भारत कथा माला
उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़ साधुओं और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं
कमला देवी ने खिड़की का पर्दा थोड़ा-सा हटाया और बाहर पार्क में खेलते बच्चों को देख मुस्कराने लगी, उधर झाड़ू लगाती चंपाबाई की गति और भी तेज हो गई उसके चेहरे पर भी एक मुस्कराहट फैल गयी। पूरे दिन में यही तो शाम के कुछ पल थे जब कमला देवी के उदास, मुरझाये चेहरे पर कुछ देर के लिए मुस्कराहट आती। चंपा प्रतिदिन यह सब तमाशा देखती। “अम्मा जी, हम सब जानत रही, आप छुप, छुपकर का देखत हो।” कह वह साड़ी के पल्लू में मुँह छिपाकर हँसने लगी। “चुपकर, ज्यादा खीं, खीं मत किया कर। चल जल्दी से अपना काम निपटा…” कहकर उन्होंने अपनी झेंप मिटाई।
चंपा पिछले दस वर्षों से वहाँ काम कर रही है। वह इस घर के अनेकों सुख, दुःख भरे पलों की साक्षी रही है। उसे आज भी याद है कितने धूमधाम से सुमित भैया की शादी हुई थी। पूरा सप्ताह रस्मों, रिवाजों के साथ जश्न मनाये गये थे। केन्द्रीय विद्यालय के अध्यापिका पद से ससम्मान सेवानिवृत्त होने के बाद बहुत सलीके से कमला देवी ने स्वयं अपनी देखरेख में शादी के सभी प्रबंध करवाये थे। इकलौती बहू को अपने साथ ले जा उसकी पसंद के गहने, कपड़े दिलवाये थे। सभी मेहमानों एवं घर की बहूबेटियों को अच्छे से विदा कर उसे भी सोने की बालियां, दो नयी साड़ियां, मिठाई, नगदी दे खुश कर दिया था।
उधर, एक सप्ताह भर हनीमून मनाकर आने के बाद मधु ग्यारहा बजे सोकर उठती, तब तक सुमित तैयार हो नाश्ता कर, माँ से लंच पैक करवा ऑफिस जा चुका होता था। विमला देवी सारा दिन घर के काम निपटाती और मधु मोबाइल पर मायके वालों एवं सहेलियों से बतियाती। एक दो बार सुमित ने कहा भी, “माँ, मधु को कहो, मेरा नाश्ता बनाये और थोड़ा जल्दी उठ मेरा लंच पैक किया करे। अब बहू आ गयी है, आप आराम करो। इतने साल नौकरी भी की, घर और हमें भी संभाला…” लेकिन शाँत स्वभाव कमला जी उसे यह कहकर चुप करवा देती कि “बेटा नयी-नयी शादी हुई है उसे कुछ दिन आराम करने दे। बाद में तो उसे ही यह घर संभालना है।”
मधु यह सब सुन खुश हो जाती। अब वह तैयार हो, नाश्ता कर, गाड़ी उठा सखी, सहेलियों के साथ कभी मॉल तो कभी किट्टी पार्टी में मजे करती और सुमित के लौटने से कुछ देर पहले वापिस आ जाती। कमला देवी अपने स्वभाव अनुसार चुप रहती। उधर मधु के सैर स्पाटे और साज श्रृंगार के बढ़ते खर्च से सुमित तनावग्रस्त रहने लगा। लेकिन वह मधु से कुछ नहीं कहता। मितभाषी होने का संस्कार उसे माँ से ही मिला था।
