भारत कथा माला
उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़ साधुओं और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं
प्यारी मम्मी,
आज आपका पत्र मिला। इंस्टीट्यूट के सुनसान हॉस्टल का कमरा आपके अहसास से भर उठा, मेरी सारी नीरसता तिरोहित हो गई, अद्भुत आनंद से भर गया हूँ। मम्मी आपकी उँगलियों की थरथराहट मेरे अंतस में उतर गई है। बहुत सी वह बातें जो आप ने नहीं लिखी हैं वे भी लेटर पर टपकी आँसुओं की बूंदों ने बता दी हैं। मम्मी, आप जल्दी-जल्दी लिखा करो। तुम्हे शायद ही पता हो, तुम्हारा पत्र मेरी उदासी निगल कर मुझे स्वर्गिक आनन्द से भर देता है। आप चौंकिएगा नहीं कि मैं ऐसी भाषा लिख रहा हूँ। इसकी भी एक कहानी है। मेरी एक मित्र जर्मन लड़की यूता है, फर्राटे से श्लोक गाती है। उसने एक दिन एक श्लोक का अर्थ पूछा, मैं बेचारा ग्यारह साल की उम्र से ही यू.के. में पढ़ा, संस्कृत क्या हिन्दी भी ठीक से नहीं जानता, भला संस्कृत के श्लोक का अर्थ क्या बतलाता। उसने मुझे बहुत धिक्कारा | जानती हो उसने क्या कहा, ‘इंडियनस् की सबसे बड़ी कमजोरी यही है कि वगैर स्वयं को जाने, संसार को जानने निकल पड़ते हैं, इसीलिए उन्हें कुछ नहीं मिल पाता, जिस आदमी के पास अपनी भाषा नहीं होती, अपने कल्चर का ज्ञान नहीं होता, वह दुनिया का सबसे गरीब इंसान होता है। मैं उसे कैसे बताता कि हम लोग हीन भावना से ग्रसित है। जब तक यू.एस. या यू.के. में नही पढेंगे तब तक किसी लायक नहीं होगे, हम किसी को जानने नहीं, पैसा पैदा करने की मशीन बनने आते हैं। य एस.य के. या और कहीं विदेश में पढ़ने से मेरे देश में हम लोगों की कीमत बढ़ जाती है। मेरा सर शर्म से झक गया, और उसी दिन मैंने हिन्दी क्लासेज ज्वाइन कर ली। जानती हो मम्मी, हिन्दी पढ़ाने वाली एक नीग्रो महिला है ‘लिन्डा’ । जिस मनोयोग से वह पढ़ाती हैं मुझे ईर्ष्या होती है। उनका हिन्दी का उच्चारण इतना अच्छा है कोई कह नहीं सकता कि उनकी मातृभाषा हिन्दी नहीं है। एक दिन मैंने उनसे पूछा कि क्या उन्होंने हिन्दी नौकरी पाने के लिए सीखी तो उन्होने बताया कि उन्होंने इंडियन कल्चर को समझने के लिए हिन्दी सीखी थी, यह तो संयोग भर है कि उन्हें यह जाब मिल गया।
मम्मी, मैंने कितनी रातें रो-रो के गुजारी हैं। एक छोटे बच्चे को स्टेटस नहीं उसे उसके मम्मी-पापा चाहिए, उनका प्यार चाहिए, जो मुझसे जबरन छीन लिया गया। क्या इसकी भरपाई कोई कर सकता है? मुझे वह पल आज भी याद है, जब पापा मुझे घसीटते हुए लॉबी से प्लेन की तरफ ले जा रहे थे और मैं आपकी तरफ असहाय आँसू बहाता हुआ ताक रहा था। हाँ मम्मी, उस समय आपका आँसू भरा चेहरा अब तक मेरे अवचेतन में कौंध ता रहता है और इस बात की आश्वस्ति देता रहता है कि आप मुझे प्यार करती हैं।
