Short Story in Hindi-
कुल तीन जने हैं बस…
कितना अच्छा है न..
अम्मा, पापा और बेटा
तुम फटाक से खाली हो जाती होगी।
हूँ…… थोड़ी देर की निशब्द चुप्पी और फिर, एक लंबी खिलखिलाहट जो अपने खालीपन को लेकर है या गिनती में खुद के अदृश्य होने से।
मुँह अँधेरे दिन की शुरुआत हो जाती है जब बूढ़े ससुर खाँसते, खँखारते लंबी उँसास भरते हैं और बीच- बीच में सास के कराहने की आवाज.. तो, उठकर झाँक आती है कि सब ठीक है ना, रात का समय बहुत कठिन लगता है, मन हीं मन कुछ बुदबुदाती है , हिलते होंठो से कुछ अस्फुट शब्द निकलते हैं संभवतः प्रार्थना के, बिना लाग लपेट के सारे सुख दुःख, चिन्ताएँ गन्नू बाबा को सौंप पानी गटकती है , तरोताज़ा हो भोर के साथ मिलकर चिड़ियों की चहचहाहट सुनती है और तभी दोनों बाँहें फैलाकर बेटा बुलाता है माँ… आ जाओ.. आहा आकंठ रस में भींग जाती है, झट बाँहें पसारकर चूम लेती है। देखो चिड़िया आई है दाना पानी देना है ना, सूरज चाचू आने वाले हैं, उनको भी जय करना है, इसी बीच पकती है तीन काली चाय , एक उसकी जो निर्विकार भाव से बर्तन माँजकर चली जाती है, मिले तो ठीक ना मिले तो भी।
दूसरी में मिठास अधिक होनी चाहिए उम्र हीँ ऐसी है, “दिल तो बच्चा है जी “।
अम्मा काली चाय नही पीती या कहूं कि उन्हें काले रंग से परहेज़ है। इसी बीच गहरी शांति का भाव मन में उपजता है काली चाय के बडे़ कप को देखकर।
इत्मीनान से पीती है, दिनभर प्रफुल्लित रहने के लिए, जरूरी है कड़वी चाय के चंद घूँट । बड़ी ललक है मन में, शिव के कालकूट और अर्धनारीश्वर रूप में समाहित होने की, समरूपता लगती है उसे शिव के आशुतोष रूप से।
दुनिया जहान की कबाहट तब पर भी मस्त मलंग। अपने ठीहे पर धूनी रमाये जो करना है करो, सुलगना है गीली आँखों की तरह तो सुलगो, जलना है फूस की तरह तो जलो, बरसना है प्रेम की तरह तो बरसो, किसने मना किया है। वो औघड़दानी है, सम्पूर्ण सृष्टि उसकी धुरी है। वह आनंदित होता है, तब भी नाचता है, व्यथा का चरमोत्कर्ष हो तो भी। फकीरी में भी सुख है, प्रेम है अद्भुत आनंद है,अपना दर्शन है। विभोर हो उल्लास में, जीवन के अपूर्व उत्सव में स्वयं को मान बैठती है की वो शिव की शिवा है, शक्ति है, धरा है। तीन जनों के बीच चकराती फिरती है, त्रिलोक एवं त्रिनेत्र के मध्य व्याप्त त्रिशक्ति है।
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