अब घर में एक और परेशानी खड़ी हो गई और मधु किसी गुरु मां के चक्कर में पड़ गई हजारों रुपए खर्च कर हर महीने उनके सत्संग करवाए जाने लगे। और तो और उन सत्संगों के आयोजन में पूजा के सामान और घर की सजावट के अतिरिक्त हजारों रुपए खर्च होने लगे, गुरु मां को सोने-चांदी के गहने और महंगी-महंगी साड़ियां भेंट की जाने लगीं। उनके भक्तों की भी खूब खातिरदारी की जाने लगीं कमला देवी और उनके पति कृष्ण एक मूक दृष्टा बने यह तमाशा देखते रहते। सुमित की परेशानियां तो और भी बढ़ गईं, अब उसे ऑफिस से कभी हाफ डे तो कभी फुल डे छुट्टी ले मधु के साथ गुरु मां के सत्संग में हाजिरी लगानी पड़ती और वहां चढ़ावा चढ़ाने की होड़ में लगे भक्तों के बीच एक मोटी रकम भी दान देनी पड़ती। इसी बीच छोटा सुमित भी आ गया, प्यारे पोते को पा कमला देवी और उसके प्रति कृष्ण देव बहू की दी गई सारी परेशानियों को भूल उस नन्हे फरिश्ते के साथ मस्त हो गए। बहुत प्यार से उन्होंने उसका नाम ‘प्रिंस’ रखा उन्हें लग रहा था कि मधु अब छोटे बच्चे के कारण अपना अधिकतर समय घर पर ही बिताएगी परंतु उनकी आशा को निराशा में बदलते हुए मधु छोटे रोते बिलखते बच्चे को छोड़ गुरु मां के सत्संग में चली जाती। बेचारी कमला देवी उस नन्हे से बच्चे को कंधे से लगा दिन भर घूमती रहती और उनके कंधों और घुटनों में लगातार दर्द रहने लगा।
घर में गुरु मां को लेकर अक्सर सुमित और मधु के बीच कहासुनी हो जाती। उधर छोटे से पोते के लालन-पालन में होती लापरवाही देख कमला देवी और उनके पति कृष्ण कपूर भी चिंतित रहने लगे। एक बार उन्होंने बहू को समझाना चाहा, लेकिन समझना तो दूर, वह तो उनसे ही लड़ने-झगड़ने लगी। घर में शाँति बनाये रखने के लिये उन्होंने भी चुप्पी साध ली। अब वह सुबह अपनी फैक्ट्री के लिए निकल जाते और देर रात को लौटते। उधर मधु ने प्रिंस के लिए एक काम वाली बाई रख ली और अब प्रिंस दादा-दादी के साथ कम और आया के पास अधिक रहता।
एक दिन सत्संग में मधु के साथ एक दुर्घटना घटी, उसका नोटों से भरा पर्स, डेबिट, क्रेड़िट कार्ड एवं स्मार्ट फोन सहित सत्संग भवन में से चोरी हो गया। गुरुमाँ के भगतों ने बहुत खोजबीन की लेकिन नहीं मिला। गुरुमाँ ने सहानुभूति दिखाते हुए कुछ वैराग्य के उपदेश भी दिये लेकिन इस बार मधु पर उन उपदेशों का कोई असर नहीं हुआ। तुम्हारी गुरुमाँ तो अन्तर्यामी है वह तो अपने ज्ञानचक्षुओं से देख बता सकती है, पर्स कौन ले गया”, सुमित ने भी कटाक्ष के इस अवसर का पूरा लाभ उठाया। परिणामस्वरूप गुरुमाँ मधु के जीवन से पर्स के साथ विदा हो गयी। सुमित एवं अन्य परिवार वालों ने चैन की सांस ली परन्तु मधु की किट्टी पार्टियां नहीं छूटी या यूँ कहिये उसकी सहेलियों ने छोड़ने नहीं दी। प्रिंस को वह अभी भी दादा-दादी से दूर ही रखती।
