सोन चिरैया-गृहलक्ष्मी की कहानियां
Saun Chiriya

Hindi Kahani: शालिनी, शाम को पार्टी में जाना है। बहुत बड़े लोग हैं, अच्छे से तैयार रहना।” शालिनी के पिता ने कहा और अपने काम पर निकल गए। शाम को अपने पापा के आने से पहले ही शालिनी तैयार थी। वह दोनों सही समय पर पार्टी में पहुंचे। पार्टी शहर के बहुत बड़े रईस गुप्ता जी के घर पर थी। शालिनी के पापा उनके पुराने दोस्त थे। गुप्ता जी ने शालिनी को अपने बेटे अरुण से मिलवाया तो वह उसकी खूबसूरती को देखता रह गया और पूरी पार्टी में उसके साथ या आसपास घूमता रहा। गुप्ता जी ने यह बात समझ ली थी और खुद उनको भी शालिनी अरुण के लिए पसंद आ गई थी। उनको लगता था कि शालिनी ही एक लड़की है जो समझदारी से उनका घर संभाल सकती है।

आखिरकार दोनों दोस्तों के विचार विमर्श से शादी तय कर दी जाती है और शालिनी गुप्ता परिवार की बहू बनकर उनके घर में आ जाती है।

अरुण शालिनी को हर जगह लेकर जाता और बड़े जोश के साथ अपनी खूबसूरत बीवी को सबसे मिलवाता था। शुरू में यह सब शालिनी को बहुत अच्छा लगता था। उसे लगता के अरूण उसके साथ बहुत खुश है और उसे बहुत प्यार करता है, लेकिन धीरे-धीरे यही बर्ताव घुटन बनने लगा था। अरुण शालिनी की मर्ज़ी की फ़िक्र करे बिना हर जगह लेकर जाता। यहां तक की वो चाहे बीमार हो या अरूण के पिता की तबीयत खराब हो, उसे कोई मतलब नहीं था। 

वह शालिनी को शो-पीस की तरह इस्तेमाल करता। बड़े कॉन्ट्रैक्ट लेने हों या कोई दूसरी डील, शालिनी उसके लिए एक ट्रंप कार्ड की तरह थी। अरुण को कोई मतलब नहीं था कि कौन शालिनी के साथ कैसा मज़ाक कर रहा है या नाच रहा है। घुटन तो थी ही पर साथ ही साथ शालिनी को डर भी था कि अरुण अपने मतलब के लिए किसी भी हद तक उसक इस्तेमाल कर सकता है। बस एक सुकून था कि कहीं न कहीं पिता का डर था या कोई मतलब के अरूण अपनी हदों में रहता था।

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उसका वह घिनौना चेहरा सिवाय उसके और उसके ससुर के अगर किसी को समझ आता था तो वह था उनका वफ़ादार मैनेजर। वह शालिनी और गुप्ता जी की बहुत इज़्ज़त करता था। अपने पिता के देहांत के बाद शालिनी को अब उन दोनों का ही सहारा था। 

शालिनी और अरुण की शादी को छ: साल हो गए थे। शालिनी का हमेशा से एक अपने परिवार का सपना था। अरुण लेकिन पति नहीं सिर्फ़ बिज़नेसमैन था। शालिनी जब भी बच्चों की बात करती तो अरुण उसे गंवार और बहुत कुछ कह कर बेज़्ज़ती करता। वह परेशान रहती थी और भगवान से रोज़ अपने बच्चों के लिए वरदान मांगती। देर से सही पर भगवान ने उसकी सुन ली। शालिनी की तबीयत खराब होने पर डॉक्टर आए तो उन्होंने उसे मां बनने की बधाई दी। शालिनी और पिताजी बहुत खुश थे पर अरुण ने उससे बहुत झगड़ा करा था उस दिन।

एक दिन अरूण ने अती ही कर दी। शालिनी की तबीयत खराब होने की बाद भी वह उसे पार्टी में ले गया। वहां खाने की तेज़ खुशबू से शालिनी को उल्टी हो गई। इस बात पर अरुण ने उसका ध्यान तो करा नहीं बल्कि अपने दोस्तों के सामने उसका बहुत तिरस्कार करा। तब से वह शालिनी को पूरे तरीके से नज़र अंदाज़ करने लगा। काम के बहाने हफ्तों बाहर रहता था या पूरा दिन देर रात तक ऑफिस की पार्टी और मीटिंग में।

