Hindu Belief: हिंदू धर्म में गंगा नदी को अत्यंत पवित्र माना जाता है। न केवल इसे पूजा जाता है, बल्कि इसे मां का दर्जा भी दिया जाता है। गंगा नदी का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व अत्यधिक है, और इसे पवित्रता और शुद्धि का प्रतीक माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि गंगा में स्नान करने से व्यक्ति के सभी पाप धुल जाते हैं और उसके पुण्यों में वृद्धि होती है। इस पवित्र नदी के जल को ‘गंगाजल’ कहा जाता है, जिसे अत्यंत पवित्र और चमत्कारी माना जाता है।
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हिन्दू परिवारों में गंगाजल को विशेष महत्व दिया जाता है और इसे घर में रखने से नकारात्मक ऊर्जा प्रवेश नहीं कर पाती है। इसके अतिरिक्त, किसी भी धार्मिक अनुष्ठान, पूजा-पाठ, हवन या विशेष अवसरों पर गंगाजल का उपयोग अनिवार्य रूप से किया जाता है। गंगा नदी के साथ कई पौराणिक कथाएं और धार्मिक घटनाएं भी जुड़ी हुई हैं, जो इसकी महत्ता को और बढ़ाती हैं। गंगा नदी का जल जीवनदायिनी माना जाता है और इसे आस्था और श्रद्धा के साथ पूजनीय माना जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि काशी (वाराणसी) में गंगा नदी उल्टी दिशा में बहती है? ज्योतिष के अनुसार, इसके पीछे एक रोचक रहस्य है।
काशी में उल्टी गंगा का बहाव कहां होता है?
काशी, जिसे वाराणसी भी कहा जाता है, में गंगा नदी का उल्टा बहाव एक अद्वितीय और पवित्र घटना है। गंगा का यह उल्टा बहाव मणिकर्णिका घाट से तुलसी घाट तक लगभग डेढ़ किलोमीटर की दूरी में होता है। इस दौरान, गंगा का प्रवाह उल्टी दिशा में होता है, जो धार्मिक और पौराणिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। इन दोनों घाटों के बीच लगभग 45 अन्य घाट भी स्थित हैं। मणिकर्णिका घाट से तुलसी घाट के इस डेढ़ किलोमीटर के दायरे में, गंगा का बहाव आधे से एक घंटे तक उल्टा रहता है, जो इसे एक विशिष्ट और अद्वितीय धार्मिक स्थल बनाता है।
धार्मिक दृष्टिकोण
काशी (वाराणसी) में गंगा नदी के उल्टी दिशा में बहने की पौराणिक कथा अत्यंत रोचक और धार्मिक महत्व की है। इस कथा के अनुसार, जब गंगा स्वर्ग से पृथ्वी पर आईं, तब वह अपने पूर्ण वेग के साथ पृथ्वी के हर एक स्थान पर जा रही थीं ताकि पृथ्वी पर आया अकाल का संकट दूर हो सके। इसी दौरान, वाराणसी के घाट पर भगवान दत्तात्रेय तपस्या कर रहे थे। गंगा जब वहां से गुजरीं तो अपने साथ भगवान दत्तात्रेय का कमंडल और कुशा आसन बहा ले गईं।
गंगा को जब इस बात का आभास हुआ कि उन्होंने भगवान दत्तात्रेय की पवित्र वस्तुएं अपने साथ बहा ली हैं, तो उन्होंने तुरंत ही अपनी दिशा बदल दी। गंगा उल्टी दिशा में बहते हुए डेढ़ किलोमीटर वापस भगवान दत्तात्रेय के पास पहुंचीं और उन्हें उनकी वस्तुएं वापस करके क्षमा मांगी। भगवान दत्तात्रेय ने गंगा को क्षमा कर दिया और इसके बाद गंगा पुनः सामान्य दिशा में बहने लगीं। वाराणसी में गंगा के उल्टी दिशा में बहने की यह घटना धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है और इस स्थान का विशेष महत्व है।
भौगोलिक दृष्टिकोण
भौगोलिक दृष्टिकोण से, गंगा नदी काशी में दक्षिण से उत्तर की ओर बहती है, जो सामान्य नदी प्रवाह के विपरीत है। यह अनोखी दिशा नदी के मार्ग में आने वाले प्राकृतिक अवरोधों और भूगर्भीय संरचना के कारण होती है। गंगा नगर में प्रवेश करते ही नदी का मार्ग धनुषाकार हो जाता है, जिससे यह पहले पूर्व दिशा में मुड़ती है और फिर पूर्वोत्तर की ओर बढ़ती है। नदी के इस अनोखे प्रवाह के कारण, काशी में गंगा के किनारे बसे शहर का स्वरूप भी विशिष्ट हो गया है। घाटों की व्यवस्था, धार्मिक स्थलों का स्थानिक वितरण, और स्थानीय लोगों की जीवनशैली, सभी इस अनोखे भौगोलिक परिस्थिति से प्रभावित हैं।
