एक ऐसा शक्ति पीठ जहां बगैर तेल बाती के प्रज्ज्वलित है, मां का ज्वाला स्वरूप: Jwala Devi Temple
Jwala Devi Temple

Jwala Devi Temple : हमारे भारत की यह भूमि अनादि काल से ही अपनी पवित्रता के कारण विश्व में जानी जाती रही है। भगवान श्री राम और भगवान श्री कृष्ण की जन्मस्थली रही यह भूमि अपने गर्भ में अनेकों अनेक अद्भुत, अविश्वसनीय और अकल्पनीय रहस्यों को भी समेटे हुए है और ऐसा ही एक अद्भुत, अविश्वसनीय और अकल्पनीय रहस्य है हिमाचल प्रदेश के काँगड़ा जिले में मौजूद श्री ज्वाला देवी मंदिर। माँ भगवती के 51 शक्तिपीठों में से एक यह मंदिर यहां जलने वाली 9 ज्वालाओं की वजह से विख्यात है।

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हिमाचल प्रदेश में मौजूद श्री ज्वाला देवी मंदिर है, बेहद खास: Jwala Devi Temple

Shri Jwala Devi Temple present in Himachal Pradesh is very special.

क्या है 9 ज्वालाओं में खास?

यहां जलने वाली 9 ज्वालाएँ बिना किसी तेल, घी या मानव की सहायता के हज़ारों सालों से स्वयं ही जल रही हैं। कहते हैं की शहंशाह अकबर समेत कितने ही देशी-विदेशी वैज्ञानिकों ने भी इन ज्वालाओं के पीछे छिपे रहस्य को पता लगाने की कोशिश की लेकिन 9 से 10 किलोमीटर तक खोदने के बाद भी उन्हें कुछ प्राप्त नहीं हुआ और आज भी यह मंदिर उन वैज्ञानिकों के लिए चिंता और खोज का विषय बना हुआ है।

क्या है इस मंदिर का इतिहास?

पुराणों के अनुसार यह मंदिर सदियों पुराना है। कहा जाता है की जब माता सती बिना बुलाए ही अपने पिता राजा दक्ष के घर पर हुए यज्ञ अनुष्ठान में गई और उन्होंने वहां जाकर अपने पति यानी भगवान शिव का अपमान होते हुए देखा तो वह इसे सहन ना कर पाईं और उसी यज्ञ की अग्नि में कूदकर अपने प्राण त्याग दिये।। यह बात जब भगवान शिव को पता लगी तो वह क्रोध में भर गये और दक्ष यज्ञ स्थान पर पहुंचे। वहां उन्होंने माता सती के पार्थिव शरीर को अग्नि में से निकाला और अपने कंधे पर डालकर क्रोध से भरकर सम्पूर्ण संसार में विचरण करने लगे जिसके कारण महाप्रलय आने लगी। तभी भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के पार्थिव शरीर को काट दिया। जिन 51 स्थानों पर देवी सती के अंग गिरे उन्हें 51 शक्ति पीठों के रूप में जाना गया।

गिरा था सती का कौनसा अंग?

इस स्थान पर माता सती की जीव्हा यानी जीभ गिरी थी जिसके बाद उसने 9 ज्योतियों का दिव्य स्वरूप धारण कर लिया और तब से अब तक यह 9 दिव्य ज्वालाएं निरंतर जल रही हैं।

9 ज्वालाओं में हैं माँ के 9 रूप

इन 9 ज्वालाओं में से एक ज्वाला थोड़ी बड़ी है जिसे साक्षात ज्वाला माता का रूप माना जाता है और बाकी 8 ज्वालाओं को माँ सरस्वती, माँ अंजनी, माँ चंडी देवी, माँ महालक्ष्मी, माँ विंध्यवासनी, माँ अन्नोपूर्णा, माँ अंबिका और माँ हिंगलाज के रूप में पूजा जाता है। साथ ही साथ भगवान शिव शंकर भैरव देव के रूप में यहां विराजमान हैं।

माँ ने तोड़ा शहंशाह अकबर का घमंड

लोककथाओं के अनुसार अपने भक्त ध्यानू का मान रखने और उसकी ज़िंदगी बचाने के लिए माँ ज्वाला ने अकबर को साक्षात दर्शन देकर उसका घमंड तोड़ा था और साथ ही अकबर द्वारा लाए गये सोने के छत्र को माँ ने अपने क्रोध से काला कर दिया था। वह छत्र आज भी मंदिर प्रांगण में शोभित होकर इस कहानी की सत्यता की गवाही देता है।