Geeta Gyan: सही वक्त पर सही निर्णय लेने की क्षमता हर व्यक्ति में होनी चाहिए। यदि समय बीत जाने के बाद निर्णय लिया गया तो वह किसी काम का नहीं। ऐसे कई लोग होते हैं जो छोटे-छोटे निर्णय लेने पर भी घबरा जाते हैं, वहीं कुछ लोग अपने लिए गए निर्णय पर संतुष्ट नहीं होते, तो वहीं कुछ दूसरों से पूछ कर जरूरी चीजों पर निर्णय लेते हैं। ऐसे में आपको जरूरत है डिसीजन मेकिंग स्किल सीखने की। लेकिन इसके लिए आपको कोई इंस्टीट्यूट ज्वाइन करने की जरूरत नहीं है बल्कि हिंदू धर्म के महत्वपूर्ण ग्रंथ श्रीमद्भागवद्गीता में आपको इसके सूत्र मिल जाएंगे। गीता में जीवन का सार है, जिससे आपकी हर तरह की परेशानियां दूर हो सकती है। सही फैसले लेने के संबंध में भी गीता में जरूरी बातें बताई गई हैं।
महाभारत काल में निर्णय लेने की ऐसे ही असमंजस स्थिति अर्जुन के सामने भी पैदा हो गई थी। जब उन्होंने कुरुक्षेत्र के मैदान में विरोधी के रूप में अपने सगे-संबंधियों और पितामह को देखा। तब अर्जुन भी फैसला नहीं कर पा रहे थे कि ऐसी स्थिति में क्या किया जाए? कैसे अपनों पर ही अस्त्र-शस्त्र चलाया जाए? क्या कदम पीछे हटा लेना चाहिए या युद्ध से हार मान लेनी चाहिए? ऐसे अनेकों सवाल उस समय अर्जुन के मन में चल रहे थे। तब भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को महाभारत युद्ध के दौरान उपदेश दिए। इसके बाद अर्जुन ने महाभारत युद्ध की लड़ाई लड़ी। उन्होंने न सिर्फ युद्ध किया बल्कि इस युद्ध में जीत हासिल की। दरअसल यह युद्ध केवल पांडव ही नहीं बल्कि धर्म की भी जीत थी।

लेकिन श्रीकृष्णा अच्छे से जानते थे कि कलयुग में भी लोगों के लिए सही फैसला लेना कितना संघर्षमय होगा। इसलिए उन्होंने अर्जुन को माध्यम बनाकर गीता द्वारा सफल मानव जीवन के कई सूत्र दिए। कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए इन्हीं उपदेश को गीता ज्ञान या गीता उपदेश कहा जाता है। अगर आपको भी सही निर्णय या फैसला लेने में दिक्कत होती है तो आपको गीता की इन बातों को जरूर ध्यान में रखना चाहिए। गीता की यह बातें आपके निर्णय लेने की क्षमता को बढ़ाएगी।
सही फैसला लेने के जरूरी सूत्र

- इस समय नहीं लेना चाहिए निर्णय: गीता के छठे अध्याय में कृष्ण कहते हैं कि मानसिक स्थिरता की स्थिति में ही निर्णय लेना चाहिए। यानी जब आप अधिक खुश या अधिक दुखी हों तो उस समय कोई निर्णय नहीं लेना चाहिए। क्योंकि दुख या बहुत खुशी की स्थिति में गलत निर्णय लेने की संभावना अधिक बढ़ जाती है।
- परिणाम से नहीं डरें:- जब आपने कोई निर्णय ले लिया है तो इसके बाद उसके परिणाम से नहीं डरे। क्योंकि किसी भी फैसले के साथ परिस्थितियों में परिवर्तन भी आएगा। ऐसे में अगर आपके निर्णय लेने से बदलाव आ रहा है तो बदलाव होने दें। अगर आप अपनी सहज स्थिति यानि कंफर्ट जोन से बाहर नहीं आएंगे तो अपनी क्षमताओं को समझ नहीं पाएंगे।
- कर्म करो फल की चिंता मत करो: आप निष्काम भाव से अपना कर्म करते रहें। सही निर्णय लें और कार्य से जुड़े प्रयास करते रहें। कार्य को पूरा करने के लिए कर्म आपके हाथ में है, उसका परिणाम नहीं। इसलिए आपके फैसले के बाद उसका परिणाम अच्छा हो या बुरा यह सोचकर अपना काम करना बंद न करे। क्योंकि कर्क आपके हाथ में हो परिणाम ईश्वर के हाथ में।
- स्वयं से करें प्रश्न:- कोई निर्णय लेते समय दूसरों से पूछने के बजाय पहले खुद से सवाल करें कि कहीं यह निर्णय आप भावुकता या क्रोध में तो नहीं ले रहे हैं। हर पक्ष पर पूरी ईमानदारी से खुद से सवाल करें। जब आप अपने जवाब से संतुष्ट हों तभी निर्णय के साथ आगे बढ़ें।
- विश्वास भी है जरूरी:- आप चाहे जो भी फैसला करें, लेकिन आपका खुद पर भरोसा होना और भगवान पर भरोसा होना बहुत जरूरी है। अगर आपकी इच्छा दृढ़ और नीयत साफ होगी तो आपके फैसले को सही करने में ईश्वर भी आपकी मदद करेंगे। इसलिए निर्णय लेने के लिए सही नीयत और पक्का इरादा भी होना जरूरी है।
