Hindi Social Story
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Hindi Social Story: आज कमला बहुत गुस्से में अपने पति सूरज से लड़ने के मन से कमरे में जैसे घुसी चिल्लाते हुए मैंने बहुत साल गुजार दिए अब मुझे नहीं रहना  आपके मां बाबू जी के साथ आखिर मेरी भी तो  जिंदगी है कब तक आपके मां बाप की सेवा करती रहूंगी ?,, सूरज ने
कमला का यहरूप कभीनहीं देखा था” क्या  फालतू बोल रही हो कमला? ये तुमने सोच भी कैसे लिया। ये भूल है तुम्हारी की मैं अपने परिवार को छोड़ दूंगा।,, सूरज कमला के इस व्यवहार से बहुत चकित था क्योंकि पहले कभी भी कमला ने ऐसी बातें नहीं की थी। बल्कि वो तो खुद मां बाबू जी की बहुत सेवा करती थी मेरे न रहने पर भी मैं कभी रहूं या न रहूं तो भी कमला पूरी देखभाल करती थी।
कमला ने तेज आवाज में बोला,, अपनी मां से बात करिए न उनको बहुत खुशी होगी!
सूरज की मां अपने
बहू- बेटे की तेज आवाज सुनकर कमला जी भी उनके कमरे तक आ गईं , ” क्यों चिल्ला रहे हो दोनो? आखिर बात क्या है जो तुम दोनों इस तरह लड़ रहे हो?,,
  मां जी, अच्छा हुआ आप आ गईं कमला अपनी सास की ओर देखते हुए बोली…. आप ही समझाओ अपने बेटे को, मेरी बात मानते नहीं…. मैं इनकी पत्नी हूँ मुझको खुश रखना इनका फर्ज है?? अलग घर ले लें मैं आपके साथ नहीं रहूंगी। ,,कमला की बात सुनते ही पूरा परिवार चकित रह गया,”?? क्यों मेरे बेटे को उल्टी पट्टी पढ़ा रही हो बहू….. इस दिन के लिए ही मां बाप बच्चों को पाल पोस कर बड़ा करतें हैं कि बुढ़ापे में ये हमें छोड़कर अलग रहें!!
” मां जी, मुझको तीन साल हो गए सबके साथ रहते बिना आपकी मर्जी के मैने कपड़े तक नहीं पहने। हर बार अच्छे से अच्छा करने का प्रयास किया लेकिन कभी आपके मुंह से तारीफ़ नहीं सुनी , क्या मैं बस आप सबका काम करने के लिए और सेवा करने के लिए ही हूं क्या?? और मां ही आज आपका नजरिया क्यों बदल गया !! कल तो आप ही तो ननदोई जी को ये सब समझा रही थीं कि मेरी बेटी को घरवालों से अलग लेकर रहो नहीं झूठे केस में फंसा दूंगी। फिर आज वही बात अपने बेटे को क्यों नहीं समझा रहीं हैं या अपनी मम्मी से बोलूं सूरज को धमकी देने के लिए,,
अपनी बहू की बात सुनकर सूरज की मां की आंखों में कल की बात घूमने लगी। सूरज की बहन रमा की शादी को साल भर ही हुआ है और आए दिन ससुराल से झगड़ा करके मायके आ जाती थी। सूरज की मां बिना किसी को बताए दामाद जी को बुला कर हड़कायी,
” देखिए दामाद बाबू…. मेरी बेटी को मैंने बहुत लाड से पाला है। इसके बोलने के पहले सारी फरमाइश पूरी की है । इसे हमने ऊंची शिक्षा इसलिए नहीं दिलाई की ससुराल में जाकर ये झाड़ू बर्तन करे या आपके मां- बाप के नखरे उठाए ….. मेरी बेटी अब तभी आपके साथ जाएगी जब आप अलग से घर लेकर रहेंगे। याद रखिए सारे रिश्ते पीछे छूट जाते हैं लेकिन पति पत्नी का रिश्ता ही उम्र भर साथ रहता है , आपको अपने बीवी बच्चों और भविष्य के बारे में सोचना चाहिए ना कि मां बाप के बारे में , हमने तो आपकी अच्छी नौकरी , अच्छी तनख्वाह देखकर रमा का हाथ सौंपा था ना कि आपका परिवार देखकर। ,,