माफ करना मम्मी, आपके कहने के वावजूद अबकी छुट्टियों में मासी के यहाँ नहीं गया। जानती हैं, क्यों? मैं फ्रेम में बंध कर जीने वालों से हेट करता हूँ। मासी लोग हैं कि अपने फ्रेम से निकलना ही नहीं चाहते। उनके हिसाब से पैसा ही सब कुछ है और उसी से हर चीज पाई जा सकती है। इस पर मैंने उनसे पूछ दिया कि क्या मन की शांति पाई जा सकती है? तो वे हड़बड़ा गईं, मुझे ऐसा लगा कि उन्हें इस बारे में सोचने का समय ही नहीं मिला। लेकिन अपना ईगो मेन्टेन रखने के लिए उल्टे-सीधे जवाब दिए जो मुझे सैटिसफाई नहीं कर पाए। पिछली बार जब उनके यहाँ गया था तो बजाय रिलैक्स होने के टेंस हो गया था। पैसे और स्टेटस के बारे में इतने लेक्चर दे डाले थे कि मेरा सर फटने लगा और मैं वहाँ से चुपके से निकल आया। हो सकता है, उन लोगों ने आपको फोन भी किया हो, पर मम्मी प्लीज, जब तक कोई बहुत जरूरी काम न हो उन लोगों के यहाँ जाने के लिए न कहना। आप खूब जानती हैं कि मैं दुनियां में सबसे ज्यादा आपका रिगार्ड करता हूँ, प्लीज मुझे अपनी अवज्ञा का पाप न लगाना।
मुझसे यूता ने वादा किया है कि मैं हिंदी सीख लूँ तो वह मुझे संस्कृत पढाएगी। उसने एक बात और बताई कि इंग्लैंड के मि. ए.बी.कीथ आई.सी.एस. अफसर होने के बावजूद संस्कृत के बहुत बड़े विद्वान थे जिन्होंने तमाम संस्कृत और प्राकृत के ग्रंथो का इंलिश में अनुवाद किया। उन्होंने संस्कृत नाटकों पर अलोचनात्मक अभूतपूर्व ग्रंथ ‘संस्कृतड्रामा’ लिखा । जिसे इंडियन स्कॉलर्स ने भी अथेंटिक माना है। वह कहती हैं बिना संस्कृत जाने न तो अच्छी हिन्दी जानी जा सकती और न अपने देश को, क्योंकि हमारे प्राचीन ज्ञान की सारी थाती संस्कृत में ही है। उसने यह भी बताया कि बॉन विश्वविद्यालय में संस्कृत की नियमित पढ़ाई होती है और बॉन आकाश-वाणी से संस्कृत के कार्यक्रमों का प्रसारण होता है। हाँ मम्मी, अब आप हमें हिंदी में ही लिखेंगी।
मम्मी, हमारे कल्चर को जानने के लिए जब पश्चिम वाले इतने उत्सुक रहते हैं तो जरूर ही उसमें कोई खास बात तो होगी ही, पर वह हम लोगों को क्यों नहीं दिखाई देती है? क्यों हिन्दी मीडियम से पढ़ना बैकवर्डनेस माना जाता है? क्यों संस्कृत पढ़ना अच्छा नहीं मानते? मेरी समझ मे इसका एक कारण पैसा ही है। हम लोग केवल पैसा कमाने के चक्कर में सब भूले रहते हैं क्योंकि पैसे वालों का अपने देश में सम्मान है, ज्ञानी को कोई नहीं पूछता।
मम्मी, एक बात बताना कि जिन लोगों के पास पैसा नहीं है या जो लोग यू.एस. या यू.के. में जाकर नहीं पढ़ते, क्या वह आदमी नहीं होते? क्या उन्हें अपना लक्ष्य नहीं मिलता या उनका जीवन जीवन नहीं होता? कल मेरे अंग्रेज मित्र टॉम ने मुझे फ्रांस के प्रसिद्ध फिलॉस्फर रोम्यॉरोला द्वारा लिखित स्वामी विवेकानंद की जीवनी को इस आग्रह के साथ दी कि मैं उसे अवश्य पढूँ, जानती हो मम्मी, वह पुस्तक अद्भुत है। एक विदेशी द्वारा स्वामी जी की फिलास्फी का इतना विवेक पूर्ण और गहन अध्यन/विश्लेषण शायद ही किसी भारतीय ने किया हो। हम भारतीय अपने महापुरुषो की फिलास्फी और टीचिंग्स के है कि हम लोग अपने अतीत की खोज के लिए विदेशों में भटकते हैं। कितने शर्म की बात है हमें अपनी जड़ें अपने देश में नहीं दिखती, इसका एक कारण शायद यह भी होगा कि हमने अपने अतीत को खंगाला ही नहीं, हम दूसरों के अतीत की खोज करते रहे। मम्मी एक बात ध्यान देने वाली है कि विवेकानन्द जी ने जो भी ज्ञान अर्जित किया सब अपने देश में रह कर किया, वह कहीं विदेश पढ़ने नहीं गए।
