भोलू-गृहलक्ष्मी की कहानियां
Bholu

Motivational Story: भोलू एक प्यारा सा पाँच साल का बच्चा है ,उसे फोन देखने की बचपन से ही आदत पढ़ गयी है । इसमें उसकी कोई गलती भी नहीं थी क्योंकि माता-पिता ही अपना काम करने के लिए उसे फोन देकर बहलाते थे।भोलू को नर्सरी कविता ,मासा एण्ड बियर, बहुत पसंद हैं, इनके बिना वह खाना ही नहीं खाते हैं, जिससे उनकी आँखों ,और स्वास्थ्य पर विपरीत असर पड़ने लगा और अपनी पढ़ाई पर भी ध्यान नहीं ध्यान नहीं दे पाते थे।
  तभी एक बच्चों के डाक्टर अपने बच्चों के साथ भोलू के मम्मी पापा से मिलने आए तो उन्होंने भोलू की समस्या उन्हें बताई।
डॉक्टर साहब ऐसी समस्या से हर रोज रूबरू हुआ करते थे, उन्होंने कहा,” कि यह आज की मुख्य समस्या है,  पर चिंता का की कोई बात नहीं है। आप बच्चे को अन्य एक्टिविटीज़ में व्यस्त रखिए तो यह आदत धीरे धीरे कम हो जाएगी और आप भी भोलू के सामने फोन का प्रयोग मत कीजिए।”
  भोलू के मम्मी-पापा को उनका सुझाव पसंद आया। उन्होंने छोटे-छोटे गमले मंगवाए और भोलू को लेकर नदी किनारे गये और वहाँ से मिट्टी लेकर आए जिसमें भोलू ने भी अपने नन्हे -नन्हे हाथों से मिट्टी इकठ्ठी की ओर अपने घर आ गये।
घर आकर बेटे और पापा ने गमलों में मिट्टी भरी,मम्मी ने रसोई से आलू,अदरक, शकरकंद,टमाटर, धनिया,सोंफ,जीरा ,मैंथी सरसों लाकर दिया।

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भोलू के पापा ने भोलू के हाथों से सभी बीज अलग-अलग गमलों डलवा कर उन पर हल्का सा पानी छिड़काव करवा दिया और उन्हें अखबार से ढंकवा कर रख दिया। पापा ने पूछा,भोलू बेटे !आपको यह काम कैसा लगा?

भोलू ने कहा,”मुझे बहुत अच्छा लगा पापा।”

पापा ने कहा, “तुम्हें हर रोज इनमें पानी डालना होगा और इनकी देखभाल भी करनी है,कुछ दिन बाद इनमें नन्हे पौधे उग आएंगे।”

“जी पापा ! मैं हर रोज पानी डालूंगा।” भोलू ने अपने हाथ में पकड़ी बोतल दिखाते हुए कहा।

भोलू की मम्मी ने कहा , भोलू बेटे चलो आज बगीचे में चलकर आपको पक्षी और पेड़,पौधौं से मिलवाते हैं और पक्षियों के लिए खाना भी ले चलेंगे।

मम्मी ने खाली बोतलों में सबके लिए अलग-अलग खाना रखा और उन पर स्लिप लगा दी।
आटा चींटियों के लिए ,मूंगफली ,भुना चना गिलहरियों के लिए,रोटी कौओं के लिए, बाजरा ,मक्का कबूतरों के लिए…एक छोटे बैग में यह सभी सामग्री रख ली और  भोलू को वह बैग पकड़ा दिया। मम्मी ने एक बड़ी बोतल में पानी भरा और एक मिट्टी का सकोरा अपने साथ ले लिया।

पार्क में पहुंँच कर मम्मी ने हर बोतल से पेड़ के नीचे भोलू से दाना, खाना रखवाया। पापा ने बोतल का पानी सकोरे में भरकर पेड़ के नीचे रख दिया और भोलू की उंगली पकड़ कर हर पेड़-पौधों ,फूलों के नाम बताए। भोलू ने देखा कि फूलों के पास बहुत सी तितलियां उड़ रही हैं तो वह उन्हें पकड़ने के लिए उनके पीछे-पीछे दौड़ने लगे। तितली कभी इस फूल पर तो कभी दूसरे फूल पर।
भोलू ने उन्हें पकड़ने के लिए खूब दौड़ लगायी और तितलियों ने भी खूब छकाया।
  देखते-देखते भोलू ने जो दाने डाले थे, उन्हें खाने के लिए कबूतर,पड़कुलियां, गिलहरियाँ,कौवे सभी आने लगे और खूब उछल कूद होने लगी। गिलहरियाँ इधर से उधर दौड़ लगा रहीं थी। कौवे कांव -कांव करके ऊपर नीचे आ जा रहे थे। कबूतर अपनी गरदन मटका कर गुटरगू- गुटरगू करते हुए अपने गुलाबी पैरों से  इधर से उधर आ-जा कर बाजरा चुगने लगे।

भोलू को उन सभी को देख कर बहुत खुशी मिली। अब वह हर रोज अपने मम्मी-पापा से कहते हैं कि बर्ड्स को दाना देने चलना है। पक्षी और गिलहरियाँ भी अब  उनको देखते ही उनके आस-पास घूमने लगती हैं और बैग के ऊपर उछल-कूद करने लगती हैं।

सकोरे में रखे पानी को जब पक्षी पीते हैं तो भोलू भी उनकी नकल करके पानी पीने लगते हैं। अब वह चिड़ियों की बोली भी बोलने लगे हैं। तोतो को देखकर तो भोलू उनके लिए हरी मिर्च ले जाते हैं और जब वह घास पर उतर कर खाते हैं तो भोलू ने भी उनकी देखा देखी थोड़ी सी मिर्ची अपने दाँतों से काटी ही थी कि उसके बाद जो ता-ता थैया हुआ कि उल्टे पांव घर लौटकर भोलू ने दो ग्लास पानी गटागट पी लिया और गुड़ ,चीनी खाया…तब उनका रोना चिल्लाना बंद हुआ। अब तो दूर से भी कोई कहता है कि मिर्ची खा लो भोलू ! अरे नहीं …अरे नहीं कहकर वह भाग जाते हैं।

अब देखते हैं गमलों को… पांचवें दिन में ही उनमें बीज उगने शुरू हो गये तो पापा ने सबसे पहचान करवायी । भोलू को बहुत से पौधों और पेड़ों की पहचान हो गयी है। उनके नाम भी जान गये हैं। इससे लाभ यह हुआ कि भोलू को अपने वातावरण से बहुत लगाव हो गया है और फोन की आदत बहुत कम हो गयी है।

भोलू अब पक्षियों को मेरे बच्चे कहकर बुलाते हैं और उनके बच्चे उनको देखते ही उनके पास आ जाते हैं। भोलू की मम्मी कहती हैं कि जब हम किसी की परवाह और प्यार करते हैं तो बदले में हमें भी प्यार और अपनापन मिलता है।