Short Hindi Kahaniyan: अपने कमरे में अकेली बैठी शारदा जी टीवी देख रही थीं। इसी के सहारे उनका मन लग जाता और दिन कट जाता था। कोई ना कोई प्रोग्राम उनकी पसंद का लगा लेती- घरेलू सीरियल, खाने का शो या कुछ संगीत का शो l उनका मन इन सब चीजों से लगा रहता था l अचानक लाइट चली गई और बिना टीवी के शारदा जी के जीवन का खालीपन उनका साथ देने आ गया। उनके साथ अक्सर ऐसा होता था l कहने को तो उनके पास चार कमरों का घर, भरा पूरा परिवार, दो नौकरानियां, पर फिर भी अकेली !
शारदा जी के मिलनसार स्वभाव के कारण उनके अपने नन्द, भाभी, पड़ोसी और बाकी जान पहचान वालों के साथ अच्छी बोल चाल थी। छोटा मोटा कोई भी कार्यक्रम होता तो समझो कि उनके बिना अधूरा था।
उनको पूजा पाठ, लेन देन का जितना ज्ञान था वो उसको पूरी ईमानदारी के साथ सामने वाले की मदद के लिए इस्तेमाल करतीं। उनके अन्दर रत्ती भर भी अपना पराया नहीं था। पकवान और मिठाइयां बनाने में तो वो महारथी थीं। हलवाई भी उनके हाथ के स्वाद के सामने मात खा जाएं। घर का तन्दरूस्त और साफ सुथरा खाना वो भी स्वाद के साथ मिले तो कौन नहीं मिलना और बुलाना चाहेगा ऐसी महिला को। शारदा जी के जैसी मेहनत और ईमानदारी से मदद करने वाली कोई मुश्किल से ही मिले।
इसलिए पति के जाने के बाद भी और औरतों की तरह वह अकेली ज़रूर थीं पर उनके जीवन में खालीपन नहीं था।
एक बार उनकी नन्द के लड़के की शादी थी। यूं मानो के उनके अपने लड़के की शादी। शारदा जी ने अलमारी खोली और लगी साड़ियां छांटने। किस्मत से शारदा जी के यहां विधवा होने पर रंग और संवरने को लेकर कोई बात नहीं बनाता था। उनकी यह नन्द तो खासकर थीं भी बहुत अच्छी।
उन्होंने अपनी सबसे सुंदर वाली साड़ियां निकालीं। करीब एक हफ्ता रहना था। उसी हिसाब से उन्होंने अपना सामान लगाया। साड़ी के मैचिंग ब्लाउज, जूड़ा क्लिप, लाल रंग की छोटी बिंदी, हल्के रंग की लिपस्टिक और काजल रखा। कानों, गले और हाथों में तो वो हमेशा से ही सोने के ज़ेवर पहनती थीं। शादी में भी वो यही पहनने वाली थीं।
अपनी बहु से बातचीत करके उन्होंने तय किया की वो नन्द की बहु को ५१००/- देंगीं और बाकी तोहफ़े उनके बच्चे अपने हिसाब से दे देंगे। उन सब सामानों के बीच शारदा जी ने दो खास चीज़ें भी रखीं। एक तो उनके गानों की किताब जो शादी वाले घर में ढोलक की थाप पर वो गाने वाली थीं। दूसरी चीज थी उनके पति का पहला तोहफा, उनकी सोने की लम्बी चेन जिसमें हीरे का पैंडेंट पड़ा था।
अपना सामान लेकर शारदा जी समय से तैयार बैठी थीं। नन्द का बेटा राहुल गाड़ी लेकर आया था अपनी प्यारी मामी को ले जाने। उसने बहुत प्यार और सत्कार के साथ अपनी मामी को गाड़ी में बिठाया l घर पहुंचते ही नन्द और बाकी सबके चेहरों पर मुस्कान आ गई। ऐसा लगा मानो अब कोई परेशानी नहीं, सब काम आराम से हो जाएंगे। परिवार में करीब हर आदमी चाचा जी की बहुत इज्जत करता था और बहुत मानता था l सबकी ज़िद पर बहुत वक्त बाद उन्होंने मेंहदी भी लगवाई। बहुत ही सुंदर दिखते थे उनके हाथ l
शादी के घर में एक हफ्ता कैसे बीता, पता ही नहीं चला। वापसी में शारदा जी को उनकी नन्द ने बहुत धन्यवाद दिया, साड़ी और नकद देकर आंसुओं से बिदा किया। इसी तरह कभी किसी के कीर्तन, शादी, जन्मदिन आदि कार्यक्रमों में शारदा जी आती जाती रहतीं। चार दिन प्रोग्राम की भागदौड़, दो दिन पहले तैयारी में और दो दिन बाद की थकावट में निकल जाते और उनका वक्त कट जाता।
पर वक्त हमेशा एक सा नहीं रहने वाला था……
कोरोना नाम की ऐसी जानलेवा बीमारी आई की कई घरों में लोगों से उनके अपने बिछड़ गए जो कभी वापस नहीं आने वाले थे l उसी बीमारी के चलते शारदा जी की सबसे प्यारी नन्द और पड़ोस की सहेली उनका हमेशा के लिए साथ छोड़ गईं। सबसे बड़ा गम इस बात का था की वह उनको अन्तिम समय में देख भी नहीं पाईं। कोरोना की वजह से सबका घर से निकलना बन्द हो गया था। न कोई कहीं आ सकता न जा सकता। वो भी बेचारी घर में कैद हो गईं। कभी कभार फोन पर किसी से बात कर लेतीं, पर आख़िर कितनी l मिलने-जुलने की कमी फोन से तो पूरी नहीं हो सकती थी
उस बीमारी को जाते जाते करीब २ साल से ऊपर लग गए। तन से थोड़ी पर मन से वह पूरे तरीके से थक चुकी थीं। एक अजीब सा खालीपन उन्हें घेरने लगा था। बच्चे अपनी तरफ से टाईम निकाल कर उनसे बातें करते, सिनेमा या होटल भी ले जाते। पर अपने संगी साथी के जाने का दु:ख और उम्र की लाचारी ने शारदा जी को एक कमरे में समेट कर रख दिया। वक्त बेवक्त उनके जीवन का खालीपन उनका साथ देने आ जाता उनको उनके अकेलेपन का एहसास कराता l
कहते हैं हकीम लुकमान के पास हर बीमारी का इलाज था l लेकिन जीवन के खालीपन का तो दुनिया के किसी भी बड़े से बड़े हकीम, वैद्य, या डॉक्टर के पास नहीं है l
शारदा जी-गृहलक्ष्मी की कहानियां