टॉम एक दिन मुझे अपने घर ले गया । अपने पैरेंट्स से मिलवाया। बेहद लविंग लोग हैं। जब मैंने उनके पाँव छुए तो उन्होंने मुझे गले से लगा लिया मेरा माथा चूमा । मम्मी मैं तो अविभूत हो गया। मेरे जेहन में आप छा गईं। टॉम की मम्मी की छुवन के जरिए आप मेरे अंतस में उतर आईं, मैं आप की गोद में जा गिरा। मेरा अस्तित्व आपमय हो गया। मेरा बचपन वापस आ गया था। मम्मी मैं उन क्षणों को एक्सप्लेन नहीं कर सकता पर उन पलों ने मुझे एनर्जी से भर दिया ।
उन्होंने मुझे अपने बारे में बताया और मुझसे मेरे बारे में पूछा। मम्मी उन्हें हम लोगों के कल्चर के बारे इतना कुछ मालूम है जितना शायद हम लोग भी नहीं जानते। सबसे अच्छी बात यह लगी कि वे अपने बच्चों को उनके हिसाब से जीने की छूट देते हैं। वे अपने विचार को थोपने की कोशिश नहीं करते, केवल एक्सप्लेन भर करते हैं और बहस की खुली छूट देते हैं। अपने यहाँ ऐसा क्यो नही है? हर पिता अपने बच्चे को अपना जैसा ही बनाने की क्यों कोशिश करता है? क्यों उसके गुणों को प्राकृतिक रूप से विकसित नहीं होने देते? क्या यह संभव नहीं कि उनका बच्चा उनसे और अच्छा न निकले? मैं आप को एक सीक्रेट बताता हूँ, मैं डॉक्टर नहीं बनूँगा क्योंकि मैं पासिंग आउट के समय पर ली जानेवाली ‘ओथ आफ हिप्पोक्रेसी’ के विरुद्ध नहीं जा सकता और यह पापा को शायद पसंद नहीं आएगा। टॉम के माता-पिता ने छुट्टियों में अपने यहाँ आने का आग्रह भी किया । लेकिन मैं भारतीय संकोच ओढ़े यहाँ अकेले बैठे घुट रहा हूँ।
आज टॉम हॉस्टल में अपने पापा के साथ आया और अपने साथ चलने की जिद करने लगा, मैं इंकार न कर सका औरं वार्डन से परमीशन लेकर उसके साथ हो लिया। उनके परिवार के साथ पिकनिक पर गया। खूब एनज्वाय किया। जानती हो मम्मी, आज उन लोगों ने मुझे इंडियन खाना खिलाया। उन्होंने बताया कि वह इंडिया में करीब पच्चीस साल रहे हैं। टॉम की बड़ी बहन स्टेला ने नैनीताल के एक डॉक्टर से शादी की है और वहीं सैटिल हो गई है। टॉम के माता-पिता भी दोनों डॉक्टर थे अब रिटायर लाइफ एनज्वाय कर रहे हैं। एक चैरिटेबल डिस्पेंसरी में कुछ घंटे मरीजों को देखते भी हैं। उनके पास बहुत पैसा भी नहीं है फिर भी किसी तरह की इनसेक्योरिटी नहीं फील करते हैं। उन्हें अपने गॉड पर पूरा विश्वास है, प्रति संडे वह चर्च जाते हैं और प्रेयर में शामिल होते हैं।
अपने यहाँ वैसे भी जरा सी संपन्नता आते ही लोग अपने कल्चर को क्या, अपने भगवान को भी भूलने लगते हैं? इतना पैसा होते हुए भी लोग क्यों इंसिक्योर फील करते हैं, जिसके चलते वह लाइफ एंज्वाय करने से चूक जाते हैं। लगता है अपने यहाँ लोगों को अपने या ईश्वर के ऊपर तनिक भी विश्वास नहीं है। इसीलिए वे एनीहाउ रुपया जमा करने में लगे रहते हैं। इस मानसिकता के कारण उनके लिए बस रुपए की ही प्राथमिकता रह जाती है, परिवार यहाँ तक उनका अपना जीवन तक सेकेंड्री हो जाता है। यहाँ आकर एक तो सीख मिली कि आदमी को अपनी लाइफ भी इंज्वाय करना चाहिए, पैसा ही सब कुछ नहीं है।
