क्या है इक्वल पेरेंटिंग, जानिए सोहा अली खान से: Equal Parenting Tips
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Equal Parenting Tips: बच्‍चे की परवरिश माता या पिता किसी एक की जिम्‍मेदारी नहीं होती. उन्‍हें समझदार, जिम्‍मेदार और सकारात्‍मक बनाने में पेरेंटिंग का अहम रोल होता है. माता-पिता बनना एक खूबसूरत अहसास है और जब दोनों समान भूमिका निभाते हैं तो यात्रा और भी अधिक सुखद व फायदेमंद हो जाती है. सेलिब्रिटी सोहा अली खान और कुणाल खेमू ने हाल ही में पेरेंटिंग से जुड़े एक बेहद जरूरी मुद्दे ‘इक्‍वल पेरेंटिंग’ पर चर्चा की और लोगों को इसका पालन करने की हिदायत दी. आखिर क्‍या है इक्‍वल पेरेंटिंग और ये बच्‍चों के विकास के लिए क्यों जरूरी है, चलिए जानते हैं इसके बारे में.

क्‍या है इक्‍वल पेरेंटिंग

Equal Parenting Tips
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सोहा अली खान का मानना है कि आमतौर पर पेरेंटिंग की ज्‍यादातर मां पर होती, जिस वजह से कई बार उन्‍हें अपने करियर और सपनों को अलविदा कहना पड़ता है. इससे कई बार मां में फ्रस्‍ट्रेशन की स्थिति उत्‍पन्‍न हो जाती है, जिसका असर बच्‍चे की परवरिश पर भी पड़ता है. इसलिए जरूरी है कि दोनों पार्टनर मिल कर बच्‍चे के लालन-पालन की जिम्‍मेदारी उठाएं. इक्‍वल पेरेंटिंग सिर्फ बच्‍चे की जिम्‍मेदारियों को साझा करने तक ही सीमित नहीं है बल्कि घर के कामकाज और नौकरी के अलावा साथी को ‘मी-टाइम’ देना भी जरूरी है.

वर्तमान में जरूरी है इक्‍वल पेरेंटिंग

इक्वल पेरेंटिंग
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आजकल माता-पिता दोनों ही वर्किंग होते हैं. ऐसे में किसी एक के ऊपर बच्‍चे की जिम्‍मेदारी डालने से बच्‍चे के विकास और लालन-पालन में कमी आ सकती है. सोहा का कहना है कि इक्‍वल पेरेंटिंग से न केवल बच्‍चे की बेहतर देखभाल हो जाती है ,बल्कि पेरेंटिंग की जिम्‍मेदारियां साझा करने से कपल्‍स के आपसी संबंध भी मजबूत होते हैं. वर्तमान में बच्‍चे के विकास के लिए इक्‍वल पेरेंटिंग करना बेहद जरूरी है. इससे बच्‍चा हमेशा सेहतमंद और खुशहाल स्थिति में रहता है. सोहा का मानना है कि पेरेंट्स को एक टीम की तरह काम करना चाहिए ताकि बच्‍चे को उनसे सीखने का मौका मिले.

उदाहरण सेट करें

Make a Example
Make a Example Credit: shutterstock

सोहा इस बात पर पूरा यकीन करती हैं कि बच्‍चे पेरेंट्स को देखकर ही सीखते हैं. पेरेंट्स का जैसा व्‍यवहार और काम करने का तरीका होगा, बच्‍चे भी आगे चलकर उसी पैटर्न में काम करेंगे. इसलिए पेरेंट्स बच्‍चों के सामने उदाहरण सेट करें. पेरेंट्स को बच्‍चे के साथ क्‍वालिटी टाइम बिताना चाहिए. बच्‍चे के विकास के लिए पेरेंट्स बच्‍चों के साथ बिताए जा रहे समय को यादगार और खुशनुमा बनाएं. जैसे डायपर बदलते समय कोई गाना गुनगुनाएं या बच्‍चे को फीड कराते समय मां के पास बैठें और बात करें. इससे बच्‍चे में तो अच्‍छे गुण आते ही हैं साथ ही पेरेंट्स के बीच की दूरियां भी कम हो जाती हैं.

मी-टाइम जरूर निकालें

Me Time
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सोहा का मानना है कि रिश्‍ते में हमेशा ताजापन और मजबूती बनाए रखने के लिए मी-टाइम निकालना बहुत जरूरी है. वे इस बात पर जोर देती हैं कि बच्‍चे की परवरिश के चक्‍कर में पेरेंट्स खुद को न भूलें. ये जरूरी है कि आप खुद का और पार्टनर का ध्‍यान रखें. जब बच्‍चा सो रहा हो तो आप अपने लिए मी-टाइम निकाल सकते हैं. खासकर नए पेरेंट्स एक-दूसरे के साथ वक्‍त गुजारें, एक-दूसरे की परेशानियों को समझें और एक साथ उसका हल निकालें. बच्‍चे के आने के बाद जिंदगी काफी बदल जाती है लेकिन जब तक आप खुद से प्‍यार नहीं करेंगे तब तक बच्‍चा भी आपके प्‍यार को एक्‍सेप्‍ट नहीं करेगा.

