सुखद भविष्य-गृहलक्ष्मी की कहानियां
Sukhad Bhavisya

Hindi Kahani: अस्पताल के बिस्तर पर मेरी आँखें बंद थीं, सिर में हल्का सा दर्द महसूस कर रही थी, नथुनो में हॉस्पिटल की गंध घुसी हुई थी, फिर भी मैं नर्सों के आने जाने और सुशांत, कुणाल और अन्य रिश्तेदारों की अस्पष्ट खुसर फुसर स्पष्ट महसूस कर रही थी,मानो मीलों दूर से आवाज़ें आ रही हों.

 “कैसी है जया?”अपने माथे पर स्नेहिल ठंडा स्पर्श पाकर मैंने आँखें खोलीं तो सामने मेरी बचपन की सहेली चंदन, बैठी हुई थी.मन किया उसके गले से लिपट जाऊँ पर उठ नहीं पायी,क्योंकि ग्लूकोस की बोतल लगी हुई थी.भरी आँखों से उसका चेहरा निहारती रह गई थी.

 “तू तो इतनी बहादुर है,सारा जीवन कठिनाइयों से जूझती रही,उन्हें परास्त करती रही,ये तो मामूली सी तकलीफ़ है.”

 तभी राउंड पर डॉक्टर आये,उन्होने नर्स से कुछ पूछा,सुशांत और कुणाल से कुछ कहा,मीठे स्वर में मेरी तकलीफ़ पूछी तो मैं मुस्कुरा दी.कहीं दिमाग़ में जया की बातें दिमाग़ में घूम रही थीं,”तू तो इतनी बहादुर है…”

 मैं चार बहनों में सबसे बड़ी थी.पापा सचिवालय में क्लर्क थे.बमुश्किल उन्होने हम चारों को पढ़ाया था.मुझ पर तो उन्हें ख़ास नाज़ था.हमेशा कहते,” जया तू मेरी बेटी नहीं बेटा है.तुझे मैं इस क़ाबिल बनाऊँगा कि तू मेरी जिम्मेदारियाँ संभाल सके.”

        माँ का स्वास्थ्य अक्सर ख़राब रहता.बीमार माँ की परिचर्या और तीन छोटी बहनों की देखभाल करते करते कब मेरा बचपन दफ़न हो गया,पता ही नहीं चला.शाम को जब छोटी बहने खेलनें जातीं तो मैं भी बाहर जाने के लिए माँ से बाल सुलभ हठ करती.

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 माँ समझातीं,

 “तू खेलने चली जाएगी तो चिनी मुझे परेशान करेगी.तेरे पापा ऑफ़िस से लौट आएँ तब चली जाना.”

 लेकिन थके हारे पापा को पानी पिलाते,चाय नाश्ता देते शाम का धुँधलका चारों तरफ़ फैल चुका होता.

सुखद भविष्य

         पोस्ट  ऑफ़िस का काम हो या बैंक का,केमिस्ट से दवाई लाने का या छोटी बहनो के फ़ार्म भरने का,सब मैं ही करती.बचपन से ही अपने मन को मारती -मारती मैं जैसे पत्थर हो गयी थी. धीरे धीरे ज्यों ज्यों उम्र बढ़ती गयी,मेरा मन भी घर में ही रमने लगा.कभी काम नहीं भी होता,तो भी बाहर जाने की जैसे इच्छा ही मर गयी थी.मन में कोमल भावनाएं न जाने कहाँ लुप्त हो गई थीं

 मैं मेधावी छात्रा थी.बीएससी में गणित लिया और  प्रथम श्रेणी में पास हुई.मेरी इच्छा एम एस सी करके लेक्चरर बनने की थी,पर उस समय पापा ने मुझे बी.एड करने की सलाह दी.बी.ए,बी.एड करते ही मुझे शिक्षिका की नौकरी मिल गईं तो पापा बहुत ख़ुश हुए कि अब “मेरी बेटी मेरे दुःख दूर करेगी”

    मुझे पापा की सोच पर हैरानी होती जो बेटी के हाथ पीले करने की चिंता से मुक्त,अपने ही कष्टों के बारे में सोचते रहते थे.

  तभी एक दिन चमत्कार हुआ .मेरे लिए सुशांत के घर से रिश्ता आया.माँ और पापा बेहद ख़ुश थे,

 “हमारी जया बहुत क़िस्मत वाली है.बिना ढूँढे ही रिश्ता आया है.”