कमला जी का ध्यान तो कुछ घर के कामों तथा कुछ पास पड़ोस की सहेलियों के बीच बँट जाता परंतु उनके पति कृष्ण को यह बात मन ही मन कचोटती रहती। वह पोते का साथ पाने और उसके साथ खेलने के लिए तरस जाते। अब मधु छुट्टी वाले दिन भी कोई न कोई प्रोग्राम बनाकर सुमित और बच्चे को लेकर सुबह घूमने निकल जाती और देर रात लौटती। कमला जी सब देखते हुए भी मौन साधे रहती।
एक दिन परिवार पर एक और कहर टूटा, कृष्ण कपूर जी रात को सोए और सदा के लिए सो गए उन्हें साइलेंट हार्ट अटैक आया। कमला देवी जी को अपनी आँखों पर कुछ देर के लिए विश्वास ही नहीं हुआ कि क्या वास्तव में उनके पति उन्हें सदा के लिए छोड़ कर चले गए हैं। वह पथराई आंखों से उन्हें देखती रही और फिर सुमित से लिपट कर बहुत रोई। उन्हें लग रहा था जैसे उनके पांव में के नीचे से अचानक किसी ने जमीन खींच ली हो। सुमित के रुके आँसुओं को बहने का एक जरिया मिल गया, वह आंसू जो वह अपने माता-पिता से अक्सर छुपाया करता था। बहुत से सगे संबंधी आए और घर में खूब खुसर-पुसर भी हुई कि बहू के क्लेश ने ससुर की जान ले ली। कमला जी से सहानुभुति दिखा धीरे-धीरे सभी सगे सम्बंधी चले गये। यहाँ तक कि सुमित के मेरठ वाले मामा-मामी भी। केवल सुमित की लंदन वाली मौसी एक सप्ताह के लिए कमला जी के आग्रह पर रुक गयी।
मधु की मनमानी देख उन्होंने अपनी बहन को समझाना चाहा “दीदी! इतना सीधापन भी ठीक नहीं है। आपके कुछ न कहने के कारण मधु सिर पर चढ़ी जा रही है। इसके क्लेशों ने हमारे जीजा जी की जान ले ली। ये कौन होती है प्रिंस को आप से दूर रखने वाली? आपके बेटे का खून है। क्या प्रिंस आपका कुछ नहीं लगता? सट्रांग बनो दी, सट्रांग! नहीं तो आपको…”, “कीकी! तू अपना सामान संभाल, कुछ यहाँ छोड़ न जाना।” कह कमला जी ने उसका ध्यान बँटाना चाहा। पैकिंग के बाद रात को सोने से पहले किकी और भावुक हो गयी। कमला देवी का हाथ अपने हाथों में ले फिर समझाने लगी, “दीदी, मुझे आपकी और भी अधिक चिंता है, अब तो जीजा जी भी नहीं रहे।” “लेकिन सुमित तो है न! वह सब ठीक कर देगा दीदी! आप भी चलो मेरे साथ लंदन थोड़ा आपका मन बहल जायेगा। मैं अपनी टिकट अगले हफ्ते की करवा लेती हूँ यदि आप चलने के लिये हाँ कहो तो…।” “नहीं, नहीं किकी, मैं अपने बच्चों को अकेला छोड़ कर कहीं नहीं जाऊंगी।” बच्चे किकी खिलखिला कर हंस पड़ी, मधु और सुमित बच्चे हैं क्या? उसके इस कटाक्ष की ओर ध्यान न देते हुए उन्होंने छोटी बहन से रोजाना फोन करने का वादा लेकर सोने चली गयी। कीकी भी सात समुंदर पार चली गयी।
उधर चंपा तीन-चार दिन बीमारी के कारण छुट्टी पर चली गयी, और पाँचवे दिन जब वह काम पर आई तो कमला देवी ने दरवाजा खोला। उनकी सूरत देखकर, वह बुरी तरह से चौंक गई, ऐसा लग रहा था जैसे वह कई महीनों से बीमार है। “मैमसाब आपकी तबीयत तो ठीक है?” “ठीक है” संक्षिप्त सा उत्तर दे वह अपने बैडरुम में चली गयी। उसे घर में अजीब सी चुप्पी का अहसास हुआ फिर भी वह चुपचाप रसोई की ओर बढ़ गयी। काम निपटा वह घर चली गयी।
