Vikram or Betaal Story in Hindi : बेताल फिर से एक नई कहानी सुनाने लगता है : बहुत समय पहले की बात है, उज्जयिनी नामक सुंदर नगरी में चंद्रस्वामी नाम का ब्राह्मण रहता था। उसने बहुत-सी विद्याएं सीखी थीं, किंतु वह जुए का व्यसनी था। एक दिन चंद्रस्वामी एक बड़े जुआघर में जा पहुंचा।
वहां चारों तरफ शोरगुल मचा था। जुआरियों के साथ पासे के खेल में, उसने अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया और हार गया। फिर उसने कुछ धन उधार लिया, किंतु उसे भी हार गया। जब उससे हारा हुआ पैसा मांगा गया तो वह उसे वापिस नहीं कर सका। तब जुआघर के दरबानों ने उसकी जमकर पिटाई की। चंद्रस्वामी इस सदमे से पत्थर की तरह जड़ हो गया व दो-तीन दिन तक इसी हालत में पड़ा रहा।
जुआघर के मालिक ने जुआरियों से कहा कि वे उसे किसी अंधे कुएं में पटक आएं। जुआरी उसे घने जंगल में छोड़ गए, क्योंकि उन्हें कोई कुआं ही नहीं मिला।

चंद्रस्वामी उठा व एक खाली मंदिर में चला गया। वहां एक पशुपत मत को मानने वाला साधू था। उसके शरीर पर चिता की भस्म थी, बालों की जटाएं थीं व माथे पर त्रिपुंड था। चंद्रस्वामी ने उस साधू को अपनी सारी कहानी सुनाई। शिव के भक्त साधु ने उसे भोजन दिया क्योंकि वह अतिथि था। चंद्रस्वामी ने कहा :- “मैं ब्राह्मण हूं, आपकी भिक्षा का हिस्सा कैसे खा सकता हूं?”
साधु के पास जादुई शक्तियां थीं। उसने अतिथि के मनोरंजन के लिए अपनी शक्तियों का प्रयोग किया। अचानक चंद्रस्वामी ने स्वयं को एक सुनहरी नगरी में पाया। जहां दिव्य सुंदरियां उसे स्नान कराती तथा वह राजसी वस्त्रों में सज-संवरकर, स्वादिष्ट भोजन करता व मनचाहे फल खाता। साधु की कृपा से उसे कई दिन तक यह स्वर्गीय सुख मिलता रहा।

एक दिन उसने तय किया कि वह भी साधु से यह विद्या सीखेगा। काफी आग्रह के बाद साधु मान गया। फिर उसने नदी के किनारे जाकर कहा :- “इस मंत्र का जाप करते समय, तुम्हें उस आग से गुजरना होगा, जो तुम अपने भ्रम में देखोगे।”
साधु ने उसका शुद्धिकरण करने के बाद चंद्रस्वामी को मंत्र सौंप दिया। मंत्र लेने के बाद उसने साधु को प्रणाम किया व पानी में छलांग लगा दी। जब वह पानी में मंत्रजाप कर रहा था, तो वह अपनी वास्तविकता और उस जन्म की सच्चाई भूल गया। वह किसी दूसरे ही नगर में, वैवाहिक जीवन के सुख-दुःख के मेले में उलझ गया। वह उस नगर में कई प्रकार की गतिविधियों में लीन रहा। उसे अपने माता-पिता व परिवार के प्रति कर्तव्यों का भी मान रहता था।

जब वह इस भ्रमजाल से गुजर रहा था, तो अचानक उसे, याद आया कि उसे तो आग से गुजरना था, उसके प्रियजनों ने उसे रोकना चाहा। आखिर में चंद्रस्वामी आग में प्रवेश कर ही गया, पर वह आग तो उसे बर्फ के समान ठंडी लगी। उस आग से निकलकर फिर वह नदी किनारे पहुंच गया और साधु को अपने अनुभव सुनाए। गुरु ने कहा कि उसने मंत्रजाप के समय कोई भूल की होगी।
साधु ने गलती खोजने का प्रयास किया, तो उसे भी कुछ पता नहीं चला, किंतु वे दोनों ही उस विद्या से वंचित हो गए।

यह कहानी सुनाने के बाद बेताल ने कहा :- “विक्रम! बता उन दोनों की विद्या कहां चली गई, जबकि मंत्रजाप तो सही तरीके से ही हुआ था?”
राजा ने उत्तर दिया :- “चूंकि, युवा ब्राह्मण का मन यहां-वहां भटकता रहता था। वह पूरी तरह से शुद्ध व केंद्रित नहीं था इसलिए मंत्र सफल नहीं हो पाया। उसके गुरु ने भी उस मंत्रशक्ति को खो दिया क्योंकि उसने मंत्रशक्ति पाने के अयोग्य पात्र को सिद्धि देनी चाही।”
राजा के यह कहते ही बेताल अपने स्थान की ओर उड़ चला।

