Hindi Katha: प्राचीन समय की बात है, शेषनाग का मणिनाग नामक एक पुत्र था। वह परम शक्तिशाली था, लेकिन गरुड़ से सदा भयभीत रहता था। अतः भगवान् शिव की कृपा प्राप्त करने के लिए वह प्रतिदिन कैलाश जाता और भगवान् शिव की पूजा- आराधना करता। किंतु एक दिन गरुड़ ने निर्भय विचरते देख उसे पकड़ लिया और अपने घर में लाकर बंद कर दिया।
इधर, भगवान् शिव सारी बात जान गए । उन्होंने मणिनाग को मुक्त करवाने के लिए नन्दी को वैकुण्ठ लोक भेजा । नन्दी शीघ्र ही श्रीविष्णु के पास गए और उन्हें सारी बात बताकर मणिनाग को मुक्त करवाने की प्रार्थना की। श्रीविष्णु ने गरुड़ को मणिनाग को लौटाने के लिए कहा। किंतु अहंकार में भर कर गरुड़ ने श्रीविष्णु की आज्ञा की अवहेलना कर दी। श्रीविष्णु मुस्कराते हुए बोले – ” पक्षिराज ! मुझे यह बात स्वीकार करने में कोई संकोच नहीं है कि तुम विलक्षण शक्ति के स्वामी हो और तुम्हारे बल – पौरुष से मैंने बड़े-बड़े असुरों पर विजय प्राप्त की है। किंतु तुम मेरी इस कनिष्ठा उँगली को तो वहन करो। “
यह कहकर उन्होंने अपनी सबसे छोटी उँगली गरुड़ के मस्तक पर रख दी। गरुड़ उनकी उँगली का भार नहीं सह सके और उनका अहंकार चूर-चूर हो गया। वे लज्जित होकर क्षमा माँगने लगे। श्रीविष्णु ने उन्हें मणिनाग सहित शिव की शरण में जाने की आज्ञा दी। वहाँ पहुँचकर उन्होंने महादेव को सारा वृत्तांत सुनाया।
महादेव बोले ” पक्षिराज ! तुम पवित्र गौतमी गंगा के पास जाओ। वे पापों का नाश कर प्राणियों की सभी कामनाएँ पूर्ण करती हैं। वहाँ स्नान करने से तुम पुनः निष्पाप हो जाओगे और तुम्हें मनोवांछित वस्तुओं की प्राप्ति होगी । “
उनका परामर्श सुनकर गरुड़ ने गौतमी में स्नान कर भगवान् विष्णु और शिव की स्तुति की। इसके बाद वे पुनः भगवान् विष्णु के पास लौट गए।