अपनी बिज़नेस के मतलब को पूरा करने के लिए उसको एक खूबसूरत साथी भी मिल गई थी। अब हर जगह सबको वही दिखती थी। शालिनी के लिए अरुण के साथ रिश्ता सिर्फ़ कागज़ी रह गया था। आखिरकार उसने जुड़वा बेटियों को जन्म दिया। उसको जैसे प्रभु ने सारी खुशियां दे दी थीं। बेटियों के पैदा होते उसने अपने मन में मज़बूती से विचार कर लिया था कि वह उन दोनों को सोने के पिंजरे में रहने वाली चिड़िया नहीं बनने देगी। वह उसकी तरह सोन चिरैया नहीं बनेंगी।

शालिनी का पूरा ध्यान अपनी बेटियों पर था। शुरू से बाहर आना जाना तो वैसे भी अरुण की मर्ज़ी से ही था और अब उसको ना आदत थी और ना ही कोई शौक। वक़्त आगे बढ़ता गया और साथ-साथ बेटियों की उम्र भी। दोनों अब स्कूल खत्म करने वाली थीं। अरुण तो अपनी बेटियों को सिर्फ़ पहचानता था जानता नहीं था। शालिनी दोनों बच्चों मीता और समारा को शहर से बाहर भेजना चाहती थी। उसे डर था कि जब दोनों बड़ी हो जाएंगी तो अपने मतलब के लिए अरुण उनको भी किसी अपने जैसे रईस के हाथों कठपुतली बनने के लिए ब्याह देगा।

मीता मेडिकल की और समारा सी ए की प्रवेश परीक्षा पास कर दूसरे शहर चली गईं। कुछ वक्त बाद समारा सी ए बनने के बाद नौकरी करने के लिए विदेश चली गई और उधर मीता की मेडिकल की पढ़ाई आगे बढ़ रही थी। अरुण अपने आप में इतना मसरूफ़ रहता कि उसे बस इतना पता था कि दोनों बाहर पढ़ रही हैं। क्या और कैसे उसे कोई मतलब नहीं।

मीता के डॉक्टर बनने के बाद शालिनी ने अपने ससुर की मदद से दोनों बेटियों की शादी उनकी पसंद से तय कर दी। पैसे के मामले में दोनों दामाद अरुण से काफ़ी कम थे पर इज़्ज़त देने में उससे कहीं ऊपर थे। अरुण को जब पता चला तो उसने फिर शालिनी को बेज़्ज़त करना चाहा लेकिन इस बार शालिनी के साथ उसकी बेटियां भी थीं। उन्होंने अरूण से साफ़ कह दिया, “पापा! आपने सिर्फ़ अपना नाम दिया है। आज जो हमारी पहचान है सिर्फ़ दादाजी और मां की बदौलत है। वह हमारी शादी करेंगे। अगर आप आना चाहें तो कन्यादान के लिए आ जाइएगा। हमें अच्छा लगेगा। आगे आपकी जैसी मर्ज़ी।”अरुण कुछ कह नहीं पाया।

       शालिनी ने एक ही मंडप में दोनों बेटियों का कन्यादान करा। अरुण अपने घमंड के चलते सिर्फ़ रस्म में बैठ गया था। दोनों बेटियों को खुशी से विदा कर शालिनी ने सिर्फ़ अपने मायके से मिला सामान और एक जोड़ा कपड़ा सूटकेस में रखा। अरुण को तलाक के काग़ज़ हाथ में थमा कर बोली, “ तुम दस्तखत करो ना करो मेरी तरफ से तलाक है। मैं हमेशा के लिए जा रही हूं। चलिए पिताजी।” अपने ससुर का सामान भी लिया और दोनों नए घर के लिए चल दिए जो उसकी बेटियों ने अपने घरों के पास ही ले लिया था। उनके साथ घर के के दो खास नौकर शंभू और उसकी पत्नी कमला ने भी नौकरी छोड़ दी। वह भी उनके साथ उनके नए घर में गए। नए घर में अपनी बेटियों के साथ कदम रखते हुए शालिनी का मन बहुत खुश था। एक कमज़ोर शालिनी जो खुद सोन चिरैया थी आज बेटियों की मां बनकर उसने उन्हें सोन चिरैया नहीं बनने दिया।