वो मेरी जरूरत बन गया था, मेरी हर शाम उसके साथ के बिना अधूरी थी।

घर पर भी सभी को पता था कि मैं उसकी कितनी दीवानी हूँ! मेरा छोटा भाई तो कई दफ़ा उसका नाम लेकर मुझे चिढ़ाता भी था, कहता था कि ‘दीदी किसी की आदत इतनी अच्छी भी नहीं होती’

मगर मैं तो उसके नशे में पूरी तरह डूबी हुई थी, उसके बिना मेरे दिन-रात का चैन उड़ जाता था।

मगर आज पूरे तीन दिन हो गये थे, वो मेरे घर नहीं आया… उसके बिना कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था।

ऐसा तो पहले कभी नहीं हुआ था।

मीनल!

मेरा दिमाग खटका, मीनल के यहाँ हो सकता है वो… मीनल मेरे ही ऑफिस में काम करती थी और वह भी उसे काफ़ी पसंद करती थी! क्या पता बेवफ़ा वहीं मिल जाए!

मुझसे अब रहा नहीं गया, मैं उसे खोजने मीनल के घर तक चली गयी।

मगर वहाँ जाकर पता चला कि वो तो कई दिन हुए मीनल के घर भी नहीं आया था।

‘अब कहाँ जाऊं उसे ढूँढने?’

दिल के हाथों विवश होकर मैंने स्कूटी से हर उस जगह उसे खोजा जहाँ उसके होने की संभावना थी मगर दुर्भाग्य से वो कहीं नहीं मिला!

‘उफ्फ्फ… क्या करूँ’ उसके बिना मेरी बेचैनी बढती जा रही थी…

मेरे हर दर्द का इलाज था वो, जब भी कोई चिंता सामने आती, मैं उसे याद करती और वो भी मेरे लिए किसी जादू की पुड़िया से कम नहीं था।

उसके साथ से मेरी सारी चिंता, तनाव छू-मंतर हो जाता।

जैसे-जैसे दिन गुजरते जा रहे थे, मेरी तड़प बढ़ती ही जा रही थी, सिर दर्द से फटा जा रहा था… आखिर वापस कब आएगा वो मेरे घर?

मेरे घरवाले मेरी ये हालत देखकर दु:खी थे, उन्होंने भी उसे हर जगह खोजा, मगर वो तो मानों शहर छोड़कर ही चला गया था।

एक सप्ताह बीत गया, मैं उसके बिना अभी भी व्याकुल थी।

आखिरकार मेरी हालत देखकर भगवान को मुझ पर तरस आ ही गया, मेरा इंतज़ार खत्म हुआ… भाई बाहर किसी काम से गया हुआ था, वापस आया तो मुझे खुशी से पुकारा- ‘दीदी देखो तो, मैं किसे लेकर आया हूँ?’

मैं अपने रूम से बाहर आयी तो देखा कि वो भाई के साथ था!

मेरी तो बांछे खिल गई… खुशी से आँखें भर आयीं।

‘इसके लिए मैं कितना तरसी हूँ इतने दिनों से!’

मैं तुरंत उसे लेकर रसोई में गयी और उसे अच्छी तरह से कूट दिया!

और इस तरह एक सप्ताह बाद मैंने फ़िर से अपनी पसंदीदा ‘अदरक की चाय’ पी!!

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