vikram aur betaal ki hindi story
vikram aur betaal

Vikram or Betaal Story in Hindi : एक बार फिर से वीर राजा विक्रम हाथ में तलवार लिए पीपल के वृक्ष के नीचे जा पहुंचा। उसने शव को कंधे पर लादा और चुपचाप चल दिया। उस चुप्पी को तोड़ने के लिए बेताल बोला :- “विक्रम! मैं तुम्हें एक कहानी सुनाता हूं और कहानी के अंत में मैं तुमसे एक सवाल पूछूंगा। अगर तुम मेरे प्रश्न का उत्तर देने में असफल रहे, तो मैं तुम्हारे सिर के हजारों टुकड़े कर दूंगा।”

यह कह कर, बेताल ने कहानी सुनाना आरंभ किया। बहुत समय पहले की बात है, जीमूलवाहन नामक राजा का शासन था। वह एक भला व धार्मिक प्रवृत्ति का राजा था। वह अपनी प्रजा का पूरा ध्यान रखता व प्रजा भी अपने राजा को जी-जान से चाहती थी। न केवल उसके राज्य के लोग, बल्कि पड़ोसी राज्यों की प्रजा भी उसके धार्मिक व उदार स्वभाव को जानती थी।

राजा का एक पुत्र था, अग्निवाहन। राज्य में सभी उससे घृणा करते थे, क्योंकि वह स्वार्थी तथा घमंडी था और कई दुर्गुणों में लिप्त रहता।

एक दिन, अग्निवाहन ने पिता के सामने राजा बनने की इच्छा प्रकट की। उसने पिता से कहा कि वे उसके लिए गद्दी छोड़ दें। राजा अप्रसन्न हुए व चिंतित हो उठे, किंतु उनके पास, पुत्र की बात मानने के सिवा कोई चारा भी नहीं था। अग्निवाहन ने उन्हें धमकी दी थी कि वह अपनी इच्छा पूरी न होने पर, राज्य में खून की नदियां बहा देगा।

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जीमूलवाहन शांतिप्रिय थे, किसी भी अप्रिय स्थिति से बचने के लिए उन्होंने पुत्र की नाजायज मांग पूरी कर दी। उन्होंने राजसिंहासन छोड़ दिया, इस संसार की सुख-सुविधाएं त्यागकर, वन में तपस्या करने चले गए।

अग्निवाहन ने राजा बनते ही प्रजा पर अत्याचार करने आरंभ कर दिए। प्रजा उसके अत्याचारों व अन्यायी शासन से त्राहि-त्राहि करने लगी।

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एक दिन, जब जीमूलवाहन जंगल में तप कर रहे थे, तो उन्हें एक स्त्री के रोने का स्वर सुनाई दिया। उन्होंने आंखें खोलीं, तो एक स्त्री को वृक्ष तले बैठ कर रोते देखा। राजा ने उससे जाकर पूछा :- “मां! क्या मैं जान सकता हूं कि आप इस तरह क्यों रो रही हैं?” बूढ़ी महिला ने कहा :- “हे साधु! मेरा एक ही पुत्र है। वन में रहने वाले दुष्ट राक्षस ने धमकी दी है कि वह उसे मार कर खा जाएगा।”

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बूढ़ी स्त्री की बातें सुन कर राजा उदास हो गए। वे उसे तसल्ली देते हुए बोले :- “माता! निराश न हो। मुझे आपके पुत्र के प्राणों की रक्षा के लिए अपना बलिदान करने से संकोच नहीं होगा। मैं ही आपके पुत्र के रूप में, राक्षस की भूख शांत करने के लिए उसके सामने जाऊंगा।”

बूढ़ी स्त्री यह मानने को तैयार नहीं थी कि राजा अपने प्राण खतरे में डाले, किंतु राजा अपनी बात पर डटे रहे। आखिर उसे भी मानना पड़ा।

राजा ने वचन के अनुसार , स्वयं को राक्षस के आगे पेश कर दिया। उसी रात वे राक्षस के हाथों मारे गए और इस प्रकार बुढ़िया के पुत्र के प्राण भी बच गए।

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बेताल ने यह कहानी समाप्त कर विक्रम से पूछा :- “बता, इस कहानी में राजा के बलिदान का क्या महत्त्व है? राजा विक्रमादित्य कुछ क्षण तक चुप रहे और फिर बोले :- “बेताल! यहां राजा का बलिदान कोई मोल नहीं रखता।” बेताल ने पूछा :- “कैसे?” राजा ने उत्तर दिया “एक सच्चा बलिदान निःस्वार्थ होता है, किंतु राजा ने मुक्ति व यश पाने की चाह में यह बलिदान दिया। इसके अतिरिक्त उसने अपने दुष्ट पुत्र के हाथों में राज्य सौंपकर, सारी प्रजा को भी पीड़ित किया था। क्या राजा को इस विचारहीन कार्य के लिए क्षमा किया जा सकता है?”

बेताल विक्रम के इस उचित न्याय से बेहद प्रसन्न हुआ, किंतु जब उसे विक्रम के चुप्पी तोड़ने का अहसास हुआ तो वह फिर से पीपल के वृक्ष की ओर उड़ चला।

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