      सुशांत से रिश्ता तय करते समय पापा ने पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि वो ज़्यादा दहेज नहीं देंगे.लेकिन मेरी ससुराल पक्ष के लोग, सभी यह सोचकर राज़ी हो गए कि बहू,सरकारी स्कूल की शिक्षिका है .ज़िंदगी भर दहेज मिलता रहेगा.

 ससुराल में मेरी अच्छी ख़ातिर हो रही थी.मुँह दिखाई की रस्म वाले दिन रिश्ते की एक सास ने मेरी सास से कहा,

 “सुशांत की माँ,बहू तो शक्ल सूरत से साधारण है,दहेज भी नहीं लायी,फिर क्या देखकर तुमने सुशांत का रिश्ता कर लिया ?”

 “अरे चाची आपकी बहू सरकारी स्कूल में टीचर है .ज़िंदगी भर दहेज लेती रहो”सुशांत ने कहा,तो सब हस दिए,पर मेरी आँखें डबडबा गयीं.मन में फाँस सी चुभ गयी थी.

 कुछ ही दिनो में सारी आवभगत ख़त्म हो गयी.सारा काम निबटा कर स्कूल के लिए निकलती तो सास की आवाज़ सुनाई देती,

 “आज स्कूल से जल्दी आ जाना,याद है न शालिनी को देखने लड़के वाले आ रहे हैं,बस स्कूल याद रहता है और किसी काम से तो मतलब रहता नहीं”

 बुरा लगता पर मैं अनसुना कर देती.अगर कमा रही हूँ तो कौन सा अपने मायक़े पर ख़र्च करती हूँ! सब तो सुशांत को दे देती हूँ सोचती हूँ सुशांत की ज़िम्मेदारियों में हाथ बँटा सकूँ लेकिन समझाया उसे जाता है जो समझना चाहता हो.हर किसी को कोई कैसे समझा सकता है.सुशांत भी समझाते

  “जाने दो माँ की आदत है”

 तीनों ब्याह योग्य ननदों का ब्याह न होने के लिए कोपभजन मुझे ही होना पड़ता.चंदन से दिल का दुःख दर्द बताती तो मन हल्का हो जाता.फिर वापस आकर वही व्यस्त दिनचर्या !

 एक बार सुशांत मेरे लिए साड़ी और फूलों की वेणी लेकर आए.मैं झटपट तैयार होकर बाहर निकली तो सास ने तीखे स्वर में सुशांत से कहा,

 “जवान बहनों के सामने ऐसी सस्ती नौटंकी करने का क्या मतलब है? लाना ही था तो उनके लिए भी साड़ियाँ ले आता”

 बस ऐसी ही दो तीन घटनाओं के बाद उन्होने भी प्यार जताना छोड़ दिया.

 हर महीने की पहली या दूसरी तारीख़ को तनख़्वाह मिलती,उसे मैं सास को दे देती.उसमें से सास इतने ही रूपए मुझे देतीं जिससे स्कूल जाने के लिए महीने भर का रिक्शा का किराया पूरा हो पाता.साथ काम करनेवाली शिक्षिकाएं अपनी तनख़्वाह से कभी सुंदर सुंदर साड़ियाँ और सूट लेतीं और गहने खरिदतीं तो मेरा मन भी इन चीज़ों के लिए तरसता.सुशांत से कभी कहती तो हमेशा कहते,

 “मेरी बहनों की शादियाँ हो जाने दो,फिर तुम जो चाहोगी ले लेना.”कभी किसी ने नहीं सोचा कि मेरी भी कुछ इच्छाएँ हैं,सपने हैं,मैं सिर्फ़ पैसे कमाने की मशीन बन कर रह गयी.साल छः महीने में कभी हम पिक्चर देखने जाते तो ननदें साथ रहतीं.कभी स्कूल में किसी चीज़ के लिए चंदा देना पड़ता तो सास की त्यौरियाँ चढ़ जातीं.

 समय के अंतराल के साथ तीनों ननदों का विवाह हो गया.ननदों के ब्याह की ज़िम्मेदारियों से मुक्त हुए तो हमने परिवार बढ़ाने के विषय में सोचना शुरू किया.छः साल बाद कुणाल का जन्म हुआ तो सबकी ख़ुशी का ठिकाना न रहा.नामकरण का फ़ंक्शन धूम धाम से मनाने के लिए मैंने और सुशांत ने क़र्ज़ ले लिया था.मेरे मायक़े से भी सभी रिश्तेदार जमा हुए थे.हमेशा की तरह लेनदेन के मामले को लेकर खुसर फुसर होती रही.मेरे मायक़े वालों के जाते ही सुशांत मुझ पर बरस पड़े,

 “तुम्हारे पापा को ज़रा भी समझ नहीं है.इतने दिनो बाद हमारे घर बच्चा हुआ है और इतने सस्ते में टरका दिया?”

