हो सकता है कि अपनी बात कहते हुए मैं इसकी सही तारतम्यता भूल जाऊं, लेकिन मकसद सही शब्द नहीं, बल्कि शब्दों के सही अर्थ इस संक्षिप्त कहानी के माध्यम से आप तक पहुंचाना है। इस एक लंबी कहानी का सार ये है कि दो व्यक्तियों में जो एक बड़ी धनराशि को लेकर शर्त लगती है, इसके चलते उनमें से एक व्यक्ति को एक कमरे में बेसिक ज़रूरत की चीज़ों के साथ एक तयशुदा समयसीमा अकेले काटनी होती है। तब वह व्यक्ति किताबों का साथ मांगता है। सामान्य मनोरंजक किताबों से शुरू करके धीरे-धीरे वह गंभीर साहित्यिक किताबों की ओर बढ़ता जाता है। उसकी जि़ंदगी, उसका नज़रिया सब कुछ उन किताबों की बदौलत इस तरह से बदलने लगा कि अपनी जीत से केवल एक दिन पहले वह व्यक्ति उस कमरे से बाहर आकर शर्त तोड़ देता है, क्योंकि अब जो धन उसने पा लिया था, उसके सामने दुनिया भर की दौलत बेमानी है, बेकार है।

किताबें, यानी कागज़ के कुछ टुकड़े, जिन पर महज़ कुछ शब्द छपे रहते हैं, क्या वाकई इनमें इतनी ताकत होती है कि ये किसी की पूरी जि़ंदगी ही बदलकर रख दें? तो इसका जवाब क्या हो सकता है, ये हमें आपको बताने की ज़रूरत नहीं है। आप इस मैगज़ीन को अपने हाथों में इस समय थामे हुए हैं और इन शब्दों को पढ़ते हुए इनमें कहीं न कहीं कोई समानता या फिर इस सवाल का जवाब ही ढूंढ़ रहे हैं। जी हां, यही इस सवाल का जवाब भी है।

चलिए, हम आपकी चहेती, अपनी इस मैगज़ीन गृहलक्ष्मी की ही बात ले लेते हैं। आपने इस मैगज़ीन का मूल्य चुकाकर इसे पाया है। इसमें अचार-सब्ज़ी बनाने से लेकर जि़ंदगी और रिश्तों के ज़ायके तक को बेहतर बनाने की कई बातें आप हर अंक में पढ़ते हैं। उनमें से कुछ सलाहें आपको काम की लगती होंगी, कुछ बेकार। फिर जिन बातों से आप प्रभावित होते हैं, उन्हें अपनी जि़ंदगी में अपनाने की कोशिश करते हैं। ये कोशिशें कभी कामयाब होती हैं तो कभी नाकामयाब। वे कोशिशें, जो कामयाब हो जाती हैं, उनसे आपको कुछ न कुछ बेहतर मिलता ही होगा और खुशी देता होगा। जब तक आप उन पर अमल करते हैं, चाहे वह लिपस्टिक का कोई नया शेड, सही तरीके से लगाना ही क्यों न हो, कुछ न कुछ अच्छा, कुछ न कुछ निखार आपके साथ जुड़ा दिखता है।

फिर कुछ समय बाद जब आप ऐसा नहीं करती हैं, तब भी ये जानकारियां आपके ज़ेहन में कहीं छिपी रह जाती हैं और कभी मौका पड़ने पर आप किसी को कोई उपयोगी टिप्स देकर अपनी काबिलियत की छाप छोड़ देती होंगी। ये उदाहरण ब्यूटी, फैशन, फिल्म्स, लाइफस्टाइल, हेल्थ वगैरह, कुछ भी हो सकता है। बस एक बात तय है कि जाना-सीखा हुआ कभी बेकार नहीं जाता। वह कहीं न कहीं काम आता ही है। ये तो थी हमारी पत्रिका की बात, लेकिन ये बात दुनिया की हर किताब पर लागू होती है। उनके भले ही आप चार पन्ने ही क्यों न पलट लें, आज़माकर देख लीजिएगा, कहीं न कहीं उसकी उपयोगिता साबित हो ही जाती है। 

किताबों में सिर्फ़ ज्ञान ही नहीं होता, बल्कि एक ऐसी रोशनी होती है, जो जहां भी पड़े, वहां का थोड़ा अंधेरा तो कम करती ही करती है। जि़ंदगी को और कोई भी रिश्ता, कोई भी जगह अकेला कर सकती है, लेकिन किताबों से जुड़ा रिश्ता न कभी अकेला पड़ने देता है, न ही भटकने। चाहे तो अपने आस-पास ही नज़र डालकर देखिए, बस में, ट्रेन में, मैट्रो में या कहीं और, भीड़ में अकेले पड़े लोगों की कोई कमी नहीं मिलेगी, लेकिन उन्हीं में कोई ऐसा भी होगा, जिसके हाथों में थमी किताब उसे जज़्बात की एक दूसरी दुनिया से ही जोड़े रखती है। वह भीड़ में तो क्या, कभी भी, कहीं भी अकेला नहीं पड़ सकता।

कभी आप अपने किसी ऐसे परिचित या दोस्त के घर गए होंगे, जिसे किताबें पढ़ने का इतना शौक है कि उसने अपने घर में छोटी-मोटी लाइब्रेरी ही बना रखी होगी। उन किताबों को वह अपनी बेशकीमत चीज़ की तरह, किसी अनमोल दौलत की तरह संभालकर रखता होगा। उन किताबों में उसकी जान इस तरह बसती होगी कि वह वे किताबें किसी को देने को तैयार ही नहीं होता होगा। कभी आप खुद उस जुनून को महसूस करके तो देखिए, किसी और वजह की ज़रूरतें खुद व खुद कम पड़ती चली जाएंगी।

किताब की प्रासंगिकता क्या हो सकती है, इसके लिए सिर्फ़ यही एक घटना बता देना काफी होगी इस बात को पूरी करने के लिए। जब जर्मनी में हिटलर वहां के विद्वानों को गैस चैंबर में मरवा रहा था, उनकी किताबें जलवा रहा था, तब एक लेखक, जिसकी किताब उसकी आंखों के सामने जलाई जा रही थी, उसने कहा था- जिस देश में आज किताबें जलाई जा रही हैं, क्या गारंटी है इस बात की कि कल इस देश में आदमी नहीं जलाए जाएंगे…

खामोश किताबों में इतना शोर होता है कि बहरी सत्ता तक को उसकी आवाज़ सुननी पड़ती है, उससे डरना पड़ता है… जो काम हज़ार तलवारें मिलकर नहीं कर पाती हैं, वह काम एक कलम बड़ी आसानी से कर देती है।

क्या अब भी आपको लगता है कि किताबों की प्रासंगिकता कभी कम हो सकती है? अगर हां तो कोई एक किताब उठाइए और कुछ देर के लिए ईमानदारी से उसमें खो जाइए। आपका जवाब वहीं छिपा है…

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