सूरज की मां कल की बातें याद ही कर रही थीं कि कमला फिर जोर से बोली, ” मां जी क्या हुआ आप कुछ बोलती क्यों नहीं, जो बात ननदोई जी को समझा रही थीं अपने बेटे को क्यों नहीं समझातीं हैं?? ,,
अब सूरज को कमला के बदले हुए व्यवहार का अंदाजा हो रहा था।  और अपनी पत्नी के सारे नाटक को भी समझ रहा आज ऐसा अलग व्यवहार क्यों कर रही है लेकिन वो अनजान बनते हुए बोला,
” तब तो कमला सही कह रही हो अब मैं भी थक गया हूं सारे परिवार का बोझ उठाते उठाते ,तनख्वाह कब आती है और कब खर्च हो जाती है पता ही नहीं चलता… अलग से रहूंगा तो कुछ बचत भी होगी मुझे भी अपने भविष्य के बारे में सोचना चाहिए। ,,

” बस कर बेटा, तूं तो मेरा श्रवण कुमार है …. आज से पहले कभी तूने हमसे ऊंची आवाज में बात भी नहीं की और आज ये सब बोल रहा है मेरा तो कलेजा ही बाहर निकल जाएगा तेरे जाने के नाम से वो तो मैं तेरी बहन की खुशी के लिए दामाद बाबू को समझा रही थी ….. ,, रोते हुए बोली।
” मां , अब तो आप बेटा और बेटी में भेदभाव कर रही हैं सब बच्चे बराबर होने चाहिए ना…. आपको बेटी का सुख दिखता है तो मेरा सुख क्यों नहीं दिखाई देता !! जब जीजा जी के मां बाप अकेले रह सकते हैं तो आप क्यों नहीं  मुझे भी तो अपने बारे में सोचना चाहिए।, सूरज कड़े बोल में बोला।
” नहीं नहीं बेटा, ऐसा मत बोल, इस उम्र में अपनी मां को छोड़कर कैसे जा सकता है तुम्हारे बिना मैं किसके सहारे जीऊंगी मेरी ही मति मारी गई थी बेटी को समझाने की बजाय दामाद को पट्टी पढ़ा रही थी। मैं समझाऊंगी रमा को और दामाद बाबू से माफी भी मांग लूंगी लेकिन तूं कहीं जाने की बात मत करना सूरज की मां बस रोए ही जा रही थी कमला अपनी सास का हाथ पकड़ कर बोली, ” मां जी हम कहीं नहीं जाएंगे… मां बाप के बिना भी कोई घर घर होता है क्या? मैं तो बस आपको समझाना चाहती थी कि आप जो कर रही हैं वो ग़लत है! ननदोई जी सिर्फ दीदी के लिए अपने पूरे परिवार को कैसे छोड़ दें जबकी उनकी कोई गलती भी नहीं है। ऐसा तो नहीं है कि दीदी के ससुराल वाले उनपर कोई अत्याचार करते हैं अपनी आजादी के लिए परिवार की जिम्मेदारियों से आजाद होना तो कोई हल नहीं है ना , जिस तरह आपको अपना बेटा प्यारा है ननदोई जी भी तो किसी के बेटे हैं , आखिर उनके माता-पिता किसके सहारे अपनी जिंदगी काटेंगे?? परिवार से ही तो घर बनता है ना मां.
” तूं ठीक बोल रही है बहू , एक मां होकर भी दूसरी मां का दुख नहीं समझ पा रही थी अलग घर परिवार में थोड़ा सामंजस्य तो सब लड़कियों को बैठाना पड़ता है। मैं रमा को समझाऊंगी… बस तुमलोग आज के बाद कहीं जाने की बात मत करना ।
दरवाजे पर खड़ी रमा भी उनकी बातें सुनकर मन ही मन सोच रही थी कि गलती उसकी ही है यदि आज उसकी भाभी भी उसकी तरह सिर्फ अपना स्वार्थ और सुख देखती तो उसके मायके की क्या हालत होती , मन ही मन वो निर्णय कर रही थी कि वो भी एक अच्छी बहू और अच्छी पत्नी बनेगी और आज ही शाम को ससुराल चली जाएगी।