चंपा आती साफ-सुथरे घर में दस, पन्द्रहा मिनट में झाड़ू पौचा और थोड़े से बर्तन निपटा अपने घर चली जाती। लेकिन घर में पसरा सन्नाटा उसके लिए रहस्य बनता जा रहा था। उधर कमला देवी की तबीयत अक्सर खराब हो जाती। वह फोन पर ही अपने डॉक्टर से दवाई पूछ, कैमिस्ट से मँगवा खा लेती। उनके घुटनों में दर्द रहता और उन्होंने बाहर आना-जाना बहुत कम कर दिया था। कमला जी की चुप्पी की चंपा को उसे आदत हो चुकी थी इसलिये उसने ध्यान नहीं दिया।
वैसे तो चंपा के पास भी किसी के साथ बात करने का समय ही नहीं होता था। बाहर चार घरों का काम और उसके घर पर निठ्ठला, शराबी उसका पति, तीन छोटे बच्चे और एक बीमार बूढ़ी सास, सबकी देखभाल और अपने घर के लिये पानी भर कर लाना, चूल्हा चौका… कब दिन, चढ़ता, कब रात होती उसे पता ही नहीं चलता। उसके पास तो अपने शरीर के अंग-अंग से उठने वाले दर्द की पुकार सुनने का भी समय नहीं था।
एक दिन अचानक उसकी चचेरी बहन किसनी ने आवाज लगायी, जो वहीं से गुजर रही थी, जो उसे ‘चंपा …रे चंपा… बाहरी हो गई का?’ चिल्ला चिल्ला कर पुकार रही थी। उसकी आवाज सुन चंपा रुक गई। “उसने पास आते ही पूछा तेरी ग्यारह नंबर वाली मेम साहब के क्या हाल हैं? उनके घर अभी भी काम करें है क्या?” “हाँ, काम तो करूं हूँ, के बात से?” चंपा ने उत्सुकता से पूछा। “बिचारी बुड्डी अकेली रह गई, कीड़े पड़े, ऐसे बहू बेटे को। लाज शर्म बेचकर खाई मरे नास्पीटों ने। “क्या…?” बात बीच में टोक., चंपा ने उसे बाँह पकड़, सड़क के किनारे ही बिठा लिया। “क्या बके है तू ग्यारह नंबर वाली के बारे में?” हक्की-बक्की चंपा ने फिर पूछा “लो कर लो बात तू वहां काम करें हैं तुझे नहीं मालूम?, उसकी वह पर कटी, छोटे-छोटे कपड़े पहन कर मटक-मटक कर चलने वाली बहू अपने मर्द के साथ घर के सामने, दूसरे फ्लैट में रहने चली गयी। दैया री दैया! हम तो ऐसा न कर सकत है…” किसनी ने दोनों कानों को हाथ लगाया। हैरान, परेशान चंपा बोली “हम तो समझ रहत छोटी मेम साहब और साब घूमने गए हैं कहीं दूर बिदेश मा, आठ दस दिन में लौट आयेंगे।” इसी बीच किसनी की मेमसाब ने उसे देख लिया और वह काम करने भाग गयी।
भारी मन से धीरे-धीरे चलते हुए उसने कमला जी के दरवाजे की घंटी बजाई। आज उसे कमला जी पर बहुत गुस्सा आ रहा था कि इतनी बड़ी बात उन्होंने उससे छुपाई। लेकिन जैसे ही उसने घंटी बजायी और कमला जी से सामना हुआ, उनका उदास, उतरा हुआ, चेहरा देख मन ही मन उनके प्रति सहानुभूति जाग उठी। जब वह रसोई तक पहुँची तब कमला जी किसी से फोन पर बात कर रही थी, शायद अपनी लन्दन वाली बहन से, उसे बता रही थी कि “सारा फर्नीचर