लाला संतराम रेशम का कारोबार करते थे। रेशम साफ करने में जो कचरा निकलता उसे जमा कर वह छोटे दुकानदारों को बेच दिया करते थे। एक बूढ़ा दुकानदार लालाजी का काफी समय से ग्राहक था। लालाजी उसकी ईमानदारी की काफी प्रशंसा करते थे एवं उससे काफी प्रसन्न थे।
एक दिन किसी ने बताया कि बूढ़ा पैसों की कमी की वजह से अपनी लड़की की शादी नहीं कर पा रहा है। लालाजी बोले- “मैं क्या कर सकता हूँ, शादी के लिए तो काफी पैसा चाहिये। 50-100 रुपये की बात होती तो मैं दे देता।”
कुछ दिन बाद बूढ़ा कचरा खरीदने आया, तो लालाजी ने कहा- “कचरा तो नहीं है, पर हमारी रेशम की गांठ चूहों ने कुतर दी है। चाहो तो इसे ले जाओ।”
हजार रुपयों में निश्चित हो गया। घर बूढ़े ने गांठ देखी। मोल-भाव में सौदा आकर बूढ़े ने गांठ खोली तो देखा ऊपर के सिर्फ दो-तीन बंडल कटे हैं, बाकी पूरी की पूरी गांठ ठीक है। वह लालाजी के पास दौड़ता हुआ गया, और उन्हें यह बात बता दी।
लालाजी ने कहा- “अब जो है वह तुम्हारा है। माल खराब निकलता तो मैं क्या करता?”
बूढ़ा लालाजी को दुआएं देता चला गया। उस गांठ में उसे हजारों का लाभ हुआ, जिससे उसने अपनी लड़की की शादी काफी धूमधाम से की। यह किसी को पता नहीं चला कि गांठ पर कैंची लालाजी ने ही चलायी थी।
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