 अपमान से जड़ हुई मैं,कुणाल को छाती से चिपकाए थर थर कांपती रह गई थी.उसी रात को इनका रूप फिर से एकदम ही बदल गया.बड़े मीठे स्वर में इन्होंने कहा,

  “सुनो अम्माँ कह रही हैं सिर्फ़ कपड़े देने के कारण,तीनों बहनों बहनोईयों के मुँह फूले हुए हैं.कल तुम अपने अकाउंट से रूपए निकाल लाना.तीनों के लिए कान के बुँदे लेने होंगे.”

 मैंने हाँ तो कह दिया,पर पूरी रात मेरी आँखें छलछलाती रहीं.शादी के बाद कई बार मन किया कोई छोटी सी चीज़ लेने का पर ,अपने ऊपर कभी ख़र्च कर ही नहीं पाई.फिर अगले वर्ष स्वाति आ गई.ख़र्चे और भी बढ़ते गए.

   समय गुज़रता ही गया.बच्चे जवान हो गए.अम्माँ को कुणाल और स्वाति की शादी का बड़ा शौंक था,पर दुर्भाग्यवश वो ये दिन देखने से पहले ही स्वर्गवासी हो गयीं.स्वाति की शादी हमने एक इंजीनीअर से कर दी.ख़ासा दहेज देना पड़ा,पर लायक दामाद पाकर हम निहाल थे.

  कुणाल पढ़ने में होशियार नहीं था.उसकी संगत भी बुरी थी.सबने सलाह दी उसकी शादी कर दो,तो सही राह पर आ जाएगा.बचपन से ही कुणाल ने इस घर में मेरा अपमान होते देखा था,इसलिए उसके स्वभाव में माँ का आदर जैसी कोई भावना थी ही नहीं.बहू के आने के बाद उसे ज़्यादा पैसों की ज़रूरत पड़ने लगी.सुशांत से बार बार पैसे माँगने की उसकी हिम्मत नहीं पड़ती थी,इसलिए वो मेरे पीछे पड़ा रहता था.मैं कभी समझाने की कोशिश भी करती तो पैर पटकता हुआ चला जाता.मुझे तो अपमान का घूँट पीने की आदत ही पड़ गयी थी.चुपचाप पैसे दे देती.

 इधर कुछ दिनों से मुझे सिर दर्द,चक्कर,आने की शिकायत रहने लगी थी.डॉक्टर ने उक्त रक्तचाप की बीमारी बतायी.खान पान में परहेज़,और किसी क़िस्म का तनाव न लेने की सलाह दी.लेकिन मेरे जीवन में तो तनाव ही तनाव था.मन में आया,

 “क्यों न नौकरी से इस्तीफ़ा दे दूँ?”स्वास्थ्य लाभ होगा.वैसे भी अब फ़र्ज़ तो सारे उतर ही गए थे,बस उचित समय की प्रतीक्षा कर रही थी.

       एक दिन हम सब खाना खा रहे.मैंने अपने मन की बात कह दी,

 “मैं नौकरी करते करते थक गई हूँ.अब तो बहू तू जल्दी से मुझे एक पोता दे दे,मैं नौकरी से इस्तीफ़ा देकर उसके साथ खेलूँगी”

 मुझे ऐसा लगा मेरी इस बात से सब ख़ुश होंगे,क्योंकि मेरे स्वास्थ्य को लेकर सभी चिंतित रहते थे.पर सुशांत और कुणाल की आँखें विस्फ़ारित हो गयीं,

 “क्या मम्मी,तुम जॉब छोड़ दोगी? इतने आराम की नौकरी है तुम्हारी,इतनी अच्छी तनख़्वाह है,फिर अभी तो तुम्हारे रिटायर होने

 में अभी चार वर्ष और हैं.फिर सुना है सरकार शिक्षकों के रिटायरमेंट की उम्र साठ से बढ़ाकर बासठ वर्ष करने जा रही है.आजकल तो लोग रिटायर होने के बाद भी कोई न कोई काम करते रहते हैं और तुम….ये कैसी बातें कर रही हो?”

           मैं कुणाल के स्वार्थी स्वभाव को देखकर दंग रह गई.इस उम्र तक माँ शरीर खींच-खींच कर काम करे,रिटायर होने के बाद भी काम करने की सोचे और जवान लड़का,जिसे काम करना चाहिए,माँ बाप के भरोसे ही बैठा रहे?

