सांई बाबा ने अपना आरंभिक जीवन मुस्लिम फकीरों के साथ बिताया था लेकिन उन्होंने किसी के साथ कोई भी व्यवहार धर्म के आधार पर नहीं किया। उनके लिए तो सबका मालिक एक ही है, हिन्दू और मुस्लिम एक ही हैं। वे जब किसी मुस्लिम से मिलते तो कहते थे, राम भला करेगे और जब किसी हिन्दु से मिलते तो कहते थे अल्लाह मालिक है। आइए जानते हैं सांई बाबा के बारे में कुछ फैक्ट्स, जो बताते है कि साईं हिन्दू थे-
 
  • महाराष्ट्र के परभणी जिले के पाथरी गांव में सांईं बाबा का जन्म हुआ था। सांईं के पिता का नाम गोविंद भाऊ और माता का नाम देवकी अम्मा है। कुछ लोग उनके पिता का नाम गंगाभाऊ बताते हैं और माता का नाम देवगिरि अम्मा। दे‍वगिरि के पांच पुत्र थे। सांईं बाबा गंगाभाऊ और देवकी के तीसरे नंबर के पुत्र थे। उनका नाम था हरिबाबू भुसारी।
  • सांई के बारे में जानकार मानते हैं कि वे नाथ संप्रदाय का पालन करते थे। हाथ में पानी का कमंडल रखना, धूनी रमाना, हुक्का पीना, कान बिंधवाना और भिक्षा पर ही निर्भर रहना- ये नाथ संप्रदाय के साधुओं की निशानी हैं। नाथों में धूनी जलाना जरूरी होता है जबकि इस्लाम में आग हराम मानी गई है। सिर्फ इस एक कर्म से ही उनका नाथपंथी होना सिद्ध होता है।
  • सांई बाबा हर सप्ताह नाम कीर्तन का आयोजन करते थे जिसमें भगवान कृष्ण जी के भजन होते थे। 
  • बाबा धूनी रमाते थे और धुनी सिर्फ शैव और नाथपंथी संत ही जलाते हैं।
  • साईं बाबा के कान बिंधे हुए थे। कान छेदन संस्कार सिर्फ नाथपंथियों में ही होता है।
  • सांई बाबा कपाल पर चंदन का तिलक करते थे।
  • हिन्दुओं में यह प्रथा प्रचलित है कि जब किसी मनुष्य का अंत काल निकट आ जाता है तो उसे धार्मिक ग्रंथ आदि पढ़कर सुनाए जाते हैं। जब बाबा को लगा कि उनका समय पास आ गया है, तब उन्होंने श्री वझे को रामविजय कथासार सुनाने की आज्ञा दी। एक सप्ताह प्रतिदिन आठों पहर श्री वझे ने पाठ सुनाया। 
  • साईं बाबा के माता-पिता के घर के पास ही एक मुस्लिम परिवार रहता था। उन्हें कोई संतान नहीं थी। हरिबाबू यानी साईं उनके ही घर में अपना ज्यादा समय व्यतीत करते थे। चांद बी हरिबाबू को अपने बेटे की तरह ही मानती थीं।
सांई बाबा को हिन्दू या मुसलमान साबित करने वालों के अपने-अपने तर्क हैं और उन तर्को को गलत साबित करने वाले तथ्य भी हैं लेकिन अगर देखा जाए तो सांई बाबा संत थे और संत का कोई धर्म नहीं होता है।