नया खरीद कर इन्टीरियर डिजाइनर से घर डेकोरेट करवाया है यहां से कुछ नहीं लेकर गई।” लेकिन जैसे ही उन्हें अहसास हुआ कि चम्पा सब सुन रही है, “चल फिर बात करते हैं,” कह कर उन्होंने जल्दी से फोन रख दिया। चंपा समझ गई कि मेम साब उसके सामने बहू, बेटे की कोई बात नहीं करना चाहती, कहीं घर की बात बाहर न चली जाये शायद इसलिये। वह उनकी नादानी पर हँसी और मन ही मन सोच रही थी, ऐसी बातें छुपती कहाँ हैं, जो बात पूरे मोहल्ले में आग की तरह फैल गयी है। वह उसे कैसे नहीं पता चलेगी। उसने भारी मन से काम किया और अपने घर लौट गयी। घर पहुँच कर बच्चों को खाना दिया और वह कमला मैम साब के बारे में ही सोचती रही। उसका खाना खाने को भी मन नहीं कर रह था। थकी मांदी उसे, न जाने कब नींद आ गयी। सपने में, उसे लगा वह एक ऐसे घर में कमला मैम साब के साथ खड़ी है, जहाँ चारों ओर टूटी हुई बहुत सी वस्तुएं बिखरी पड़ी हैं, वह जितना झाडू से उन्हें बटोरती है उतनी ही बढ़ती जाती है। उसे लग रहा था, जब वह वहाँ नहीं थी, कोई बहुत बड़ा तूफान गुजर कर चला गया, बहुत कुछ टूट गया है जिसकी आवाज वह सुन नहीं पायी। यह जानते हुए भी कि वह उस तूफान को नहीं रोक पाती, उसे दुःख था कि वह वहाँ क्यों नहीं थी।
उधर मोहल्ले की औरतें कमला जी का हालचाल पूछने के बहाने कभी भी टपक पड़ती और उनका हालचाल कम लेकिन उनके और बहू के बीच क्या हुआ यह जानने को अधिक उत्सुक रहती। वह चाहती थी कि वह उन्हें कुछ बताये और वह उसमें मिर्च मसाला लगाकर उसे अपनी कीटी पार्टी का हॉट टॉपिक बनायें या सत्संग में आते-जाते सहेलियों को सुनायें। लेकिन कमला जी इस विषय में बहुत सतर्क रहती। न स्वयं बहू-बेटे की बुराई करती न मोहल्ले में किसी को करने देती। चंपा भी यह समझ गयी, अब वह मेम साहब सो रही है या और कोई बहाना बना बाहर से ही लौटा देती।
शुरू में सुमित अपनी गाड़ी का घर के बाहर हार्न बजाता, कमला देवी जल्दी से बाहर जाकर उससे बात करती फिर वह ‘बाय मॉम, टेक केयर कहकर फैक्ट्री की ओर बढ़ जाता। शाम को तो वह गाड़ी खड़ी करके थोड़ी देर माँ से मिलने भी आता। लेकिन ना जाने क्यों धीरे-धीरे उसका आना कम होता गया अब वह फैक्ट्री से फोन करता और कहता पापा के विजिटिंग कार्ड की डायरी में से मुझे इस क्लाइंट का नंबर व्हाट्सएप कर दो या उस फाइल में क्या इस फैक्ट्री से संबंधित कोई लेटर है वह मुझे फोटो खींच कर भेज दो। कमला देवी भाग भागकर खुशी-खुशी बेटे की सहायता कर देती और फिर धीरे-धीरे वह सभी फाइलें घर से उठाकर फैक्ट्री ले गया अब उसने अपने आने-जाने का रास्ता भी बदल लिया शायद मधु ने इस बात पर भी क्लेश डाला हो।
