Kaal Bhairav Jayanti 2025
Kaal Bhairav Jayanti 2025

Overview: निडर और शक्ति के प्रतीक काल भैरव की जयंती कब

काल भैरव जयंती 12 नवंबर 2025 को है। इस दिन शिव के उग्र रूप काल भैरव की पूजा से भय, बाधा और अशुभ प्रभाव दूर होते हैं, मिलती है निडरता व सफलता।

Kaal Bhairav Jayanti 2025 Date: शास्त्र-पुराणों में भगवान शिव के कई रूपों के बारे में बताया गया है और शिव के कई रूपों की पूजा भी की होती है। शिव के अनेकों रूपों में एक है उनका उग्र स्वरूप, जिसे काल भैरव के रूप में जाना जाता है। काल भैरव की पूजा भगवान शिव के उग्र रूप में जाती है। मान्यता है कि काल भैरव की पूजा से नकारात्मक शक्तियों, पाप और भय दूर होते हैं। हर साल भक्त मार्गशीर्ष महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को काल भैरव की जयंती के रूप में मनाते हैं। आइये जानते हैं इस साल नवंबर 2025 में कब मनाई जाएगी काल भैरव की जयंती।

12 नवंबर 2025 को काल भैरव जयंती

December Festival 2023
December Festival 2023

काल भैरव जंयती को काल भैरव जयंती, भैरव अष्टमी या कालाष्टमी जैसे नामों से भी जाना जाता है। भगवान काल भैरव समय, मृत्यु और न्याय के देवता माने जाते हैं, जो अपने भक्तों को भय, असुरक्षा, और पापों से मुक्ति दिलाते हैं। मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि भगवान शिव के काल या उग्र रूप की अवतार की तिथि मानी जाती है। पचांग के अनुसार, इस साल काल भैरव जयंती 12 नवंबर 2025 बुधवार को पड़ रही है। अष्टमी तिथि 11 नवंबर सुबह 11:08 बजे शुरू होगी और 12 नवंबर को सुबह 10:58 पर खत्म हो जाएगी। इस प्रकार उदयाथिति को देखते हुए 12 नवंबर 2025 को ही काल भैरव की जयंती मनाई जाएगी।

कैसे करें काल भैरव की पूजा

Kaal Bhairav Puja
Kaal Bhairav Puja

काल भैरव जयंती के दिन सुबह स्नान कर भगवान शिव और भैरव जी का पूजा करें। काल भैरव की पूजा मंदिर में जाकर करनी चाहिए। काल भैरव के मंदिर जाकर सबसे पहले गंगाजल से अभिषेक करें। फिर फल, फूल, धूप, दीप, मिठाई, पान, सुपारी आदि जैसी सामग्रिया अर्पित करने के बाद धूप-दीप जलाएं। काल भैरव को इस दिन इमरती या जलेबी का भोग जरूर लगाएं। इस दिन कुत्तों को भोजन कराना और दान देना अत्यंत शुभ माना जाता है क्योंकि कुत्ता भगवान भैरव का वाहन है। पूजा के बाद कुत्तों को भोजन जरूर कराएं। इससे भगवान काल भैरव का आशीर्वाद मिलता है।

काल भैरव को क्यों कहते हैं काशी का कोतवाल

Kaal Bhairav Mandir
Kaal Bhairav Mandir

पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार ब्रह्मा, विष्णु और महेश के बीच इस बात को लेकर विवाद हुआ कि ब्रह्मांड का सर्वोच्च देव कौन है? इसके समाधान के लिए सभी देवताओं को बुलाकर उनकी राय ली गई। अधिकतर देवताओं ने शिव और विष्णु को श्रेष्ठ बताया, जिस पर ब्रह्मा जी नाराज हो गए और उन्होंने शिवजी को अपशब्द कहकर उनका अपमान किया।
इस पर भगवान शिव क्रोधिक हो गए और उनके क्रोध से ही काल भैरव का प्राकट्य (जन्म) हुआ। जिस दिन यह घटना हुई उस दिन मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि थी। इसलिए हर साल इस तिथि पर काल भैरव की जयंती मनाई जाती है। काल भैरव ने ब्रह्मा के पांचवें सिर को काट दिया। हालांकि यह कार्य उन्होंने अहंकार का नाश करने के लिए किया। इस घटना के बाद काल भैरव ने ब्रह्मा के अपराध के प्रायश्चित के रूप में काशी नगरी में जाकर तप किया और तभी से उन्हें काशी का कोतवाल (रक्षक) कहा जाने लगा।

मेरा नाम पलक सिंह है। मैं एक महिला पत्रकार हूं। मैं पिछले पांच सालों से पत्रकारिता क्षेत्र में सक्रिय हूं। मैं लाइव इंडिया और सिर्फ न्यूज जैसे संस्थानों में लेखन का काम कर चुकी हूं और वर्तमान में गृहलक्ष्मी से जुड़ी हुई हूं। मुझे...