Geeta Gyan: श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को जो उपदेश महाभारत के दौरान दिया गया, उसे ही गीता कहते हैं। जब अर्जुन ने कुरुक्षेत्र की युद्ध भूमि में अपने पितामह और सगे-संबंधियों को देखा तो युद्ध से पीछे हटने का फैसला कर लिया। वह कर्तव्यों और रिश्ते-नातों को लेकर भ्रमित हो गए और निर्णय नहीं कर पा रहे थे कि आखिर क्या करना चाहिए। तब श्रीकृष्ण ने गुरु का धर्म निभाया और अर्जुन को उपदेश दिए। श्रीकृष्ण द्वारा दिए ये उपदेश आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं, जितने की महाभारत काल में अर्जुन के लिए थे। सिर्फ अर्जुन ही नहीं बल्कि हर किसी के जीवन में एक समय ऐसा जरूर आता है, जब निर्णय करना मुश्किल हो जाता है, व्यक्ति अपने रिश्ते और कर्तव्यों को लेकर भ्रमित रहता है।
ज्ञान का सागर है श्रीमद्भागवद्गीता

आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में मनुष्य सबसे अधिक भ्रमित है। रोजमर्रा के काम, नौकरी, व्यापार, करियर आदि को लेकर व्यक्ति तनाव और भ्रमित रहता है। इसका करण है अस्पष्टता। इस तरह से भगवत गीता में हम सब की कहानी है। भगवत गीता का हर श्लोक हर अध्याय ईश्वर के साथ उस दिव्य प्रेमपूर्ण संबंध की ओर करीब ले जा है। गीता केवल एक पुस्तक न होकर इससे अधिक है। क्योंकि गीता जीवन का सही मार्ग दिखाती है और जीने का ढंग सिखाती है। इसके पाठ से धर्म, कर्म और प्रेम के भाव का पता चलता है। इसलिए कहा जाता है कि गीता में जीवन का सार है।
इसलिए महाभारत की युद्ध भूमि में अर्जुन और कृष्ण के बीच इस संवाद से हर किसी को प्रेरणा लेनी चाहिए। जो व्यक्ति अपने जीवन में गीता का अध्ययन कर इसमें बताई बातों का अनुसरण कर लेता है उसे स्वत: ही हर समस्या का समाधान मिलने लगता है। गीता में कृष्ण कहते हैं कि, हर किसी के जीवन में तमाम तरह की परेशानियां हैं, लेकिन सभी परेशानियों का एक ही समाधान है और वह है ‘ज्ञान’। श्रीमद्भागवद्गीता को ज्ञान का सागर माना जाता है।
हर समस्या का समाधान है ‘ज्ञान’

- ज्ञान के अभाव में व्यक्ति सही-गलत की समझ खो बैठता है। गीता में भी कहा गया है कि, क्रोध भ्रम को उत्पन्न करता है और इससे बुद्धि व्यग्र हो जाती है। ऐसा व्यक्ति अपने मार्ग से भटकर सारे तर्कों का नाश कर बैठता है, जिससे उसका पतन हो जाता है। इसलिए ज्ञान का विस्तार करें और क्रोध को नियंत्रित रखें।
- गीता के अनुसार गलत सोच ही जीवन की एकमात्र समस्या है। वहीं ज्ञान सभी समस्याओं का अंतिम समाधान है। श्रीकृष्ण कहते हैं कि, मनुष्य को अपने मन पर विश्वास नहीं करना चाहिए क्योंकि ये बार-बार मनुष्य को भटकाता है। मन के बजाय कर्म पर ही ध्यान केंद्रित करना परम कर्तव्य है।
- ज्ञान को लेकर भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि, आत्म मंथन करके खुद को पहचानो, क्योंकि जब स्वयं को पहचान लोगे तभी क्षमता का आंकलन कर पाओगे। इसलिए ज्ञान रूपी तलवार से अज्ञान को काटकर अलग कर देना चाहिए। जब व्यक्ति ज्ञान से अपनी क्षमता का आंकलन कर लेता है, तभी उसका उद्धार हो पाता है।
- ज्ञान की महत्ता को लेकर गीता में कहा गया है कि ज्ञान, भक्ति और कर्म ही मोक्ष प्राप्ति का मार्ग है। वहीं अज्ञानता के कारण व्यक्ति बंधन में पड़ जाता है।
- गीता के अनुसार, असली ज्ञानी वही है जिसके मन में कर्मों को लेकर वैराग्य भावना है। ज्ञानी पुरुष अहंकार से मुक्त होता है.
