घर में गणेश जी की मूर्ति स्थापित करते समय हमें दिन, दिशा, स्थान आदि बातों का ध्यान रखना चाहिए। क्या है सही नियम? आइए जानते हैं वास्तु के अनुसार कहां और कैसे करें गणेश मूर्ति की स्थापना –
 
मूर्ति कहां प्रतिष्ठित करें?
 
  • गणपति आदि देवताओं का मंदिर घर के ईशान-कोण में होना चाहिये और उनकी स्थापना इस प्रकार करनी चाहिये कि उनका मुख पश्चिम की ओर रहे।
  • यदि साधक के इष्ट-देवता श्रीगणपति भगवान हैं तो उनकी स्थापना मध्य में करके ईशान-कोण में श्रीविष्णु की, अग्निकोण में श्रीशंकर जी, नैऋत्य-कोण में श्रीसूर्य की और वायुकोण में श्रीदुर्गा की स्थापना करनी चाहिये।
  • मंदिर में मात्र एक देवता की मूर्ति रखना निषेध है। व्यक्ति यदि अपनी कामनाओं की सफलता चाहता है तो उसे मंदिर में कई देवताओं को रखना चाहिए, लेकिन एक ही देवता की अनेक मूर्तियां नहीं रखनी चाहिए।
  • घर में कभी-कभी एक देवता की अनेक मूर्तियों का संग्रह हो जाता है, अतएव आराधक को उनकी संख्या का औचित्य ध्यान में रखना आवश्यक है। घर में दो शिवलिंगों, दो शखों, दो सूर्य-प्रतिमाओं, दो शालग्रामों, दो गोमती-चक्रों, तीन गणपति-प्रतिमाओं एवं तीन देवी-प्रतिमाओं की स्थापना नहीं करनी चाहिये।

 

 
मूर्ति कब प्रतिष्ठित करें?
 
अक्सर लोग बिना सोचे-समझे जब मन करता है तब अपनी इच्छानुसार अपने इष्ट की मूर्ति घर ले आते हैं और मंदिर में स्थापित कर देते हैं। यदि आप अपने घर मंदिर में गणेश जी की मूर्ति को स्थापित या प्रतिष्ठित करना चाहते हैं तो इन महीनों में जिस दिन मूर्ति को प्रतिष्ठित करें उस दिन मंगलवार न हो तथा तिथियों में चतुर्थी, नवमी और चतुर्दशी न हो तो उसके लिए चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, माघ अथवा फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष को ही चुनें।
 
कहां और कैसी मूर्ति रखें?
 
  • गणेश जी की सूंड को लेकर भी कई लोगों में भ्रम है कि उनकी सूंड किस दिशा में होनी चाहिए। अमूमन हमारा बायां हाथ ही ऊर्जा को ग्रहण करके उसे हमारे शरीर में वितरित करता है। इसी कारण मुख्य द्वार पर ऐसी गणेश आकृति लगाई जाती है जिसकी सूंड उनकी बार्इं तरफ हो। जल का स्रोत भी भवन में बाएं से दाएं इसी कारण ही स्थापित किया जाता है। घर के मध्य भाग में ऐसी गणेश आकृति की स्थापना करें जिसकी सूंड उनके मध्य में हो। यही स्थिति वातावरण में ऊर्जा के प्रवेश के उपरांत उसकी स्थापना संतुलन को इंगित करती है।
  • गणेश जी को पीले फूल भी चढ़ाने का रिवाज है, जिसका एकमात्र कारण घर के मध्य भाग (ब्रह्म स्थान) का पृथ्वी तत्त्व होना है।
  • पूजा स्थान में ऐसी गणेश आकृति उचित होती है जिसकी सूंड उनके बाएं तरफ हो। यह आकृति ऊर्जा को ग्रहण करके संतुलन करने के उपरांत उसके वातावरण में बस जाने की प्रतीक है।
  • अधिकतर लोग अपने मुख्य द्वार पर गणेश जी का चित्र टांगते हैं। गणेश जी की एक मूर्ति या फोटो जीवन में मान-सम्मान नहीं अपमान व कष्ट लाती है इसलिए उसी के जैसी एक और फोटो ठीक दरवाजे के पीछे भी टांगे, क्योंकि जहां गणेश जी की पीठ होती है वहां दरिद्रता और कष्ट का वास होता है। इसलिए यदि मुख्य दरवाजे पर गणेश का चित्र लगाएं तो दो चित्र लगाएं। जो एक ठीक उसके पीछे हो।
  • घर के बाहर जब गणेश की मूर्ति लगाएं तो उनकी सूंड़ वामवर्त में होनी चाहिए, जबकि घर के अंदर दक्षिणावर्त। गणेश की वामावर्त सूंड वाली मुद्रा घर के अंदर नकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश नहीं होने देती, जबकि दक्षिणावर्त सूंड वाली मुद्रा घर के अंदर सकारात्मक ऊर्जा को कई गुना बढ़ा देती है।
 
 
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