 आए दिन कुणाल अपने लिए कोई न कोई बिज़नेस शुरू करने की योजनाएँ  बनाता.अंत में हमने उसके लिए एक बिजली के सामान की दुकान खुलवा देने की सोची.मन को दिलासा दिया कि चलो,एक ही तो बेटा है,ख़ुद कमाना शुरू करेगा तो हमारी चिंता भी दूर हो जाएगी.

       गरमियों की छुट्टियाँ शुरू हो गयीं.मेरी छोटी बहन आरुषि अपनी बेटी और छोटे गुदगुदे बच्चे के साथ दो दिनो के लिए हमारे घर आयी.स्कूल से छुट्टी लेकर मैं पूरे समय उसके बच्चे के साथ खेलती रही.पूरा घर छोटे बच्चे की किलकारियों और अठखेलियों के साथ गूँज उठा.बच्चे के साथ खेलते खेलते मैं ख़ुद भी छोटी बच्ची बन गयी थी.विदा का दिन नज़दीक पहुँचा तो मैं ATM से पैसे निकालकर बहन के लिए सिल्क की साड़ी और सोने की चेन,दामाद जी के लिए सूट का कपड़ा और बच्चे के लिए खिलौने और कपड़े ले आयीं.देखते ही कुणाल का चेहरा ग़ुस्से से तमतमा गया सुशांत को भी अच्छा नहीं लगा होगा ये तो मैं उनके हाव भाव और मुखमुद्रा देखकर पहचान गयी थी.

                  आरुषि के जाते ही कुणाल बरस पड़ा,

 “माँ,तुम्हें पता भी है,अभी दुकान के लिए कितने पैसे चाहिएँ ?इन लोगों पर इस तरह पैसे लुटाने की क्या ज़रूरत थी?आख़िर चाहती क्या हो तुम?”

 “मैं क्या चाहती हूँ?”मेरी शिराएँ झन झन कर रही थीं.चेहरा और कनपटियां सब बुरी तरह ग़र्म हो गए थे.क्रोध के आवेश में थर थर काँपती मैं चीख़ने लगी,

 “मैं क्या चाहती हूँ,सुन,मैं अपनी मर्ज़ी से जीना चाहती हूँ.मेरे जो जी में आएगा वही करूँगी,दिन रात एक करके मैं ,कमाती रहूँ और ख़र्चों का हिसाब तुम लोगों को देती रहूँ!जो जी में आएगा,वही करूँगी,तू होता कौन है मुझ से हिसाब लेने वाला?”

 मेरी आवाज़ लड़खड़ाने लगी और सीने में तीव्र पीड़ा का अहसास होने लगा.डायनिंग  टेबल पकड़कर खड़े होने की कोशिश की तो लड़खड़ाकर मैं फ़र्श पर ढह गई.

 होश आया तो मैं अस्पताल में थी.इन्हीं सोचों में डूबी हुई न जाने मैं कब सो गयी.जब आँखें खुलीं तो सुबह हो चुकी थी.सुशांत खिड़की के परदे खिसका रहे थे.मुझे जगा हुआ देखकर वो मेरे पास आकर बैठ गए.मेरी हथेली को अपने हाथों में दबाकर पूछा,

 “जया,अब कैसा लग रहा है?”

 मैंने धीरे से उन्हें आश्वस्त किया,”चिंता न करें,अब मैं ठीक हूँ”

 सुशांत की आँखें नम हो आयी थीं,बोले,

 “जया,मुझे क्षमा कर दो.जब मैंने ही तुम्हारे मन को समझने की कोशिश नहीं की तो कुणाल को क्यों  दोष दें? वो तो बच्चा है.तुम इस परिवार के लिए सारा जीवन अपनी इच्छाओं की आहुति देती रहीं,और मैंने तुम्हारी भावनाओं और संवेदनाओं को समझने तक की कोशिश नहीं की.मैं बीता हुआ समय तो नहीं लौटा सकता,पर तुम्हें यक़ीन दिलाता हूँ कि अपने जीवन का सांध्य काल तुम अपनी इच्छानुसार जी सकोगी.”

 मेरी आँखों की कोर से टप टप आँसू बह निकले जो निश्चित रूप से मेरे सुखद भविष्य का संदेश दे रहे थे.

मैं मधु गोयल हूं, मेरठ से हूं और बीते 30 वर्षों से लेखन के क्षेत्र में सक्रिय हूं। मैंने स्नातक की शिक्षा प्राप्त की है और हिंदी पत्रिकाओं व डिजिटल मीडिया में लंबे समय से स्वतंत्र लेखिका (Freelance Writer) के रूप में कार्य कर रही हूं। मेरा लेखन बच्चों,...