Hindi Kahani: मित्रो एक कहानी आज आप सभी को सुना रही हूं। 20 मई 2023 की बात है हम पति-पत्नी को काफी वर्षों के बाद मां वैष्णो देवी ने अपने दर्शन का बुलावा भेजा था। इसे आप चाहे मेरी श्रद्धा कह सकते हैं,मन के भाव या माता की कृपा, बात एक ही है कि जगदम्बा मां बहुत दयालु है। वह अपने भक्तों के कष्ट हर पल हरती है। मां के दरबार में जो जिस भाव को लेकर आता है उसे वैसा फल अवश्य मिलता है। जो दूसरों की मदद करता है मां जगदंबा उसकी मदद के लिए खुद आकर उसका हाथ थाम लेती है।
जो मां के धाम में भी छल कपट करता है, या दूसरों का धन हड़पने की कोशिश करता है आज नहीं तो कल मां उसका फल भी अवश्य देती है।
इस तस्वीर को जब भी देखती हूं मुझे वह पल याद आता है जब हमने वैष्णो देवी की चढ़ाई मां के जयकारे के साथ बाढ़ गंगा से शुरू की थी। हम दोनों ही काफी वर्षों बाद अपने किसी मित्र परिवार के साथ वैष्णो धाम की यात्रा पर निकले थे। मेरे पति को घोड़े खच्चर पर बैठकर जाना व्यक्तिगत रूप से पसंद नहीं है और मुझे भी थोड़ा सा अपने पांवों पर ही विश्वास ज्यादा रहता है और विश्वास है कि भले देर से ही सही मां अपने दर्शन तो अपने बच्चों करा ही देंगी।
यात्रा की शुरुआत में ही हमने दर्शन करने के लिए सहारे के रूप में चढ़ाई के लिए छड़ियां (लाठी) ले ली। पर मेरे पति ने कहा मुझे इसकी जरूरत नहीं है मैं ऐसे ही चढ़ाई करूंगा। मैंने और साथ वालों ने काफी कहां पर इन्होंने बात नहीं मानी, हालांकि इन्होंने सब को छड़ी खुद दिलाई पर अपने लिए इन्होंने छड़ी नहीं ली। मुझे भी लगा ठीक है शायद ये आराम से कर लेंगे, हम मां का नाम लेकर यात्रा पर निकल पड़े।
Also read: भोलू-गृहलक्ष्मी की कहानियां
हम थोड़ी देर तो बड़े आराम से चलते रहे, आसपास लगे हाट बाजारों की रौनक देखते, जहां भी छड़ी वाले दिखते मैं एक बार फिर से इनसे पूछती कि एक छड़ी आपके लिए ले ही लेते हैं पर इनका जवाब हर बार ना में होता।
थोड़ी देर बाद जैसे-जैसे चढ़ाई बढ़ रही थी उनकी थकान बढ़ती जा रही थी फिर धीरे-धीरे बाजार और छड़ी बेचने वाले भी पीछे छूटते गये। अब मुझे इनकी थकान साफ-साफ दिखाई दे रही थी। बिना छड़ी के सहारे के चढ़ना बहुत मुश्किल सा हो रहा था लगता था जैसे मां जगदंबा उनके साथ साथ मेरी भी परीक्षा ले रही है।
मैं अब इन्हें अपनी छड़ी के लिए कहती कि आप इसे ले लीजिए, मैं थोड़ी देर ऐसे ही चलती हूं। पर ये हर बार मना कर देते। अब तो इनकी थकान बढ़ती जा रही थी मुझसे उनकी हालत देखी नहीं जा रही थी। रास्ते में कुछ बच्चे मिले जिन पर दो-दो छड़ीयां थी, जिनसे बच्चे आनंद के साथ खेलते हुए जा रहे थे। मैंने उन बच्चों से भी एक छड़ी मांगने की कोशिश की पर उससे पहले ही मेरे पति मना कर देते।
अब मैं इन्हें देख देख कर बहुत परेशान हो गई,मन रुआंसा सा हो गया, रास्ते में एक बहुत विशाल वृक्ष आया, में उस पर अपनी कमर की टेक लगाकर सुस्ताने लगी, और मन ही मन मैया का ध्यान करते हुए उनसे कहने लगी मां तू इनको हिम्मत देना, शक्ति देना अपने दर्शन को सुगमता से करा देना।
तभी मेरे पैरों के ठीक आगे उस वृक्ष पर से एक छड़ी आकर गिर गई, मेरी खुशी का ठिकाना ना रहा, मैंने ऊपर देखा मुझे लगा शायद बंदर है रास्ते में तो उन्होंने गिरा दी होगी, पर उस जगह से बंदर भी काफी दूर थे। अब तो लगा ये तो मां का चमत्कार ही है ,मां ने मन की मुराद पूरी कर दी , उस समय मां ने अपने आशीर्वाद स्वरुप एक लाठी हमें दी थी जिस समय उसकी हमें बहुत जरूरत थी।
हम दोनों ने ही उस पल मां का आशीर्वाद अपने साथ महसूस किया और सोचा कि सच मां तो कितनी दयालु है वह तो हर समय अपने बच्चों को अपनी गोद में बैठाना चाहती है बशर्तै बच्चों के मन में मां के प्रति श्रद्धा भाव हो और किसी के साथ छल कपट ना हो।
मां के आशीर्वाद से हम उनके धाम पहुंच गए, दर्शन भी बहुत अच्छे हुए, लगा जैसे समय यही ठहर जाए और हम यही मां की गोद में रुक जाए, पर लौटना तो था ही। हम मन में उमंग लिए मां का आशीर्वाद संग लिए जय माता दी बोलते हुए लौटने लगे।
वापस लौटते समय मेरे पति ने रास्ते में एक थोड़ी बुजुर्ग अम्मा मिलीं, उनको वो लाटी थमाते हुए कहा अम्मा इस लाठी को लेकर यात्रा करो मां तुम्हारी यात्रा सुगम बनाएगी। मेरे पति का कहना था की ये मां का आशीर्वाद है और मां का आशीर्वाद उसके हर जरुरतमंद भक्त को मिलना चाहिए।