इधर चंपा भी उनके सरल स्वभाव को समझते हुए उनकी यथासंभव सहायता करने का प्रयत्न करती लेकिन वह यह सोच सोचकर बहुत परेशान रहने लगी कि जिन दिनों वह काम पर नहीं आई इस बीच कमला मेम साहब और मधु मैम साहब के बीच ऐसा क्या हो गया कि वह दूसरे फ्लैट में रहने चली गई और सुमित भैया ऐसे कैसे अपनी मां को अकेला छोड़ कर चले गए। क्या दिल नहीं दुखा उनका? कमला मेमसाब ने न जाने कैसे उन्हें जाने दिया? ऐसे अनेक प्रश्नों को मन में लिए वह चुपचाप आती, थोड़ा सा काम करती और अब वह समय निकाल कर कभी उनके घुटनों पर तेल की मालिश करती, कभी उनसे पूछकर चाय बना देती, कभी-कभी तो खाना भी बना, बर्तन धोने के बहाने अपने सामने खिलाकर जाती। घर जाकर भी वह उनके बारे में सोचती, कभी कुछ पूछने के बहाने रात को भी फोन पर एक बार बात कर लेती। उसका सेवाभाव देख कभी शायराना तबीयत रखने वाली कमला जी के मन में यह पंक्तियाँ आती, “कभी तो ये दिल कभी मिल नहीं पाते, कहीं से निकल आये जन्मों के नाते…”
कभी-कभी उनका प्रिंस से मिलने को मन करता। उन्होंने सुमित को एक दो बार प्रिंस को साथ लाने को कहा। सुमित “हाँ मम्मी, श्योर मम्मी” कह कर उनके सामने सहमति तो जतला जाता लेकिन फिर कोई न कोई बहाना बना देता। जैसे… कभी वह सो रहा था, जब मैं फैक्टरी से आया, कभी उसका मंनडे टेस्ट है इसलिये सनडे नहीं आ सकता आदि, आदि।
एक दो बार मन के हाथों मजबूर हो उन्होंने चंपा को उसे पार्क से लिवाने भेजा। प्रिंस आया ‘हाय दादी, बताओ क्या काम है।’ कमला जी ने उसका माथा चूमा, उसे बहुत प्यार किया। कहा “कोई काम नहीं बेटा, बस आपको देखना था।” एक बार और चंपा उसे लिवा लायी पार्क से खेलते हुए लेकिन तीसरी बार उसने मना कर दिया “दादी, को बोलो, मुझे खेलने दे डिस्टर्ब न करे।” तब से कमला जी उसे खिड़की के पर्दे की ओट से देखती है। चंपा ने बोला, “आप पार्क जाकर बाबा को मिल आओ न। लेकिन वह नहीं मानी।”
कमला देवी, सुबह सात बजे से रात को बारह बजे तक टी.वी. लगाकर रखती थी शायद मन में बसे सन्नाटे और खालीपन को दूर करने के लिये।
चंपा ने सुना एक दिन वह कीकी को बता रही थी कि वह घर की सभी लाईटें जलाकर रखती है। उन्हें रात को कभी-कभी इतना डर लगता है। एक दिन वह भाई को बता रही थी कि कभी-कभी तो पूरी रात आँखों में कट जाती है। कीकी ने उन्हें ‘ओल्ड एज होम में’ शिफ्ट होने की बात कही, लेकिन वह अब भी यह कॉलोनी नहीं छोड़ना चाहती थी क्योंकि यहाँ “उनका सुमित” रहता है।
सुना है अब सुमित और भी व्यस्त हो गया है। उसने घर में दो एलशेशियन बड़े-बड़े कुत्ते रख लिये हैं। कहता है उसके बेटे को कम्पनी मिले और कभी अकेलापन न लगे इसलिये उसने और मधु ने यह निर्णय लिया है। जब प्रेस वाले ने उन्हें बताया तो वह इस बार दुःखी होने की बजाय हँस पड़ी।