करें सही प्‍लानिंग

Perfect Planning
Perfect Planning Credit: istock

बच्‍चे की जिम्‍मेदारी उठाने से पहले सही प्‍लानिंग करना जरूरी है. इक्‍वल पेरेंटिंग के जरिए आप अपने काम को जरूरत के अनुसार बांटें ताकि चीजों को मैनेज करना आसान हो जाए. बच्‍चे के खाने, पढ़ाने और यहां तक की नहलाने की जिम्‍मेदारी भी आपस में बांटी जा सकती है. छोटे बच्‍चे को प्रॉपर केयर, प्‍यार और अटेंशन की आववश्‍यकता होती है इसलिए बारी-बारी से बच्‍चे की जरूरतों को पूरा करने की कोशिश करनी चाहिए.

बच्‍चों के लिए फायदेमंद

Important for kids
Important for kids Credit: istock

जिम्‍मेदारियों को साझा करने में माता-पिता को तो लाभ पहुंचता ही है साथ ही यह बच्‍चों के लिए भी फायदेमंद होता है. इससे बच्‍चे को माता-पिता के साथ क्‍वालिटी टाइम बिताने का मौका मिल जाता है. इस प्रक्रिया से एक अच्‍छा और स्‍वस्‍थ रिश्‍ता भी विकसित होता है. पेरेंट्स के नियमित संपर्क में रहने से बच्‍चा, चर्चाओं, समस्‍याओं को साझा करने, समाधान पूछने और उनसे मार्गदर्शन प्राप्‍त करने के लिए तैयार हो जाता है. आजकल टीनएजर्स बाहरी लोगों से मदद मांगते हैं जो गलत सुझाव दे सकते हैं, जिससे बच्‍चे को नुकसान पहुंच सकता है. यदि पेरेंट्स बच्‍चे को पर्याप्‍त समय देंगे तो उसे बाहर किसी से मदद मांगने की आवश्‍यकता नहीं पड़ेगी. सोहा का मानना है कि बच्‍चे से निरंतर बात करने से उसके मनोस्थिति का भी पता लगाया जा सकता है. इससे बच्‍चे की छुपाने की आदत और झिझक कम होगी.

आती हैं कई मुश्किलें

Problems arise
Problems arise Credit: istock

सोहा का कहना है कि इक्‍वल पेरेंटिंग पुरानी पीढ़ी के पालन-पोषण का कुछ नया तरीका है जिसे एक्‍सेप्‍ट किया जा सकता है. हालांकि इससे कई समस्‍याएं पैदा हो सकती हैं लेकिन उन्‍हें हल किया जा सकता है. कई बार समय की कमी के कारण माता-पिता दोनों बच्‍चे को समय नहीं दे पाते जिस वजह से बच्‍चे की परवरिश पर असर पड़ता है या काम साझा करने के बावजूद काम पूरे न होना भी मुश्‍किलें बढ़ा सकता है. पेरेंटिंग के दौरान आने वाली समस्‍याओं को मिलकर सुलझाया जा सकता है. एक-दूसरे के काम की सराहना करने से भी कई उलझनें सुलझ सकती हैं. रिश्‍ते में आलोचना करने से बचें, साथ ही एक-दूसरे को जज न करें.

तय करें पेरेंटिंग के रूल्‍स

  • उन चीजों पर योजना बनाएं जिन्‍हें डिवाइड किया जाना है.
  • भूमिकाएं और कर्तव्‍य एक माता-पिता के लिए तय नहीं किए जाने चाहिए.
  • बच्‍चा रात में जागता है इसलिए सोने के घंटों की अदला-बदली करने से उचित और बेहतर नींद लेने में मदद मिल सकती है.
  • एक बार जब बच्‍चा स्‍कूल जाना शुरू करता है, तो उन विषयों को आपस में बांट लें जिन्‍हें पढ़ाया जाना है.
  • अपने काम के घंटों को फ्लेक्सिबल करने की कोशिश करें, खासकर जब बच्‍चा छोटा हो और उसे माता-पिता दोनों की उचित देखभाल, प्‍यार और ध्‍यान की आवश्‍यकता हो.
  • बोरियत भरे काम से बचने के लिए काम को साझा करें. साथ ही उन्‍हें बदलते रहें.
  • अपने बच्‍चे के जीवन में समान रूप से शामिल हों ताकि वह सहज महसूस करें और पेरेंट्स से खुला रहे.
  • काम को एक बोझ महसूस करने के बजाय एक साथ काम करने और चीजों को मैनेज करने का आनंद लें.

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