अयोध्या की सरयू नदी के दाहिने तट पर ऊंचे टीले पर स्थित हनुमानगढ़ी सबसे प्राचीन मंदिर माना जाता है। माना जाता है कि लंका विजय करने के बाद हनुमान यहां एक गुफा में रहते थे और राम जन्मभूमि और रामकोट की रक्षा करते थे। इसी कारण इसका नाम हनुमानगढ़ या हनुमान कोट पड़ा। यही से श्रीराम भक्त हनुमान रामकोट पर नजर रखते हैं।
हनुमान मंदिर परिचय
हनुमान गढ़ी, वास्तव में एक गुफा मंदिर है। यहां तक पहुंचने के लिए लगभग 76 सीढ़ियां चढ़नी होती हैं। यहां पर स्थापित हनुमानजी की प्रतिमा केवल छः (6) इंच लंबी है, जो हमेशा फूलमालाओं से सुशोभित रहती है। इस मंदिर परिसर के चारों कोनो में परिपत्र गढ़ हैं। मंदिर परिसर में मां अंजनी व बाल (बच्चे) हनुमान की मूर्ति है जिसमें हनुमानजी, अपनी मां अंजनी की गोदी में बालक रूप में लेटे हैं। हनुमानगढ़ी में ही अयोध्या की सबसे ऊंची इमारत भी है जो चारों तरफ से नजर आती है। इस विशाल मंदिर व उसका आवासीय परिसर करीब 52 बीघे में फैला है। वृंदावन, नासिक, उज्जैन, जगन्नाथपुरी समेत देश के कई नगरों में इस मंदिर की संपत्तियां, अखाड़े व बैठक हैं।
मंदिर की दूरी
पवनपुत्र हनुमान को समर्पित यह मंदिर अयोध्या रेलवे स्टेशन से 1 किमी दूरी पर स्थित है, इस मंदिर का निर्माण विक्रमादिय द्वारा करवाया गया था जो आज हनुमान गढ़ी के नाम से प्रसिद्ध है। ऐसी मान्यता है की पवनपुत्र हनुमान यहाँ रहते हुए कोतवाल के रूप में अयोध्या की रक्षा करते हैं। मंदिर के प्रांगन में माता अंजनी के गोद में बैठे बाल हनुमान को दर्शाया गया है।
हनुमानगढ़ी के दर्शन क्यों है ज़रूरी
अयोध्या जो भी जाता है वह हनुमानगढ़ी के दर्शन जरूर करता है। रावण पर विजय प्राप्त करने के बाद भगवान राम जब अयोध्या लौटे तो हनुमानजी ने यहां रहना शुरू किया। इसी कारण इसका नाम हनुमानगढ़ या हनुमान कोट पड़ा। यहीं से हनुमानजी रामकोट की रक्षा करते थे। मुख्य मंदिर में माता अंजनी की गोद में पवनसुत विराजमान हैं।
धार्मिक दृष्टिकोण
देश-विदेश से भी बड़ी संख्या में लोग यहां दर्शन करने पहुंचते हैं। लेकिन कम ही लोग जानते हैं कि आलीशान हनुमानगढ़ी को अवध के नवाब शुजाउद्दौला ने बनवाया था। इसके पहले वहां हनुमानजी की एक छोटी सी मूर्ति को टीले पर पेड़ के नीचे लोग पूजते थे। हनुमानगढ़ी बनवाने के पीछे सद्भाव की एक रोचक कहानी है। बाबा अभयराम ने नवाब शुजाउद्दौला के शहजादे की जान बचाई थी, तब नवाब के बार-बार मिन्नत करने पर उन्होंने हनुमानगढ़ी बनवाने का प्रस्ताव रखा, जिसे नवाब ने सहर्ष स्वीकार कर लिया।
वास्तु दृष्टिकोण
यह विशाल मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टि से अच्छा है बल्कि वास्तु पहलू से भी इसे बहुत अच्छा माना जाता है। लोगों का मानना है कि इस मंदिर में सभी मन्नतें पूरी होती हैं। साल भर इस मंदिर में भक्तों का तांता लगा रहता है।
हनुमान निशान
हनुमानगढ़ी मंदिर में एक विशेष ‘हनुमान निशान’ है, यानी चार मीटर चैड़ा और आठ मीटर लंबा ध्वज है। इसके साथ ही एक गदा और एक त्रिशूल होता है, जिसे करीब 20 लोग हनुमानगढ़ी से रामजन्मभूमि स्थल पर ले जाते हैं। परंपरा के मुताबिक, हर पूजा से पहले हनुमान निशान राम जन्मभूमि स्थल में जाता है। अगर कोई शुभ कार्य होता है, तो हनुमान निशान की पूजा पहले की जाती है. वहां से ही निशान को ले जाया जाता है, ऐसा ही भूमि पूजन के लिए होना था।
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