। यह मित्र कृष्ण की ही लीला थी कि वह सुदामा की चिंता पहचान गए थे और उनके बिना कुछ कहे भी एक मित्र ने अपना फर्ज़ पूरा कर दिया।
 
कृष्ण और द्रौपदी की मित्रता 
हमेशा से कृष्ण और द्रौपदी के रिश्ते को भाई-बहन का नाम दिया जाता रहा हैं या फिर यह कहा जाता था कि इन दोनों को विवाह के बंधन में बंधना चाहिए था। लेकिन दोनों के बीच की सच्ची मित्रता को हर कोई नहीं समझता। क्योंकि सदियों से यह कहा जाता है कि एक पुरुष और स्त्री केवल पति-पत्नी या भाई-बहन ही हो सकते हैं। लेकिन कृष्ण और द्रौपदी एक-दूसरे के सच्चे मित्र थे और उन्होंने इस बात का भी उदाहरण दिया कि पुरुष और स्त्री एक अच्छे मित्र भी हो सकते हैं।  

 

कृष्णा ने अपनी मित्रता का प्रमाण जब दिया था जब महाभारत के प्रसिद्ध प्रसंग के अनुसार भरी सभा में द्रौपदी को लज्जित किया जा रहा था, तब वहां उपस्थित ना होते हुई भी अपनी लीला के मार्ग से श्रीकृष्ण ने द्रौपदी का चीरहरण होने से रोका। और केवल यही प्रसंग नहीं, महाभारत ग्रंथ की कई कहानियों के अनुसार हर विपदा में श्रीकृष्ण ने द्रौपदी का साथ दिया था।
 
कृष्ण और अक्रूर की मित्रता
कृष्ण और अक्रूर केवल मित्र ही नहीं बल्कि इन दोनों का खून का खून का रिश्ता भी था। अक्रूर श्री कृष्ण के रिश्ते में चाचा लगते थे। लेकिन यह दोनों एक दूसरे के काफी अच्चे मित्र थे क्योंकि दोनों की उम्र में ज्यादा अंतर नहीं था। 

बता दें कृष्ण और बलराम को वृंदावन से मथुरा लाने वाले अक्रूर ही थे। दोनों की मित्रता हमें यह सीख देती है कि खून के रिश्तों में भी मित्रता होती है जोकि बेहद खास अहसास है।

 
कृष्ण और सात्यकि की मित्रता
श्री कृष्ण और सात्यकि की मित्रता के बारे में कम लोग जानते हैं। लेकिन हम आपको बता दें सात्यकि वह थे ,जिन्होंने युद्ध के दौरान नारायणी सेना का नेतृत्व किया था। इन्होंने अर्जुन से धनुष विद्या प्राप्त की थी। कहते हैं श्रीकृष्ण जब सात्यकि को हस्तिनापुर लाए थे तो सभा में प्रवेश करने से पहले उन्होंने सात्यकि से कहा था कि यदि युद्ध में मुझे कुछ हो जाए तो तुम हथियार नहीं छोड़ोगे।

तुम अंतिम समय तक दुर्योधन और नारायणी सेना के साथ युद्ध लड़ते रहोगे और मित्र के इसी उपदेश का सात्यकि ने पूरा पालन भी किया था। इसी से यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि सात्यकि और कृष्णा के बीच बेहद गहरी मित्रता थी। 

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