सुमित ने पापा की गाड़ी बेचकर और बड़ी गाड़ी ले ली और डाईवर भी रख लिया। एक, दो बार उन्हें आँखें दिखाने डॉक्टर के पास जाना था। एक दिन सुमित ले गया। चंपा को उस दिन यह देखकर संतोष हुआ लेकिन अगली बार उसने ओला टैक्सी बुक करवा दी। कहा वह ऑफिस में बिजी है और ड्राइवर भी फैक्टरी के काम से कहीं गया है और सुझाव दिया वह अपने साथ चंपा को ले जाये। हाँ उनकी केन्द्रीय विद्यालय की कुछ मित्र कमला जी को कभी-कभी मिलने आ जाती थी तब उन्हें बहुत खुशी होती थी। वह अपने साथ एक, दो बार उन्हें बाहर घूमाने भी ले गयी। उन्हें खुश देख चम्पा भी खुश हो जाती और अब उसने और दो घरों का काम छोड़ केवल कमला जी और उनके ऊपर वाली मंजिल पर रहने वाली, मिसेज सक्सेना का काम पकड़ रखा था जिससे वह अधिक से अधिक समय कमला जी के साथ बिता सके। कमला जी ने भी बिना कहे चंपा की तनख्वाह लगभग दोगुनी कर दी। उसने तो रात दिन उनके पास रहने के लिये गाँव से अपनी मैसेरी बहन को बुलाने का सुझाव भी उन्हें दिया था लेकिन कमला जी शायद रात में किसी को अपने घर पर ठहराने से डरती थी।
मिसेज सक्सेना, उनकी बहुत पुरानी पड़ोसन थी उनका बेटा सुमित का क्लासमेट रहा था। वह भी आवश्यकता पड़ने पर कमला जी की कुछ सहायता कर देता था लेकिन उनकी उदासी और उनके दिल का खालीपन कोई भी नहीं भर पा रहा था। ‘शायद अपनों की दी गयी चोट पर अपने ही मरहम लगायें तो घाव जल्दी भरते हैं।’
रविवार का दिन था, सुबह-सुबह काल बैल बजी, चंपा आ चुकी थी, उसी ने दरवाजा खोला और वह हैरान हो गयी। सामने सुमित, मधु और प्रिंस खड़े थे। “कौन है?” कहते हुए लंगड़ाती हुई कमला जी कमरे में आ गयी। सुमित को सपरिवार आया देख उनकी खुशी का ठिकाना न रहा। दोनों ने झूककर माँ के पाँव छुए। उन्होंने तीनों का माथा चूमा।
चंपा के पैरों में तो मानो पंख लग गये उसने जल्दी से चाय का पानी चढ़ाया और प्लेटे सजाने लगी। कमला जी ने स्वयं रसोई में आकर छिपा कर रखी बादाम की गिरियाँ निकाल कर सर्व करने को कहा। उन्हें याद आया सुमित ने कहा था किसी सनडे आकर माँ तुम्हें सरप्राइज दूँगा और तुम्हारे हाथ के आलू के परांठे खाऊँगा। उन्होंने चंपा को आलू उबलने के लिये रखने को कहा और आटा सानने के लिये भी। प्रिंस के अच्छे नम्बरों से पास होने की बधाई भी दी क्योंकि उन्होंने उसका रिजल्ट जानने के लिये सुमित को उस दिन फोन भी किया था।
आधा कप चाय पीने के बाद सुमित ने बताना शुरू किया “माँ, हमने नोएडा में एक चार बेड़रूम का घर बुक करवाया है। लगभग तीन साल में पोजेशन मिलेगा। मैंने इस घर के कागज बनवा लिये हैं और इसे बैंक के पास गिरवी रखना चाहता हूँ लोन लेने के लिये। आपके इन कागजों पर सिग्नेचर चाहिए। चिंता मत करो माँ इस घर को बेचकर हम सभी वहाँ शिफ्ट हो जायेंगे। मैंने मधु से भी बात कर ली है वह अब आपको वहाँ अपने साथ रखने को तैयार है।”
