Overview: भगवान शिव की क्रोधाग्नि से हुआ जन्म
जलंधर भगवान शिव की क्रोधाग्नि से जन्मा एक शक्तिशाली राक्षस था, जिसकी शक्ति उसकी पत्नी वृंदा के पतिव्रत धर्म से जुड़ी थी। अहंकार में उसने देवताओं को चुनौती दी, जिसके बाद भगवान विष्णु की युक्ति से वृंदा का पतिव्रत भंग हुआ और भगवान शिव ने जलंधर का वध किया।
Shiva Jalandhar War: हिंदू धर्म में कई ऐसी पौराणिक कथाएं हैं जो अच्छाई की बुराई पर जीत और धर्म की रक्षा का संदेश देती हैं। ऐसी ही एक रोचक कथा है दैत्यराज जलंधर की, जिसका जन्म खुद भगवान शिव की क्रोधाग्नि से हुआ था। उसकी शक्ति इतनी प्रबल थी कि देवताओं तक को उसके वध के लिए चाल चलनी पड़ी। आइए जानते हैं जलंधर के जन्म, विवाह, युद्ध और वध की पूरी कहानी।
भगवान शिव की क्रोधाग्नि से हुआ जन्म
कथा के अनुसार, एक बार भगवान शिव कामदेव पर बहुत क्रोधित हो गए। उनके क्रोध से निकली अग्नि से संपूर्ण संसार भस्म हो सकता था। इसलिए शिवजी ने अपनी वह क्रोधाग्नि समुद्र में डाल दी। उस स्थान पर समुद्र और गंगा का संगम था, जिसे आज गंगासागर कहा जाता है।
समुद्र में पड़ी उस अग्नि से एक बालक का जन्म हुआ। उसकी रोने की आवाज इतनी तीव्र थी कि पूरा संसार कांप उठा। देवता भयभीत होकर ब्रह्मा जी के पास गए। ब्रह्मा जी स्वयं समुद्र के पास पहुंचे और बालक को अपनी गोद में उठा लिया। उन्होंने स्नेहपूर्वक उसे “सिंधुपुत्र जलंधर” नाम दिया, क्योंकि उसका जन्म समुद्र (सिंधु) से हुआ था।
राजा बना दैत्यराज जलंधर
जन्म के कुछ समय बाद शुक्राचार्य ने जलंधर का राज्याभिषेक किया। वह बड़ा होकर असुरों का एक वीर और बलशाली राजा बना। जलंधर का विवाह वृंदा से हुआ, जो कालनेमि असुर की पुत्री और भगवान विष्णु की परम भक्त थी।
वृंदा एक पवित्र और पतिव्रता नारी थी। उसके पतिव्रत धर्म के कारण जलंधर को अपार शक्ति प्राप्त हुई। कहते हैं कि जब तक वृंदा का पतिव्रत अटूट रहा, तब तक जलंधर को कोई पराजित नहीं कर सका।
अहंकार बना पतन का कारण
अपनी शक्ति के बल पर जलंधर ने देवताओं को पराजित कर दिया और स्वर्ग पर कब्जा कर लिया। वह धीरे-धीरे अहंकारी हो गया और देवियों तक को सताने लगा। उसका अभिमान इतना बढ़ गया कि उसने माता पार्वती को पाने की इच्छा जताई। यह सुनकर भगवान शिव क्रोधित हो गए। उन्होंने देवताओं के अनुरोध पर जलंधर का सामना करने का निश्चय किया।
भगवान शिव और जलंधर का युद्ध
कैलाश पर्वत के निकट महादेव और जलंधर के बीच एक भयंकर युद्ध हुआ। दोनों की शक्तियों के टकराने से तीनों लोक कांप उठे। जलंधर के वरदान और वृंदा के पतिव्रत धर्म के कारण वह अजेय साबित हो रहा था। भगवान शिव के हर प्रहार का उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा था। देवता चिंतित हो गए कि जब तक वृंदा का पतिव्रत धर्म अटूट रहेगा, तब तक जलंधर को कोई हरा नहीं सकता।
भगवान विष्णु की योजना
अंततः भगवान विष्णु ने इस स्थिति को समझा और एक युक्ति बनाई। उन्होंने जलंधर का रूप धारण कर वृंदा के सामने प्रकट हुए। वृंदा ने उन्हें अपना पति समझ लिया और उनके साथ वैसे ही व्यवहार किया जैसे जलंधर के साथ करती थी। इससे वृंदा का पतिव्रत धर्म भंग हो गया और उसी क्षण जलंधर की शक्ति क्षीण होने लगी।
जब वृंदा को इस छल का एहसास हुआ, तो उसने विष्णु भगवान को श्राप दिया कि वे पत्थर बन जाएंगे। परंतु भगवान विष्णु ने उसे आशीर्वाद दिया कि वह तुलसी के रूप में पूजी जाएगी और उसके बिना कोई पूजा पूर्ण नहीं होगी।
जलंधर का वध और धर्म की विजय
वृंदा के पतिव्रत के भंग होने के बाद जलंधर कमजोर पड़ गया। तब भगवान शिव ने अपने त्रिशूल से उसका वध किया। इस प्रकार धर्म की जीत हुई और देवताओं ने फिर से स्वर्ग पर अपना अधिकार प्राप्त किया। कहा जाता है कि जलंधर के रक्त से समुद्र में रत्न और औषधियां उत्पन्न हुईं, जो आज भी समुद्र की गहराइयों में विद्यमान हैं।
वृंदा बनी तुलसी
जलंधर की मृत्यु के बाद वृंदा ने दुख में आत्मदाह कर लिया। उसके शरीर की राख से तुलसी पौधे का जन्म हुआ। इसलिए तुलसी को पवित्र माना जाता है और भगवान विष्णु की पूजा में तुलसी का विशेष महत्व है।
