Overview: कौन हैं वो चार भक्त जो करते हैं भगवान की भक्ति
भगवद गीता जीवन, कर्म और भक्ति का मार्ग दिखाती है। इसमें श्रीकृष्ण ने चार प्रकार के भक्तों का वर्णन कर ज्ञानी भक्त को श्रेष्ठ बताया है।
Geeta Gyan: भगवद गीता में ज्ञान का भंडार है। इसमें धर्म, कर्म और आध्यात्म का सार छिपा है। गीता का पाठ करने वाले और इसे अपनाने से मनुष्य जीवन जीने और दुखों से निपटना की कला भी सीखता है। भगवत गीता का ज्ञान श्रीकृष्ण द्वारा कुरुक्षेत्र की युद्ध में अर्जुन को दिया गया वह दिव्य उपदेश है, जोकि महाभारत काल से लेकर आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना कि उस समय था। गीता का दिव्य ज्ञान पाकर अर्जुन ने जिस तरह युद्ध में विजय हासिल की, उसी तरह गीता के गहन ज्ञान से मनुष्य भी सफलता की कुंजी को पा सकता है। जीवन में संकट के समय मार्गदर्शन करने, मानसिक शांति और स्थिरता प्रदान करने, निर्णय लेने की क्षमता बढ़ाने और आत्मा-परमात्मा के संबंध को समझाने में गीता की अहम भूमिका होती है।
भक्त और भक्ति का विस्तार बताती है ‘गीता’

गीता में कर्म, धर्म और जीवन से जुड़ी कई बातों का उल्लेख मिलता है। इसी के साथ गीता में भगवान, भक्त और भक्ति के बारे में भी बतलाया गया है। श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं- हे अर्जुन! जो पुण्यकर्मी हैं, वे चार कारणों से भगवान की भक्ति की ओर आकर्षित होते हैं। श्रीकृष्ण कहते हैं कि, आर्त, जिज्ञासु, अर्थार्थी और ज्ञानी ऐसी चार प्रकार की भक्त हैं जो ईश्वर की भक्ति करते हैं। आइये जानते हैं इसके बारे में विस्तार से-
“चतुर्विधा भजन्ते मां जनाः सुकृतिनोऽर्जुन।
आर्तो जिज्ञासुरर्थार्थी ज्ञानी च भरतर्षभ॥”
इस श्लोक में श्रीकृष्ण कहते हैं- चार तरह के पवित्र भक्त मेरी भक्ति में लीन रहते हैं। जो दुखी होते हैं, जो ज्ञान के प्रति जिज्ञासु होते हैं, जो सांसारिक संपत्ति चाहते हैं और जो ज्ञान में स्थित हैं। श्रीकृष्ण ने इनकी भक्ति का कारण भी बताया है।
दुख के समय भगवान को याद करने वाले:- जो लोग केवल दुख या संकट की घड़ी में भगवान को याद करते हैं वे आर्त भक्त कहलाते हैं। जब चारों ओर से इन्हें दुख से निपटने का मार्ग समझ में नहीं आता तो अंत में ये भगवान की शरण में पहुंचते हैं और कष्ट या समस्या से मुक्ति की प्रार्थना करते हैं। यानी जब ये पीड़ित होते हैं, तभी भगवान की शरण में आते हैं।
जिज्ञासु भक्त:– ये ऐसे भक्त होते हैं जो भगवान, आत्मा, जीवन और ब्रह्माण्ड के रहस्यों को जानने के लिए भगवान की भक्ति करते हैं। ये भगवान के बारे में सबकुछ जानने को उत्सुक होते हैं और भक्ति के माध्यम से उसकी खोज में रहते हैं।

अर्थार्थी भक्त:- ये ऐसे भक्त होते हैं जोकि सबसे निम्न श्रेणी के भक्त माने जाते हैं। क्योंकि इनकी भक्ति भोग, ऐश्वर्य, लालचा और सुख की प्राप्ति के लिए होती है। ये भक्ति से अधिक भौतिक सुखों को सर्वोपरि रखते हैं।
ये होते हैं श्रेष्ठ और सच्चे भक्त:- ज्ञानी भक्त की भक्ति को श्रीकृष्ण ने सर्वश्रेष्ठ भक्त बताया। क्योंकि ये बिना किसी कामना या लालसा के भगवान की भक्ति करते हैं। इन्हें भगवान की भक्ति के अलावा अन्य कुछ नहीं चाहिए होता है। इसलिए ऐसे निष्काम भक्त को भगवान सर्वश्रेष्ठ भक्त कहते हैं।