यह सुनते ही कमला जी एक झटके से खड़ी हो गयी। वह अपने बेडरुम में गयी, और उन्होंने अल्मारी में से स्टांप पेपर पर टाइप किये हुए कुछ कागज निकाले और सुमित के सामने रख दिये। बेटा! अब ये घर न तुम्हारा रहेगा, न मेरा। मैंने अपनी केन्द्रीय विद्यालय की प्रिंसिपल एवं दो मित्रों के साथ मिलकर एक ट्रस्ट बना लिया है। मेरी मृत्यु के बाद यह फैक्ट्री और घर दोनों उस ट्रस्ट को चले जायेंगे। उन्हें इस पैसे से मैंने एक विधवा आश्रम और गरीबों के लिये एक डिस्पेंसरी खोलने के लिये कहा गया है। इस ट्रस्ट में मेरे मित्रों के साथ-साथ तुम्हारी काकी मौसी और मामा भी हैं।
जिस दिन तुम जरा सी बात का बतंगड़ बना इस घर में मुझे अकेला छोड़ कर चले गये थे मेरे मन में तभी यह विचार आया था लेकिन तुम्हारे मोह के कारण मैं निर्णय नहीं ले पा रही थी और एक दिन मैंने निश्चय कर, यह निर्णय ले ही लिया।
भला हो मेरी केन्द्रीय विद्यालय की मित्रों का जिन्होंने मेरी यह कागज तैयार करवाने में सहायता की। उनमें से एक का बेटा वकील है उसने अपनी माँ के साथ देर रात यहाँ बैठ सारे कागज अपने जूनियर के साथ बैठकर तैयार करवायें और अगले दिन मुझे कोर्ट साथ ले जाकर इन कागजों की एक कॉपी कोर्ट में सुरक्षित रूप से रखवा दी। अब इन कागजों की सुरक्षा की भी मुझे कोई चिंता नहीं।
सुमित और मधु निःशब्द हक्के-बक्के से माँ का यह रूप देख रहे थे और चंपा को तो अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था, “और सुनों मैं चंपा के तीनों बच्चों का केन्द्रीय विद्यालय में एडमिशन करवा रही हूँ स्पेशल कोटे में। मैंने इस विषय में प्रिसिंपल से बात भी कर रही है। कल से मैं स्वयं उनकी पढ़ाई में मदद किया करूँगी। मेरे मरने के बाद इसका जो भी बच्चा पढ़ना चाहेगा उसकी फीस भी ट्रस्ट भरेगा। कहते-कहते कमला जी सोफे पर बैठ गयी।” मधु मैंने तुम्हें बेटी के समान माना है इसलिये चाहकर भी कभी तुम्हें बद्दुआ नहीं दे सकती है, हाँ! भगवान से प्रार्थना अवश्य करूँगी कि जो तुमने मेरे साथ किया है वह भगवान तुम्हारे साथ न करें।
इतना कह कमला जी ने कागज उठा लिये। सुमित और मधु के पास आज कहने के लिये शायद कुछ बचा ही नहीं था, कहते भी तो किस मुँह से।
दोनों ने कमला जी के पाँव छुए। दो आँसू टपके उनके पैरों कर गिरे और वह प्रिंस का हाथ पकड़ घर से बाहर निकल गये।
कमला जी ने आज मुस्कराते हुए चंपा की ओर देखा। न जाने उसमें आज कहाँ से इतना जोश आया कि उसने कमला जी को गोदी में उठा सारे कमरे में घूमा दिया। आज आगे बढ़ उन्होंने पार्क की ओर खुलने वाली खिड़की का पूरा पर्दा हटा दिया। बाहर देखा तो बादल छँट चुके थे और सूरज निकल आया था।
भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’
