Vikram or Betaal Story in Hindi : राजा विक्रम ने हमेशा की तरह शव को पीपल के वृक्ष से उतारा। जब विक्रम चुपचाप चलता जा रहा था, तो बेताल एक और कहानी सुनाने लगा।
बहुत समय पहले की बात है। मगध राज्य पर राजा चतुरसेन का राज था। वह एक दयालु राजा था व अपनी प्रजा का बहुत ध्यान रखता था, पर उसे पासे खेलने की लत थी। एक दिन वह खेल में अपना राज-पाट सब हार गया। उसे मजबूरन अपना राज्य छोड़ना पड़ा।
वह महल छोड़ कर, किसी ठिकाने की तलाश में निकल पड़ा। अपनी यात्रा के दौरान, वह एक आश्रम के सामने से निकला। वहां उसने एक साधु को गहरे ध्यान में देखा। राजा सादर शीश नवा कर, उसके चरणों में बैठ गया। कुछ देर बाद, साधु ने आँखें खोलीं व राजा को देख कर पूछा, “पुत्र! तुम कौन हो? काफी थके और भूखे दिखते हो। पहले कुछ खा लो।” फिर साधु ने राजा को कंदमूल तथा फल खाने के लिए दिए।
राजा ने अपना परिचय देते हुए कहा-
“महाराज! मैं राजा चतुरसेन हूं, किंतु कृपया मुझे क्षमा करें। इस तरह भोजन करना मेरे राजसी स्तर के अनुकूल नहीं है।”
साधु मुस्कराए व अपने तपोबल से एक सुंदर स्त्री पैदा कर दी। फिर उन्होंने उस स्त्री से कहा कि वह राजा को सुनहरे पात्रों में स्वादिष्ट भोजन परोसे।

वह सुंदरी राजा को पास वाली कुटिया में लें गई। राजा ने ज्यों ही भीतर कदम रखा तो, वहाँ आलीशान महल देखकर दंग रह गया। वह बहुत प्रसन्न हुआ। उस सुंदरी ने सोने के पात्रों में भोजन परोसा। राजा ने जी-भर कर स्वादिष्ट व्यंजन खाए और वहीं गुदगुदे बिस्तर वाले पलंग पर लेट कर सुस्ताने लगा। जल्दी ही उसे गहरी नींद आ गई।

कुछ घंटों बाद आँख खुली, तो वह स्वयं को जमीन पर पड़ा देख चौंक गया। वहाँ न तो कोई आलीशान महल था और न ही सुंदरी। उसने साधु से पूछा, “महाराज! वह सब कहाँ गया?”
साधु ने उत्तर दिया, “मैंने मंत्र शक्ति से वह महल तथा सुंदरी पैदा किए थे। तुम भी इस मंत्र को सिद्ध कर लो, तो वह सब पा सकते हो।”
चतुरसेन ने साधु से विनती की कि वे उसे मंत्र बता दें। साधु ने राजा के कान में मंत्र सुना कर कहा, “तुम्हें इस मंत्र को याद करने के बाद, चालीस दिन तक ठंडे पानी में रह कर, इसका जाप करना होगा।”

राजा ने साधु की आज्ञा का पालन किया। चालीस दिन बाद, उसने एक सुंदरी को बुला कर, मंत्र की शक्ति परखने का फैसला किया, किंतु वह निराश हो गया क्योंकि वह साधु की तरह किसी खूबसूरत युवती व महल पैदा नहीं कर सका।
वह उदास तथा मायूस हो कर साधु के पास गया व बोला, “महाराज! मैंने आपके कहे अनुसार मंत्र जाप किया था, किंतु मैं जादू नहीं कर पाया। मुझे मंत्र को सिद्ध करने के लिए क्या करना चाहिए?”
साधु मुस्करा कर बोले, “जाओ, अब अग्नि के सामने बैठ कर, चालीस दिन तक मंत्र जाप करो।” चतुरसेन ने साधु की आज्ञा का पालन किया, किंतु फिर भी मंत्र सिद्ध नहीं हो सका।

यहाँ बेताल ने कहानी समाप्त कर, विक्रम से पूछा, “बता, चतुरसेन मंत्र सिद्ध क्यों नहीं कर पाया?”
राजा विक्रमादित्य ने पल-भर सोच कर उत्तर दिया, “बेताल! एकाग्रता के बिना ज्ञान नहीं पाया जा सकता। यद्यपि, चतुरसेन ने मंत्र जाप तो किया, किंतु वह एकाग्रता के अभाव में इसे सिद्ध नहीं कर पाया। उसका ध्यान हमेशा सांसारिक सुखों की ओर लगा रहता।”
बेताल बोला, “विक्रम तूने ठीक कहा, पर तूने चुप्पी तोड़ी इसलिए मुझे वापिस जाना होगा।” यह कह कर बेताल फिर से वृक्ष की ओर उड़ गया और विक्रम तलवार लिए उसके पीछे भागने लगा।

