मोक्ष की प्राप्ति…यही तो चाहता है हर मनुष्य। वो चाहता है कि उसे उसके अच्छे कर्मों का फल मिले लेकिन बुरे कर्मों को भूल जाया जाए। कह सकते हैं कि चाहत पाप धूल जाने की होती है। प्रदोष व्रत इसी चाहत को पूरा करता है। माना जाता है कि इस व्रत को पूरा करने से पापों का प्रायश्चित हो जाता है और मोक्ष की प्राप्ति भी होती है। इस व्रत से जुड़ी और भी बातें हैं, जिन्हें जरूर जानना चाहिए। ताकि भक्ति और व्रत का फल पूरा मिल सके। प्रदोष व्रत से जुड़ी सारी बातें आइए, जानें-
हर दिन के हिसाब से अलग नाम-
प्रदोष व्रत महीने में दो बार पड़ता है। मगर इस दौरान वो किस दिन पड़ रहा है, इस पर इस व्रत का नाम निर्भर करता है। जैसे सोमवर को ये व्रत है तो उसे सोम प्रदोष कहते हैं। मंगलवार को ये व्रत होने पर इसे भौम प्रदोष और शनिवार को होने पर शनि प्रदोष नाम दिया जाता है। 
चंद्र मास का दिन-
भगवान शिव की उपासना वाले इस व्रत को चंद्र मास के 13 वें दिन मनाया जाता है। इस दिन को त्रयोदशी भी कहते हैं।
पुण्य की प्राप्ति-
ये एक ऐसा व्रत है, जिसमें पाप और पुण्य का हिसाब-किताब होता है। मतलब व्रत करके पापों से छुटकारा पा सकते हैं। माना ये भी जाता है कि ये व्रत करके खूब पुण्य मिलता है। दो गायों को दान करने के बराबर पुण्य इस व्रत से मिल जाता है। 
पौराणिक बातें हैं ऐसी-
इस व्रत से जुड़ी एक पौराणिक बात है, जिसमें बताया गया है कि जब इंसान सिर्फ बुरे कामों को ही करेगा। जब वो अधर्म के रास्ते पर होगा। तब ये व्रत करके मोक्ष के रास्ते पर चल सकता है। भगवान शिव उन्हें आशीर्वाद देकर सारे पापों से निकाल लेंगे। 
प्रदोष व्रत की विधि-
इस व्रत को करने के लिए आपको सूर्य निकलने से पहले उठना होगा। इसमें सारे दिन व्रत करने के बाद शाम को उतर-पूर्व दिशा की ओर बैठकर पूजा की जाती है। इसके लिए सूर्यास्त से एक घंटा पहले नहा धोकर सफेद कपड़े पहन लें और पूजा शुरू करें। इसमें कोशिश करें कि पूजा स्थल पर पांच रंगों से रंगोली बनाएं। इस वक्त आसन कुशा का ही लें तो अच्छा। 
अर्पण करें-
इस व्रत में भगवान शिव को कई कई चीजें अर्पित की जाती हैं, जैसे गाय का दूध, चंदन, भांग, धतूरा, गंगा जल आदि। 
11 या 26-
माना जाता है कि इस व्रत को ग्यारह या 26 त्रयोदशियों तक व्रत करने के बाद ही पूरा माना जाना चाहिए। तभी इसका उद्यापन भी करना चाहिए। उद्यापन भी त्रयोदशी तिथि पर ही किया जाना चाहिए। उद्यापन से एक दिन पहले भी गणेश जी की पूजा की जाती है। 
शिव का नृत्य-
माना जाता है कि भगवान शिव इस दिन रजत भवन में नृत्य कर रहे होते हैं और वहां मौजूद सभी उनका गुणगान कर रहे होते हैं। 
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