मैंने तो पढ़ा है कि अपने यहाँ ऋषियों के आश्रम जंगलों में होते थे जिनमें राजकुमार और आम जनों के बच्चे एक साथ पढ़ते थे। दोनों के साथ कोई भेद-भाव नहीं होता था। कृष्ण-सुदामा इसका उदाहरण हैं। पर अपने यहाँ आजकल के संतो के फाइबस्टार सुविधाओं से लैस आश्रमं हैं जो महलों को मुँह चिढ़ाते हैं, जिनमें पढ़ाई छोड़ कर सब कुछ होता है। यह लोगं गॉड को पीछे कर खुद आगे होकर अपनी पूजा करवाते हैं। लोग हैं कि इनके पीछे पगलाए रहते हैं, उसी का फायदा उठा कर यह लोग उन्हें खूब ठगते हैं और अकूत संपदा अर्जित करते हैं। फॉलोवर्स को रास्ता दिखाने की जगह गुमराह करते हैं। इन आश्रमों में क्या नहीं होता है किसी से छुपा नहीं है, आज कल आसाराम-कांड इसका उदाहरण है। अपने को संत कहने वाले के रोज-रोज नए कारनामों का खुलासा हो रहा है, सोच कर घिन आती है।
टॉम के पापा ने एक दिन बताया कि शिकागो में 11 सितंबर, 1897 को आयोजित विश्वधर्मसभा में स्वामी जी का उद्बोधन, ‘अमेरिकी भाइयो और बहनों ने अमेरिकी लोगों पर चुम्बकीय प्रभाव किया था। हॉल छोड़ कर जाती पब्लिक मंत्रमुग्ध सी लौट आई थी और उनका पूरा भाशण सुना था। स्वामी जी को उस दिन जितना रिस्पॉस मिला था आज तक न किसी धर्म-गुरु, न किसी नेता को मिला। मम्मी यह सुन कर मेरा सर गर्व से ऊँचा हो गया था। उन्होंने आगे बताया कि इंडिया ही वर्ल्ड में अकेला कंट्री है जिसने नारी में माँ, बहिन और पॉवर (शक्ति) को देखा है। मम्मी, याद आया यूता ने उस दिन जिस श्लोक का अर्थ पूछा था, वह था, ‘यत्र नार्यास्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः’ उसने भी यही बताया था कि महिलाओं को देवी का सम्मान देने वाला संसार का एक मात्र देश इंडिया ही है। मम्मी, आज क्या हो गया है उस देश को? उसी देश में नारियों की इतनी दुर्गति क्यों? आज-कल अपने यहाँ की जो खबरे टी.वी. और पेपर्स में आ रही हैं, उन्हें देख कर टॉम के पापा की बात मानने को मन तैयार ही नहीं होता। हमारे देश में नारी में माँ, बहन और शक्ति देखने वाले लोगों को क्या हो गया है कि महिलाएं दिनमें भी सुरक्षित नहीं रात की बात छोड़ ही दीजिए। महिलाएं तो महिलाएं पाँच–पाँच साल की बच्चियों का रेप करके मार डालते हैं। रात में काम-काजी महिलाओं के साथ घर लौटते समय बस में बलात्कार होता है, अभी एक महिला पत्रकार का रेप केश सुर्खियों में है, दहेज के लिए बहुओं को जला दिया जाता है, भ्रूण परीक्षण करवा के महिला भ्रूण को एबार्ट करवा दिया जाता हैं। यह घटनाएं पूरे देश में ही नहीं देश की राजधानी में भी रोज हो रहीं हैं, जहाँ देश के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और गृहमंत्री सभी रहते हैं पर अपराधियों पर कोई अंकुश नहीं है वे बेखौफ अपराधों को अंजाम दे रहे हैं, केवल अपराधी ही नहीं माननीय लोग भी इसमें इनवाल्व हैं। लगता है जैसे देश अनाथ हो गया हो। अफसोस होने लगता है इस देश का नागरिक होने में। मम्मी, हमारा अतीत तो लुभाता है पर वर्तमान सोचने को मजबूर करता है। कब लौटेगा देश में अच्छा समय?
एक दिन मंदिर में रामायण हो रही थी। प्रवचन कर्ता रामायण की एक चौपाई, ‘जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी, सो नृप अवसि नरक अधिकारी’ को एक्सप्लेन कर रहे थे। सुन कर बहुत अच्छा लगा। शायद महात्मा गाँधी के राम-राज्य की अवधारणा भी यही रही होगी। पर आज सुबह उन्हीं के चेलों/अपने देश के कर्णधारों के कृत्यों के बारे में टी.वी. न्यूज सुन कर मन खट्टा हो गया। इतनी अच्छी अवधारणा वाले देश के कर्णधारों के यह कारनामे, क्या होगा इस देश का? यदि आज गाँधी जी जिंदा होते तो मरने के लिए उन्हें किसी गोडसे की दरकार न होती, यह सब देख कर वह ऐसे ही मर जाते। यदि आत्मा नाम की चीज का अस्तित्व होता होगा तो बापू की आत्मा को कितना क्लेश मिल रहा होगा यह तो वह ही जानते होंगे। देश की ईश्वर ही रक्षा करे।
चुनाव जीतने के लिए यह लोग क्या नहीं करते, रुपया, शराब बांटना तो आम बात है, दंगा तक कराने में नहीं चूकते। जरा सा भी अफसोस नहीं होता इन लोगों को। कितने परिवार उजड़ जाते है, कितने बच्चे अनाथ हो जाते हैं पर इन्हें क्या, इनको तो बस कुर्सी से मतलब है, प्रजा का दुःख यह क्या देखेंगे, चुनाव के बाद प्रजा की तरफ देखना भी पाप समझते हैं। फसलों के खराब होने पर किसानों द्वारा की जाने वाली आत्महत्याएं भी इन लोगों को प्रभावित नहीं करतीं। क्या ऐसी घटनाएं देश के लिए शर्म की बात नहीं हैं? इसके लिए क्या सरकार दोषी नहीं है? क्या इन लोगों को जनता की सहायता नहीं करना चाहिए? क्या इसी आजादी के लिए शहीदों ने अपने प्राणों की आहुति दी थी? इन लोगों की काली कमाई विदेशी बैंको में जमा है जिसकी तरफ क्या सरकार का ध्यान नहीं जाना चाहिए?
मासी लोग के पास अथाह पैसा है फिर भी इंडिया की प्रॉपर्टी के बारे में हमेशा सोचा करते हैं कि उसको डिस्पोज कर दिया जाए और उस पैसे को कहीं और इनवेस्ट किया जाए। वे लोग अपने परिवार के उन लोगों के बारे में क्यों नहीं सोचते हैं जिनके पास संपन्नता नहीं है, यदि यह लोग हर साल अपनी खेती का किराया उन लोगों से न लें तो क्या उन लोगों की हालत और अच्छी न हो जाय? मम्मी, मासी लोग ऐसा क्यों नहीं सोचते, क्या वह लोग उनके अपने सगे नहीं हैं? मम्मी मैं तो कहता हूँ जब यह लोग एन.आर.आई. हो गए हैं तो इंडिया की प्रॉपर्टी पर इनका क्या हक है? मुझे यह कहने मे जरा भी संकोच नहीं है कि ये लोग इतने दिन यू.के. में रहने के बाद भी अपनी मानसिकता नहीं बदल पाए।
हाँ मम्मी, एक बात बताना भूल गया था, पापा के दोस्त पंकज अंकल होली मिलन समारोह में मंदिर में मिले थे। वे अपने लड़के के यहाँ आए हैं। मुझे अपने घर ले गए। उनका लड़का इंजीनियर है और वेलसैटिल्ड है। आज डिनर उन्हीं के यहाँ लिया । आप लोगों के बारे में काफी बातें हुईं। वह पापा की बड़ी तारीफ कर रहे थे कि पापा ने नर्सिंग होम को और एक्सटेंड करवा दिया है। यह तो अच्छी बात है, पर जब उन्होंने बताया कि पापा ने बिल्डर और प्रॉपर्टी का काम शुरू कर दिया है, तो मुझे धक्का लगा। यदि ऐसा है तो क्या उन्हें मरीजों को देखने का समय मिल पाता होगा? मम्मी यह तो आप भी डॉक्टर होने के नाते जानती ही होंगी कि एक डॉक्टर बनाने में पैरेंट्स के अलावा सरकार का भी काफी पैसा खर्च होता है, इस तरह एक डॉक्टर के ऊपर हमेशा देश का कर्ज रहता है, जो केवल मरीजों की सेवा करके ही उतरा जा सकता है। पापा को पैसे की ऐसी क्या जरूरत आ गई जो यह काम और करने लगे। पापा के पास जरूरत से ज्यादा पैसे वैसे ही हैं फिर और पैसा काहे के लिए? उनको समझाइए अपनी सेहत का ध्यान रखें। हाँ यदि प्रोफेशन से हट कर कुछ करना ही है, तो कुछ ऐसा करें जिस पर हम लोग गर्व कर सकें और समय उसे आदर के साथ याद रखे।
मम्मी, इसको अदरवॉइज न लेना। मैं आपके पत्र का इंतजार करूँगा। एक टूर में अगले हफ्ते न्यूयार्क जा रहा हूँ वहाँ गुड़िया से मिलूंगा। यदि हो सके तो तिलक जी की गीता पर कमेंट्री भेज दीजिएगा। पापा को प्रणाम् ।
-आपका बेटा,
रजत
भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’
